साल 2007 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने बहुमत के साथ सूबे में सरकार बना ली थी। चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में बढ़त हासिल करने वाली समाजवादी पार्टी और उसके तत्कालीन मुखिया मुलायम सिंह यादव समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर चूक कहां हो गई और अब पार्टी का उत्थान दोबारा कैसे किया जाए। ऐसे हालात में कैसे युवा अखिलेश यादव बने पार्टी को 5 साल बाद 2012 में सत्ता में वापस लाने का जरिया, इन सवालों का जवाब दिया है लेखिका प्रिया सहगल ने अपनी किताब ‘द कंटेंडर्स’ में।
अमर सिंह दिखाई कामयाबी की सीढ़ी: प्रिया सहगल की पुस्तक ‘द कंटेंडर्स’ के मुताबिक 2007 में मायावती से हार के बाद सपा की एक मंथन बैठक हुई। इस मंथन में अमर सिंह, रामगोपाल यादव, और जयाप्रदा भी मौजूद थे। तभी अमर सिंह ने समाजवाद पार्टी की कमान नौजवान खून के हवाले करने की बात कही और अखिलेश यादव का नाम यूपी प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए आगे किया। पुस्तक के मुताबिक “तब अमर सिंह ने कहा था कि नए दौर की राजनीति में नौजवान नेता की जरूरत है। उस बैठक में इस पर तब कोई फैसला नहीं हो पाया। हालांकि अखिलेश सन 2000 में लोकसभा के लिए कन्नौज से चुने जा चुके थे।”
अखिलेश यादव और हाना मोंटेना: प्रिया सहगल कहती हैं कि जब मीटिंग में टीपू को यूपी सपा का सुल्तान बनाने पर फैसला नहीं हो पाया, तब एक अंग्रेज़ी टीवी सीरियल ने अमर सिंह और अखिलेश यादव की राह आसान बनाई। प्रिया सहगल की किताब ‘द कंटेंडर्स’ के मुताबिक “उस दिन की बैठक में अमर सिंह ने अपनी दोनों जुड़वा बेटियों में से एक से उसके फेवरेट टीवी धारावाहिक के बारे में पूछा। जवाब मिला हाना मोंटेना (Hannah Montana)।
मुलायम सिंह इस शो का नाम सुनकर अचरज में पड़ गए क्योंकि उन्होंने ऐसा नाम पहले कभी नहीं सुना था। उन्होंने चंद्रकांत, रामायण, अलिफलैला जैसे धारावाहिकों के नाम सुने थे। अमर सिंह ने इसको नई उम्र और नए लोगों की समझ के साथ जोड़ा और कहा नई उम्र की जरूरत पार्टी को है। मुलायम ने कहा कि वो इस बारे में पार्टी के विचारक जनेश्वर मिश्र से बात करेंगे…।”
अखिलेश क्यों नहीं छूते सपा नेताओं के पैर: मुलायम ने अखिलेश को राजनीति में फ्रंट फुट पर उतारने के लिए जनेवश्वर मिश्र से ज़िक्र छेड़ा। जनेश्वर मिश्र ने भी नई उम्र के हाथों में पार्टी का भविष्य होने पर सहमति जताई, क्योंकि तब मुलायम राजनीति के धुरंधर थे, सपा की ओर से राजनीति की पिच पर उतरकर फ्रंटफुट पर बैटिंग कर रहे थे। मगर उस दिन के बाद से अखिलेश को समाजवादी पार्टी का भविष्य माना जाने लगा।
मुलायम, जनेश्वर जी का रूख समझ चुके थे। प्रिया सहगल की किताब के मुताबिक “एक बार अखिलेश यादव जनेश्वर मिश्र से मिलने गए, अखिलेश ने जनेश्वर जी के पैर छुए तो जनेश्वर जी ने अखिलेश से कहा कि सबके पैर ही छूते रहोगे तो पार्टी को अनुशासन में कैसे रखोगे। उसके बाद अखिलेश ने समाजवादी पार्टी में बहुत से वरिष्ठ लोगों के पैर छूने कम कर दिए, केवल परिवार के लोगों के ही पैर छूते थे…।”
आज इतने सालों बाद जनेश्वर मिश्र की वो सीख यादकर करके राजनीतिक पंडित कहते हैं कि अगर “उस समय अखिलेश यादव ने छोटे लोहिया की नसीहत को नहीं माना होता, तो 2016 में पार्टी के अंदर उठे तूफान से कामयाबी के साथ पार नहीं पाना उनके लिए आसान नहीं होता।” बड़ों को अनुशासन में रखने की वो सीख अखिलेश ने उस अमर सिंह के खिलाफ भी अपनाई, जिनकी बदौलत उन्हें यूपी सपा की कमान मिली थी और जिसके बाद पार्टी के अंदर अखिलेश ने ऊंचाइंयों की तरफ कदम बढ़ाना शुरु कर दिया था।