सुप्रीम कोर्ट ने महत्त्वपूर्ण फैसले में साफ किया है कि हिंदू अविभाजित परिवार (एययूएफ) का कर्ता (प्रमुख) बेटी की शादी के खर्च को पूरा करने के लिए पारिवारिक संपत्ति बेच सकता है। यह कानूनी आवश्यकता की श्रेणी में आता है।
न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति जायमाल्य बागची की पीठ ने कहा कि भले ही शादी संपत्ति की बिक्री से पहले हो चुकी हो, लेकिन विवाह हेतु लिए गए कर्ज और खर्च का असर वर्षों तक बना रहता है। इसलिए बिक्री वैध मानी जाएगी। पीठ ने कर्नाटक हाई कोर्ट का 2007 का वह फैसला रद्द कर दिया, जिसमें निचली अदालत का आदेश पलटकर एचयूएफ की संपत्ति बिक्री को अवैध बताया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला पलटा
निचली अदालत ने पहले खरीदार के पक्ष में निर्णय दिया था। मामला उस समय शुरू हुआ जब एचयूएफ के चार बेटों में से एक बेटे ने अपने पिता (कर्ता) की ओर से की गई बिक्री को चुनौती दी। पिता और उनकी पत्नी ने बयान दिया कि संपत्ति बेचने का मकसद बेटी काशीबाई की शादी के लिए उठाए गए खर्च को चुकाना था। इस बिक्री को 5वें प्रतिवादी यानी खरीदार ने भी ‘कानूनी आवश्यकता’ का हवाला देते हुए सही ठहराया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि खरीदार ने सबूत पेश कर यह साबित कर दिया कि संपत्ति की बिक्री शादी के खर्च से जुड़ी थी। अदालत ने पाया कि रसीदों पर पिता के साथ उनकी पत्नी, बेटी और दो बेटों के हस्ताक्षर भी थे। जिससे यह साबित होता है कि परिवार की सहमति इस सौदे में शामिल थी।