Allahabad High Court: एक अंतरधार्मिक जोड़े को हिरासत में रखने के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी पुलिस कड़ी फटकार लगाई है। हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस की यह कार्रवाई गैरकानूनी है और संविधान के आर्टिकल 21 के तहत दिए गए मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है। हाई कोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया कि वे दंपती को उनकी पसंद की जगह पर सुरक्षित पहुंचाएं।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट की बेंच ने फैसला सुनाते हुए एक मुस्लिम पुरुष और एक हिंदू महिला को रिहा करने का आदेश दिया। इस सप्ताह यह जोड़ा कोर्ट में एक सुनवाई में हाज़िर होने के बाद लापता हो गया था। इसके बाद पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया था।

जस्टिस सलिल कुमार राय और जस्टिस दिवेश चंद्र सामंत ने नॉन-वर्किंग डे (शनिवार) को इस मामले की सुनवाई की। यह सुनवाई मुस्लिम पुरुष के भाई की ओर से बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने के बाद की गई। कोर्ट ने कहा कि इस जोड़े को पुलिस सुरक्षा में अलीगढ़ पहुंचाया जाए और इसके बाद भी उनकी पुलिस सुरक्षा जारी रखी जाए।

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कोर्ट ने प्रयागराज पुलिस कमिश्नर, अलीगढ़ और बरेली के एसएसपी को भी आदेश दिया कि वे जोड़े की सुरक्षा सुनिश्चित करें और किसी भी तरह के बाहरी हस्तक्षेप को रोकें। अदालत ने कहा कि महिला बालिग है और उसे पुलिस हिरासत में नहीं लिया जा सकता था। बेंच ने यह भी माना कि जोड़े को हिरासत में रखना उनकी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन था।

लड़की के पिता ने दर्ज कराई थी FIR

यह मामला तब सुर्खियों में आया जब महिला के पिता ने 27 सितंबर को अलीगढ़ के एक पुलिस स्टेशन में लड़के के खिलाफ प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराई थी। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई दिवाली की छुट्टियों के दौरान विशेष रूप से की। इससे पहले, 17 अक्टूबर को कोर्ट ने एक बंदी प्रत्‍यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए यूपी सरकार को जोड़े को कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया था। कोर्ट के समक्ष दंपती ने कहा कि उन्‍होंने अपनी इच्‍छा से शादी की है। किसी तरह का दबाव नहीं है।

कोर्ट ने सरकार के तर्क को सिरे से खारिज कर दिया। कहा कि लड़की बालिग है। इसलिए वह जिसे चाहे, उसके साथ रहने के लिए स्वतंत्र है। सामाजिक तनाव के डर से उनकी जीवन की स्वतंत्रता का हनन नहीं किया जा सकता। कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई 28 नवंबर को करेगी। अदालत ने अलीगढ़ के एसएसपी को जांच रिपोर्ट के साथ कोर्ट में पेश होने को कहा है।

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