सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश राज्य और उत्तर प्रदेश पुलिस को एक महिला वकील द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया। महिला वकील की याचिका में आरोप लगाया गया है कि नोएडा के सेक्टर 126 पुलिस स्टेशन के पुलिस अधिकारियों ने कर्तव्यों का पालन करते समय उसे अवैध रूप से हिरासत में लिया, यौन उत्पीड़न किया, यातना दी और धमकी दी।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस एन. वी. अंजारिया की पीठ ने गौतमबुद्ध नगर जिले के पुलिस आयुक्त को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि थाने में लगे सीसीटीवी कैमरे की संबंधित अवधि की फुटेज को हटाया या नष्ट न किया जाए, बल्कि उसे सीलबंद लिफाफे में रखा जाए।
शीर्ष अदालत उस महिला अधिवक्ता की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसने दावा किया था कि तीन दिसंबर की देर रात नोएडा के सेक्टर 126 पुलिस थाने में पुलिसकर्मियों द्वारा उसे 14 घंटे तक ‘अवैध हिरासत में रखा गया और इस दौरान उसका यौन उत्पीड़न’ किया गया। उसने दावा किया है कि हिरासत में उसे यातनाएं दी गईं और जोर-जबरदस्ती की गई, जबकि वह अपने मुवक्किल के प्रति अपने पेशेवर कर्तव्य का निर्वहन कर रही थी।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि यह एक बेहद घिनौना मामला है, जिसमें एक महिला अधिवक्ता के साथ यौन उत्पीड़न किया गया और उसे अवैध हिरासत में रखा गया। विकास सिंह ने कहा, ‘‘यह बेहद घिनौना मामला दिल्ली के आसपास ही घट रहा है। अगर यह नोएडा में हो रहा है, तो पूरे देश की हालत के बारे में सोचिए।’’
पीठ ने कहा कि सामान्यतया वह संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका पर विचार नहीं करती और याचिकाकर्ता को संबंधित उच्च न्यायालय में जाने की स्वतंत्रता देती है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह पहले से ही राजस्थान के पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने और उनके संचालन से संबंधित एक अलग मामले पर सुनवाई कर रही है।
पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, याचिका में लगाए गए गंभीर आरोपों और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि यह मामला पुलिस थाने में घटना के दौरान सीसीटीवी कैमरों को अवरुद्ध करने से भी संबंधित है, हम इस याचिका पर विचार कर रहे हैं। नोटिस जारी करें, जिसका जवाब सात जनवरी को देना होगा।’’ इसने यह भी कहा, ‘‘इस बीच, गौतमबुद्ध नगर के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया जाता है कि वह यह सुनिश्चित करें कि उक्त अवधि की संबंधित पुलिस थाने की सीसीटीवी फुटेज को हटाया या नष्ट न किया जाए और उसे सीलबंद लिफाफे में रखा जाए।’’
सिंह ने इस आदेश के बाद, याचिकाकर्ता की सुरक्षा का मुद्दा उठाया। पीठ ने कहा, ‘‘इस आदेश के पारित होने के बाद वे उसे छूने की हिम्मत नहीं करेंगे।’’ सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि पुलिस थाने में लगे सीसीटीवी कैमरों को तुरंत जब्त किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता की पिटाई की गई और उसे अपनी शिकायत वापस लेने के लिए मजबूर किया गया।
पीठ ने पहले पूछा कि याचिकाकर्ता ने अपनी शिकायत लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख क्यों नहीं किया। पीठ ने टिप्प्णी की, ‘‘हमारी पूरी सहानुभूति है। उच्च न्यायालय उचित कार्रवाई करे।’’
सिंह ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय याचिका को उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर सकता है। पीठ ने कहा, ‘‘मुश्किल यह है कि अगर हम इस (याचिका) पर विचार करना शुरू कर देते हैं, तो दिल्ली के सभी इलाकों से जुड़े सभी मामले सिर्फ शीर्ष अदालत में ही आएंगे।’’ सिंह ने फिर पीठ से इसे एक तरह का ‘‘प्रायोगिक मामला’’ (टेस्ट केस) मानने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय सीसीटीवी मामले पर भी नजर रख रहा है, जो बेहद महत्वपूर्ण है।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि उच्चतम न्यायालय को पूरे देश को यह संदेश देना चाहिए कि इस तरह की घटनाओं को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसके बाद पीठ ने याचिका पर सुनवाई करने को लेकर सहमति जताई और इस संबंध में नोटिस जारी किया।
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याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता को केवल अपने पेशेवर कर्तव्य का निर्वहन करने और गंभीर रूप से घायल अपने मुवक्किल के लिए अनिवार्य प्राथमिकी दर्ज कराने पर जोर देने के कारण निशाना बनाया गया।
याचिका में दावा किया गया है, ‘‘पुलिसकर्मियों द्वारा याचिकाकर्ता की गर्दन पर सरकारी पिस्तौल रखकर और उसे मोबाइल फोन का पासवर्ड सौंपने के लिए मजबूर करने के कारण उसकी जान को तत्काल खतरा पैदा हो गया। उसे फर्जी मुठभेड़ में जान से मारने की लगातार धमकियां भी दी गईं।’’ इसमें आरोप लगाया गया कि अधिकारियों ने पुलिस स्टेशन परिसर से सीसीटीवी प्रणाली को दुर्भावनापूर्ण तरीके से निष्क्रिय कर दिया या हटा दिया, जो उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित बाध्यकारी आदेश का घोर उल्लंघन था।
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