चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में सियासी पारा चढ़ गया है। सभी राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से प्रचार-प्रसार में जुटे हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने घोषणा की है कि पार्टी 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देगी। कांग्रेस के इस ऐलान पर सियासत शुरू हो गई है। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने इसे ‘खोखला वादा’ बताया था। इसी बीच मायावती का एक पुराना इंटरव्यू भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें वरिष्ठ पत्रकार प्रभु चावला उनसे कई सवाल पूछते दिख रहे हैं।
प्रभु चावला सवाल करते हैं, ‘अगर आपकी सरकार के सभी फैसले बहुजन समाज और देशहित में लिए गए थे, जैसा आप कह रही हैं कि सीबीआई मेरे पीछे पड़ी हुई है, आपके खिलाफ जांच चल रही है तो इसमें देशहित की बात कहां से आ गई?’ इसके जवाब में मायावती कहती हैं, ‘मैं आपको बताना चाहती हूं कि इस देश में करोड़ों दलित-शोषित समाज के लोगों की जनसंख्या 85 प्रतिशत है। मैं इस समाज की आवाज हूं, अगर उनकी आवाज के ऊपर कोई हमला होता है तो वो मेरे ऊपर अटैक नहीं, बल्कि बहुजन समाज के ऊपर अटैक है।’
बीजेपी सरकार में शुरू हुआ प्रोजेक्ट? प्रभु चावला अगला सवाल करते हैं, ‘अभी जांच में सामने आया कि आपकी आय और संपत्ति के बीच बहुत अंतर है। अब इसे दलित समाज का मामला तो बताया नहीं जा सकता। अगर आपने राजनीति में आकर पैसे ज्यादा बनाए हैं, जो आपके ऊपर आरोप भी लगे हैं तो इसे कैसे दलित समाज की भलाई बता दोगे?’ मायावती जवाब देती हैं, ‘सीबीआई तो गलत प्रचार करती है, लेकिन मीडिया की मानसिकता में भी मुझे बदलाव नजर नहीं आ रहा है। मीडिया अभी मानवतावादी तो नहीं है। ये पूरा मामला मेरी सरकार में नहीं बल्कि बीजेपी सरकार में शुरू हुआ था।’
अपनी सफाई में मायावती आगे कहती हैं, ‘ताज मामले की मंजूरी तो राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए मिली थी। हम लोग 2003 में बीजेपी से अलग हुए। उससे पहले ताज प्रकरण मामला तो कुछ था ही नहीं। बीजेपी ने सीबीआई का सहारा लेकर मुझे गलत फंसाया। अब कांग्रेस भी इसका लाभ उठाना चाहती है। मैं ऐसा इसलिए कह रही हूं क्योंकि इन दोनों पार्टियों में कोई अंतर नहीं है। बीजेपी ने मुझे इस मामले में फंसाया है और कांग्रेस मुझे फंसाकर रखना चाहती है, बस इतना ही अंतर है।’
क्या है ताज कॉरिडोर मामला: साल 2002 में तत्कालीन सीएम मायावती ने ताज की खूबसूरती बढ़ाने के नाम पर 175 करोड़ रुपए की परियोजनाएं लॉन्च की थीं। आरोप लगा था कि पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी मिले बिना ही सरकारी खजाने से 17 करोड़ रुपए जारी कर दिए गए थे। 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सीबीआई जांच के आदेश दे दिए थे।
2007 में सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में मायावती और नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खिलाफ फर्जीवाड़े के आरोप लगाए थे, लेकिन मायावती की सत्ता वापसी के बाद राज्यपाल टीवी राजेश्वर ने इस केस में मुकदमा चलाने की इजाजत देने से मना कर दिया था और सीबीआई की कार्रवाई ठप हो गई थी।