दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को राहुल, सोनिया गांधी और अन्य लोगों से जवाब मांगा है। यह मामला प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की उस याचिका से जुड़ा है, जिसमें ईडी ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी है। दरअसल, पिछले हफ्ते निचली अदालत ने नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस नेताओं और अन्य के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी ईडी की चार्जशीट पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया था। इसी फैसले के खिलाफ ईडी ने दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया है।

हाई कोर्ट ने इस मामले में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, यंग इंडियन के निदेशक सुमन दुबे, सैम पित्रोदा, डॉटेक्स मर्चेंडाइज प्राइवेट लिमिटेड और सुनील भंडारी समेत सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है। न्यायालय इस मामले की अगली सुनवाई मार्च 2026 में करेगा।

निचली अदालत ने ‘बड़ी गलती की है’: सॉलिसिटर जनरल मेहता

इस साल 9 अप्रैल को ईडी ने नेशनल हेराल्ड मामले में आरोपपत्र दाखिल किया। हालांकि, निचली अदालत ने इस आधार पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत जांच एजेंसी के जांच अधिकारियों की शिकायतें दर्ज की जाती हैं, न कि आम जनता की निजी शिकायतें।

ईडी की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने शुरुआत में ही न्यायमूर्ति रविंदर दुडेजा को सूचित किया कि यदि नेशनल हेराल्ड मामले में निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा जाता है, तो यह “कई मामलों को प्रभावित करेगा” और यह प्रदर्शित करेगा कि “(निचली) अदालत ने कितनी बड़ी गलती की है”।

मेहता ने दलील दी कि विवादित आदेश का मतलब यह है कि अगर कोई व्यक्ति पुलिस में एफआईआर दर्ज कराता है, तो उस मामले में ईडी जांच कर सकती है। लेकिन अगर कोई मामला सीधे अदालत में दायर निजी शिकायत के आधार पर चलता है और अदालत दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 200 के तहत संज्ञान लेती है, तो उसे ईडी की जांच का आधार नहीं माना जा सकता।

मेहता ने कहा कि अदालत ने एफआईआर और निजी शिकायत के बीच ऐसा अंतर किया है। चुनौती दिए गए आदेश में यह कहा गया है कि अगर मामला निजी शिकायत का है, तो भले ही अदालत ने अनुसूचित अपराध का संज्ञान लिया हो, ईडी कार्रवाई नहीं कर सकती। उनके मुताबिक यह गलत है, क्योंकि ईडी को जांच शुरू करने के लिए एफआईआर से ही शुरुआत करनी चाहिए।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा, “आवश्यक यह है (पीएमएलए के अनुसार), कि अनुसूचित अपराध से संबंधित आपराधिक गतिविधि का आरोप होना चाहिए… चाहे अनुसूचित अपराध एफआईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट) से शुरू हुआ हो या (निजी) आपराधिक शिकायत से, मेरे अनुसार, अकादमिक और व्यावहारिक रूप से आपराधिक शिकायत एफआईआर से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।”

सुनवाई के दौरान जस्टिस दुदेजा ने मौखिक रूप से पूछा कि क्या ऐसे कोई और मामले हैं, जिनमें किसी निजी शिकायत के आधार पर अनुसूचित अपराध का संज्ञान लिया गया हो और बाद में पीएमएलए के तहत कार्रवाई शुरू की गई हो। इस पर मेहता ने कहा कि उनकी जानकारी में ऐसा कोई भी मामला नहीं है।

सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि इस मामले में एक मूल अपराध है, जिसे राज्यसभा के पूर्व भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने निजी शिकायत के जरिए उठाया था। इस शिकायत पर संबंधित अदालत ने संज्ञान भी लिया था। बाद में इस संज्ञान को चुनौती देने वाली याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था।

‘एफआईआर केवल संज्ञेय अपराधों के लिए’

ट्रायल कोर्ट के आदेश में दिए गए तर्क का विरोध करते हुए मेहता ने बताया कि गैर-संज्ञेय अपराधों के लिए वैसे भी एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा, “एफआईआर केवल संज्ञेय अपराधों के लिए होती है। पीएमएलए की अनुसूची में कई धाराएं हैं जो गैर-संज्ञेय हैं… इनमें से कुछ को कानूनन एफआईआर में शामिल नहीं किया जा सकता। मुझे सक्षम न्यायालय के समक्ष जाना होगा। अब सक्षम न्यायालय के पास विकल्प हैं- शिकायतकर्ता, यदि कोई गवाह हों तो उनसे पूछताछ करना और उसके बाद संज्ञान लेना। वह पुलिस या किसी अन्य को जांच का निर्देश भी दे सकता है… फिर (पीएमएलए के तहत अभियोजन का) क्या होगा?”

नेशनल हेराल्ड मामले में 16 दिसंबर के फैसले के खिलाफ अपनी पुनरीक्षण याचिका में ईडी ने यह तर्क दिया है कि यह फैसला मनी लॉन्ड्रिंग करने वालों के एक वर्ग को केवल इस आधार पर छूट देता है कि इस मामले में अनुसूचित अपराध की सूचना एक निजी व्यक्ति द्वारा दी गई थी, न कि एफआईआर या अनुसूचित अपराध की जांच के लिए अधिकृत व्यक्ति द्वारा।

एजेएल के शेयरधारकों और एआईसीसी के दानदाताओं के साथ ‘धोखाधड़ी’ हुई है। नेशनल हेराल्ड मामले में, ईडी ने मुख्य रूप से आरोप लगाया है कि गांधी परिवार ने कांग्रेस के कुछ अन्य पदाधिकारियों के साथ मिलकर एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) की 2,000 करोड़ रुपये की संपत्ति हड़पने के लिए आपराधिक साजिश रची। एजेएल एक सार्वजनिक गैर-सूचीबद्ध कंपनी है और नेशनल हेराल्ड अखबार की प्रकाशक है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) ने एजेएल को 90.21 करोड़ रुपये का ऋण दिया था।

इसके बाद यंग इंडियन नाम की एक निजी गैर-लाभकारी कंपनी ने एआईसीसी से 50 लाख रुपये में कर्ज वसूली का अधिकार खरीद लिया। इस कंपनी में सोनिया गांधी और राहुल गांधी की मिलकर 76 प्रतिशत हिस्सेदारी थी।

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जांच एजेंसी के मुताबिक, एजेएल ने अपने 90.21 करोड़ रुपये के बकाया कर्ज को यंग इंडियन के पक्ष में 10 रुपये अंकित मूल्य वाले 9.02 करोड़ इक्विटी शेयरों में बदल दिया। एजेंसी का कहना है कि इससे एजेएल के शेयरधारकों और एआईसीसी के दानदाताओं के साथ धोखा हुआ। ये आरोप भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने साल 2014 में नेशनल हेराल्ड मामले को लेकर ईडी को दी गई एक निजी शिकायत में लगाए थे।

जुलाई 2014 में एजेंसी ने सुब्रमण्यम स्वामी की शिकायत के आधार पर कार्रवाई करने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को एक पत्र भेजा था। इसके बाद 2015 में ईडी के निदेशक ने भी सीबीआई निदेशक को पत्र लिखकर यही बात दोहराई। लेकिन इसके बावजूद सीबीआई ने इस मामले में एफआईआर दर्ज नहीं की।

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