मुकेश राठौर
एक कहावत है- ‘रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी जागना इंसान को स्वस्थ, धनवान और बुद्धिमान बनाता है।’ देखा जाए तो इस तरह ‘सूरज के आगे-पीछे जागना-सोना’ भारतीय जीवन पद्धति का हिस्सा रही है। हमारे धर्मग्रंथों में भोर में पूजा, ध्यान, साधना, योगासन, प्राणायाम आदि के लिए उत्तम काल बताया गया है, क्योंकि इस समय प्रकृति एकांत, शांत भाव में होती है। इस दौरान हम प्रकृति और अपनी आत्मा के सर्वाधिक समीप होते हैं। ज्ञानी, ध्यानी इस समय का महत्त्व समझते हैं। स्वर साधक ब्रह्म बेला में सुर साधने का अभ्यास करते हैं। बहुतेरे कलमकार भी तड़के विचारों की फसल उगाने में ज्यादा विश्वास करते हैं।
बीसवीं सदी में देहाती और कस्बाई लोगों की दिनचर्या प्रकृति के साथ थी
बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में महानगरों को छोड़ देहाती और कस्बाई लोगों की यही दिनचर्या थी। लोग देर शाम अपने काम-धंधों से थके-हारे घर लौटते, खाना-पीना करते और रात चढ़ने से पहले ही सो जाते। लगभग आठ घंटे की नींद लेते। उधर चौथे पहर में जाग जाते और बड़े सवेरे ही अपने काम-धंधे में जुट जाते। दोपहर होने तक बहुत-सा कार्य संपन्न कर मध्यावकाश कर लेते। दिन ठंडा होते ही यानी अपराह्न में फिर बाकी काम को पूरा करने निकल पड़ते। कुल मिलाकर उनके सारे क्रियाकलाप प्रकृति के साथ चलते। पशु-पक्षी जागते, प्रकृति जागती वे जाग पड़ते, प्रकृति सोती, वे सो जाते। सूरज आंख दिखाने लगता, वे छांव पकड़ लेते। सूरज तिरछा हो अपने घर लौटने की तैयारी करता तो वे फिर काम संभाल लेते और सूरज के जाते ही खुद भी घर लौट आते।
जल्दी खाना-सोना थकान, अनिद्रा, अपच, वायुदोष जैसी व्याधियों से बचाता है
कामकाजी वर्ग, मजदूर, किसान, गृहिणी आदि सबकी लगभग यही दिनचर्या होती। इससे यह होता कि आज हम जिस समय पर अपने-अपने काम से निकलते हैं, उस समय तक वे लोग चार से छह घंटे का काम कर चुके होते। सूर्योदय पूर्व के लगभग दो घंटे एकाग्रचित्त होकर कार्य करने में बड़े उपयोगी होते। इस समय हम अपने अवचेतन मन के करीब होते हैं। सुबह बहती मंद शीतल पवन और चुस्त-स्फूर्त शरीर सवाई ऊर्जा से कार्य करने को उत्साहित करते हैं। इस तरह जल्दी जागना दिनभर ऊर्जावान बनाए रखता है। इसलिए जल्दी खाना और सोना भी थकान, अनिद्रा, अपच, वायुदोष जैसी अनेक व्याधियों से मुक्त रखता है और अगले दिन के लिए नई ऊर्जा भी भरता है।
आज की तथाकथित आधुनिक जीवनशैली या यों कहे अस्त-व्यस्त जीवनशैली में हम वैसे तो बहुत कुछ बिसरा चले हैं, लेकिन इनमें अपनी जल्दी सोने और जल्दी जागने की आदत को भी कहीं पीछे छोड़ चुके हैं। आज का आदमी देर से जागने और देर से सोने को अपने आधुनिक और अभिजात होने का पर्याय समझता है। वह देर से जागता है, देर से नित्यकर्म से फारिग होता है। न हो तो भी मशीनी मानव की तरह नियमानुसार नाश्ता लेता है और अपने काम पर चल पड़ता है। कई बार व्यस्तताओं के चलते समय से खाना तक नहीं खा पाता। नौकरीपेशा लोगों की बात करें तो दिनभर दफ्तरों में चाय-पानी का दौर चलता है। ऐसे में भूख का रफूचक्कर होना लाजिमी है। देर शाम छुट्टी के बाद व्यक्ति घर लौटता है। कभी कार्यालय के कार्य घर तक भी पीछा नहीं छोड़ते। ऐसे में उसकी अपनी कोई दिनचर्या हो तो भी वह किनारे हो जाती है।
आज के लोगों की अनियमित दिनचर्या ने रात्रिचर्या को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। अफसोस कि वह इससे अनभिज्ञ-सा है। आज लोग अपने दिन के शेष कामों को पूरा करने के लिए रात के समय का उपयोग करते हैं। यानी नींद के समय में अघोषित कटौती। कभी काम की अधिकता की अवस्था में वह देर रात तक जागता है। ऐसे में लोगों का भोर में जागना दूर की कौड़ी हो चला है। जल्दी जागे भी तो आखिर कैसे? शरीर की अपनी आवश्यकताएं हैं। अगर हम सोचें कि उस जमाने के लोग आखिर इतनी जल्दी कैसे सो जाते होंगे और उतनी ही जल्दी कैसे जाग जाते होंगे, तो पाएंगे कि उनका जीवन सादा, सरल था। आज की तरह न तो विचित्र खानपान की आदतें थीं, न ही मनोरंजन के इतने साधन थे। जब से टीवी आया, रातें गायब होने लगीं। रही-सही कसर स्मार्टफोन ने पूरी कर दीं। स्क्रीन में गुम होने का समय बढ़ने का असर यह हुआ है कि लोग अब करवटें बदलने लगे हैं, क्योंकि बिस्तर पर मोबाइल से दोस्ती नींद की दुश्मन होती है।
हमारी दिनचर्या को दूषित करने में बाकी कारणों से कहीं अधिक स्मार्टफोन का हाथ है। यह न सिर्फ दैनिक कार्यों में गति अवरोधक है, बल्कि नींद का भी दुश्मन होता है। कई बार तो हम जिस मोबाइल में भोर का ‘अलार्म’ लगा कर सोते हैं, उठते ही उसी मोबाइल पर टूट पड़ते हैं। यानी जल्दी जागना, न जागना एक समान। दिनचर्या नियमन के लिए मोबाइल के अत्यधिक उपयोग पर भी नियंत्रण करना होगा। कुल मिलाकर अगर हम अपना हर दिन उत्साहपूर्वक जीना चाहते हैं तो जल्दी सोने और जागने की आदत डालनी ही होगी। इतना तय है कि जल्दी सोना-जागना हमें धनवान, बुद्धिमान बनाए न बनाए, स्वस्थ जरूर बनाएगा।
