केंद्र सरकार ने शुक्रवार को दिल्ली हाई कोर्ट में कहा कि वह उस जनहित याचिका का विरोध करती है, जिसमें एयर प्यूरीफायर को चिकित्सा उपकरण मानकर उन पर जीएसटी 18% से घटाकर 5% करने की मांग की गई है। सरकार का कहना है कि अगर अदालत इस मामले में कोई निर्देश देती है, तो यह कानून बनाने के अधिकार में दखल होगा। इससे संविधान में तय की गई शक्तियों के बंटवारे की व्यवस्था और मूल ढांचे का उल्लंघन होगा।
सरकार की ओर से पेश सहायक महासचिव एन. वेंकटरमन ने कहा कि इस याचिका पर सुनवाई करना “मुसीबतों को न्योता देने” जैसा होगा। उन्होंने बताया कि इससे केंद्र सरकार संवैधानिक रूप से असहज स्थिति में आ जाएगी। उन्होंने कहा कि संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्टों में की गई सिफारिशों और जीएसटी परिषद की बैठकों में प्रस्तावों पर विचार-विमर्श के लिए पहले से ही एक विधायी प्रक्रिया मौजूद है। उन्होंने पूछा, “इस प्रक्रिया को अदालती कार्यवाही के माध्यम से कैसे रोका जा सकता है?”
हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट ने 24 दिसंबर को केंद्र को सुझाव दिया था कि दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति को देखते हुए परिषद की आभासी बैठक (Virtual Meeting) बुलाने पर विचार किया जाए, लेकिन एएसजी वेंकटरमन ने शुक्रवार को यह स्पष्ट कर दिया कि ऐसा करना संभव नहीं होगा।
एएसजी ने ‘जीएसटी परिषद के कामकाज की प्रक्रिया और संचालन विनियम’ के विनियम 14 और 15 का हवाला देते हुए, जिसमें परिषद के समक्ष प्रस्तावों पर विचार-विमर्श और मतदान करने के तरीके का विवरण दिया गया है, जिसमें गुप्त मतदान के माध्यम से प्रस्ताव पर मतदान भी शामिल है। एएसजी ने स्पष्ट किया कि इस प्रक्रिया में परिषद के सभी सदस्यों की व्यक्तिगत रूप से मौजूद रहना जरूरी होता है।
जनहित याचिका का विरोध करते हुए और उसके मकसद पर सवाल उठाते हुए एएसजी ने कहा कि यह असल में जनहित याचिका है ही नहीं। उनके अनुसार, जीएसटी का मुद्दा सिर्फ एक बहाना है और इससे कई नई समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
उन्होंने कहा कि जीएसटी से जुड़े फैसले लेने की एक तय प्रक्रिया होती है और सरकार उसी प्रक्रिया का पालन करेगी। याचिका के जरिए जीएसटी परिषद को कोई निर्देश देने के लिए अदालत से आदेश लेना संवैधानिक रूप से ठीक नहीं है, क्योंकि यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ है।
एएसजी ने यह भी कहा कि सरकार जीएसटी परिषद की बैठक की कोई तय तारीख नहीं बता सकती, लेकिन याचिकाकर्ता का एजेंडा उन्हें साफ दिखाई दे रहा है, जिससे सरकार चिंतित है।
उन्होंने आगे बताया कि अगर एयर प्यूरीफायर को चिकित्सा उपकरण घोषित किया गया, तो इसके लिए लाइसेंस लेने की प्रक्रिया बहुत जटिल हो जाएगी, क्योंकि यह क्षेत्र कड़े नियमों से जुड़ा है। इसके लिए एक पूरी प्रक्रिया है, जिसे अदालत के जरिए नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अंत में उन्होंने कहा कि याचिका में कई बातें पहले से सोची-समझी लगती हैं, हालांकि हो सकता है कि उनका आकलन गलत हो।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने 24 दिसंबर को केंद्र सरकार से कहा था कि वह यह पता करे कि इस मुद्दे पर चर्चा के लिए जीएसटी परिषद की बैठक कब बुलाई जा सकती है। साथ ही, अदालत ने यह भी सुझाव दिया था कि दिल्ली-एनसीआर में खतरनाक स्तर के वायु प्रदूषण को देखते हुए, जल्द से जल्द एक ऑनलाइन (वर्चुअल) बैठक बुलाने पर भी विचार किया जा सकता है। शुक्रवार को न्यायमूर्ति विकास महाजन और विनोद कुमार की पीठ के समक्ष जनहित याचिका पर सुनवाई हुई।
