Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मैसूरु चामुंडी मंदिर में दशहरा उत्सव के उद्घाटन में बानू मुश्ताक को आमंत्रित करने के कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिक खारिज कर दी।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट की मुताबिक, याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट पीबी सुरेश ने दलील दी कि किसी गैर-हिंदू व्यक्ति को पूजा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इसके बाद जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने उनके इस तर्क पर कहा कि खारिज। सुरेश ने दलील दी कि मंदिर के अंदर पूजा को धर्मनिरपेक्ष कार्य नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से राजनीतिक है। कोई कारण नहीं है कि उन्हें धार्मिक उत्सव के लिए मंदिर के अंदर लाया जाए। जस्टिस नाथ ने फिर दोहराया कि खारिज।
सीनियर एडवोकेट ने बिना फिर आरोप लगाया कि आमंत्रित अतिथि मुश्ताक ने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां की थीं, इसलिए ऐसे व्यक्ति को आमंत्रित नहीं किया जा सकता। जस्टिस नाथ ने कहा कि मामला खारिज कर दिया गया है। हमने तीन बार खारिज कहा है। और कितनी बार खारिज करने की जरूरत है? अगला मामला।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने 16 सितंबर को कहा था कि किसी विशेष धर्म या आस्था को मानने वाले व्यक्ति का किसी दूसरे धर्म के त्योहारों में शामिल होना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि बानू के लिए हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होना गलत होगा। क्योंकि इन अनुष्ठानों में पवित्र दीप जलाना, देवता को फल-फूल चढ़ाना और वैदिक प्रार्थनाएं करनी होती हैं। यह भी कहा गया था कि ऐसी प्रथाएं केवल एक हिंदू ही कर सकता है।
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हालांकि, राज्य सरकार ने कहा था कि यह राज्य का समारोह है, किसी मंदिर या धार्मिक संस्थान का नहीं। इसलिए धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। ये उत्सव हर साल आयोजित किया जाता है। पहले भी वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, लेखकों और स्वतंत्रता सेनानियों को बुलाया गया है। राज्य सरकार ने कहा कि मुश्ताक को बुलाने का फैसला कमेटी का है। इसमें विभिन्न दलों के प्रतिनिधि और और विभिन्न सरकारी अधिकारी शामिल थे।
बानू मुश्ताक कौन हैं?
62 वर्षीय बानू मुश्ताक एक कन्नड़ लेखिका, कार्यकर्ता और किसान एवं कन्नड़ भाषा आंदोलन की पूर्व सदस्य हैं। मई 2025 में वह अपने लघु कहानी संग्रह एडेया हनाटे (हार्ट लैंप) (Edeya Hanate (Heart Lamp) के लिए अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली कन्नड़ लेखिका बनीं। जिसका दीपा भस्थ ने अंग्रेजी में अनुवाद किया था।
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