जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने कहा कि ‘एक हत्यारा पीड़ित के शरीर को नष्ट करता है, लेकिन एक बलात्कारी पीड़ित की आत्मा को नष्ट कर देता है’। हालांकि इसके बावजूद कोर्ट ने बलात्कार के आरोपी एक व्यक्ति को जमानत दे दी।
जस्टिस मोहम्मद यूसुफ वानी एक ऐसे व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जो दिसंबर 2024 से जेल में बंद था और जिस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था।
कोर्ट ने कहा, “आरोपी पर लगाया गया अपराध बहुत गंभीर और समाज विरोधी है। एक हत्यारा पीड़ित के शरीर को नष्ट करता है, लेकिन एक बलात्कारी पीड़ित की आत्मा को नष्ट कर देता है। समाज एक अपवित्र मानी जाने वाली लड़की को नफरत और उपेक्षा की नजर से देखता है, और इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह अपनी मर्जी से ऐसा बनी हो या जबरदस्ती या मजबूरी में।”
हालांकि, जज ने यह भी कहा कि आरोपी 2024 से इस मामले में जेल में है, यानी एक साल से अधिक समय हो चुका है। मुकदमे की सुनवाई चल रही है और पीड़िता का बयान पहले ही दर्ज किया जा चुका है। आदेश में कहा गया कि ऐसी कोई आशंका नहीं है कि आरोपी पीड़िता को प्रभावित करेगा या उसे मुकदमे के दौरान घटना की सच्ची जानकारी देने से रोकेगा।
क्या है मामला?
आरोपी की जमानत याचिका ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दी थी। इसके बाद उसने हाईकोर्ट का रुख किया था। आरोप के खिलाफ साल 2019 में POCSO एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था। बाद में ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता के बयान के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि वह बालिग है, जिसके बाद आरोप को बदलकर रणबीर दंड संहिता (RPC) की धारा 376 (बलात्कार) के तहत कर दिया गया।
आरोपी ने कोर्ट में कहा कि वह भारत का कानून मानने वाला नागरिक है। उसने यह भी कहा कि मामले के बाद के चरण में पीड़िता के बयान में बदलाव आया है। इन कारणों से उसने अपने संवैधानिक और कानूनी अधिकारों की सुरक्षा की मांग की। आरोपी का कहना है कि वह निर्दोष है और उसे इस मामले में गलत तरीके से फंसाया गया है।
आरोपी के वकील ने दलील दी कि आपराधिक कार्यवाही के बाद के चरणों में पीड़िता ने अपने बयान में जो बदलाव किए हैं, वे बढ़ा-चढ़ाकर कहे गए हैं और उनमें हेरफेर किया गया है।आरोपी के वकील ने कहा कि जब मामले की शुरुआत हुई थी और POCSO कानून के तहत आरोप लगाए गए थे, तब पीड़िता ने, जबकि उसका वकील भी था, बलात्कार का कोई आरोप नहीं लगाया था। वकील का कहना है कि जब POCSO के तहत आरोप साबित नहीं हो पाए, तभी बाद में बलात्कार का आरोप जोड़ा गया।
जमानत के विरोध में अभियोजन पक्ष ने क्या दलील दी?
हालांकि, अभियोजन पक्ष ने जमानत की अर्जी का विरोध किया। उनका कहना था कि आरोपी ने एक बहुत ही गंभीर अपराध किया है, जो जमानत योग्य नहीं है और यह समाज की नैतिकता की जड़ पर चोट करता है। अभियोजन पक्ष ने कहा कि आरोपी जमानत को अपना अधिकार नहीं मान सकता और उसकी जमानत अर्जी को सीधे खारिज किया जाना चाहिए।
अभियोजन पक्ष ने कहा कि आरोपी बहुत प्रभावशाली लोग हैं। अगर उन्हें जमानत दी गई, तो यह आशंका है कि वे गवाहों को प्रभावित या डराने की कोशिश कर सकते हैं, जिससे न्याय की निष्पक्ष प्रक्रिया में बाधा आएगी। अभियोजन ने यह भी कहा कि सिर्फ यह बात कि आरोपी काफी समय से जेल में है, उसे जमानत देने का आधार नहीं बनती।
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