जनहित याचिका में मांगी गई राहत का विरोध करने के बाद, एएसजी एन. वेंकटरमन से बात करते हुए न्यायमूर्ति महाजन ने मौखिक टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि न्यायालय की एकमात्र चिंता, जैसा कि मैं 24 दिसंबर के आदेश से देख सकता हूं। अदालत की चिंता सिर्फ इतनी है कि दिल्ली और आसपास के इलाकों में गंभीर प्रदूषण को देखते हुए एयर प्यूरीफायर पर जीएसटी 18% से घटाकर 5% क्यों नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति ने कहा कि सरकार इस समस्या का कोई भी तरीका अपनाकर समाधान निकाले। उन्होंने बताया कि एयर प्यूरीफायर की कीमतें 10–12 हजार रुपये से शुरू होकर 60 हजार रुपये तक जाती हैं, जो आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं। इसलिए इन्हें ऐसी कीमत पर लाने की जरूरत है, ताकि आम लोग भी इन्हें खरीद सकें। उन्होंने यह भी कहा कि इस पर फैसला लेने के लिए जीएसटी परिषद की बैठक में क्या दिक्कत है, परिषद इस मुद्दे पर निर्णय ले सकती है।
एएसजी ने जवाब दिया कि जीएसटी परिषद में देश भर के वित्त मंत्री शामिल हैं और “प्रत्येक इसे बहुत अलग तरीके से देखता है।”
उन्होंने आगे कहा कि कल केंद्र के वित्त मंत्रालय में इस मामले को लेकर एक आपात बैठक हुई थी। सरकार को इस याचिका को लेकर कई चिंताएं हैं। उनके अनुसार यह एक भ्रामक याचिका है और सरकार यह जानना चाहती है कि इसके पीछे कौन है। उन्होंने कहा कि यह असल में जनहित याचिका नहीं है और इसका जीएसटी से भी सीधा संबंध नहीं है, जीएसटी को सिर्फ बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। एयर प्यूरीफायर को चिकित्सा उपकरण घोषित करने की मांग वाली इस याचिका में स्वास्थ्य मंत्रालय को पक्षकार भी नहीं बनाया गया है।
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को समझ नहीं आ रहा कि याचिकाकर्ता का असली उद्देश्य क्या है। यह भी साफ नहीं है कि कहीं कोई व्यक्ति या कंपनी एयर प्यूरीफायर के बाजार में एकाधिकार बनाना तो नहीं चाहती। इसलिए सरकार इस याचिका को लेकर काफी चिंतित है और उनका शुरुआती मत यही है कि यह एक उलझी हुई और भ्रामक याचिका है।
एएसजी वेंकटरमन ने चेतावनी दी कि इस मामले में अदालत का कोई भी निर्देश देने से विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के बंटवारे का उल्लंघन हो सकता है। उन्होंने कहा कि शक्तियों का पृथक्करण संविधान का एक मूल सिद्धांत है।
उन्होंने यह भी बताया कि संसद की विज्ञान और प्रौद्योगिकी संबंधी स्थायी समिति ने इस सत्र में एक रिपोर्ट पेश की है, जिसमें एयर प्यूरीफायर और हेपा फिल्टर पर जीएसटी घटाने या खत्म करने की सिफारिश की गई है। यह रिपोर्ट पर्यावरण मंत्रालय को भेज दी गई है। इसके बाद पर्यावरण मंत्रालय, राजस्व विभाग से इस पर कार्रवाई की रिपोर्ट मांगेगा। अगर जरूरत पड़ी, तो राजस्व विभाग अपने पक्ष में जरूरी जानकारी और साक्ष्य पेश करेगा।
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अदालत ने जीएसटी परिषद की बैठक से जुड़ी एएसजी की दलीलों को ध्यान में रखा, जिसमें कहा गया था कि नियमों के अनुसार वर्चुअल बैठक की अनुमति नहीं है। इसके बाद अदालत ने केंद्र सरकार को 10 दिनों के भीतर अपना जवाब (प्रति-हलफनामा) दाखिल करने की अनुमति दी। साथ ही याचिकाकर्ता को भी अगली सुनवाई की तारीख तक उस जवाब पर अपना प्रत्युत्तर दाखिल करने की अनुमति दी गई। दिल्ली हाई कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 9 जनवरी को करेगा।
इस जनहित याचिका में स्वयं पक्षकार के रूप में पेश हुए वकील कपिल मदन ने याचिका के माध्यम से यह तर्क दिया है कि परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 11 फरवरी 2020 को जारी अधिसूचना के अनुसार एयर प्यूरीफायर को चिकित्सा उपकरण के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। इस वर्गीकरण के बाद, एयर प्यूरीफायर पर वर्तमान में लगने वाले 18% जीएसटी के बजाय 5% जीएसटी लगाया जा सकता है।
