इस समय देश के कई राज्यों में वोटर लिस्ट SIR प्रक्रिया चल रही है। इस प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक बहस भी जारी है। इसी बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यह सवाल उठाया कि क्या केवल सामाजिक सुरक्षा लाभ लेने के लिए आधार कार्ड रखने वाले ‘घुसपैठियों’ को भी वोटर माना जाना चाहिए।
संविधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए CJI सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली बेंच (जिसमें न्यायमूर्ति जॉयमल्य बागची भी शामिल थे) ने कहा, “आधार कार्ड एक कानून के तहत बनाया गया दस्तावेज है और उतनी ही सीमा तक वैध है, जितना कि उससे मिलने वाले लाभ या विशेषाधिकारों को मान्यता दी गई है। इस पर कोई विवाद नहीं हो सकता। आखिरकार, आधार कार्ड एक निश्चित उद्देश्य और एक निश्चित कानून के तहत ही तैयार किया जाता है। इस पर कोई मतभेद नहीं हो सकता।”
उन्होंने आगे कहा, “मान लीजिए कुछ लोग किसी दूसरे देश से, पड़ोसी देशों से भारत में आ जाते हैं, यहां काम करते हैं, रहते हैं – कोई गरीब रिक्शा-चलाने वाला है, कोई निर्माण स्थल पर मजदूरी करता है। अगर आप उसे आधार कार्ड इसलिए जारी करते हैं ताकि वह सब्सिडी वाले राशन या किसी अन्य लाभ का फायदा उठा सके, तो यह हमारे संवैधानिक मूल्यों और संवैधानिक नैतिकता का हिस्सा है। लेकिन क्या इसका यह मतलब है कि सिर्फ इसलिए कि उसे यह लाभ दिया गया है, अब उसे वोटर भी बना दिया जाए?”
कपिल सिब्बल की टिप्पणियों पर सीजेआई ने की टिप्पणी
CJI ने ये टिप्पणियां तब कीं जब वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल (पश्चिम बंगाल और केरल राज्यों की ओर से पेश हो रहे थे) ने आधार कार्ड होने के बावजूद वोटरों के नाम हटाए जाने का मुद्दा उठाया। कपिल सिब्बल ने कहा, “एक धारणा है। एक सेल्फ डिक्लेरेशन – मैं नागरिक हूं। मैं यहां रहता हूं। मेरे पास आधार कार्ड भी है। वह मेरा निवास प्रमाण है। आप उसे हटाना चाहते हैं, तो किसी प्रक्रिया के जरिए से हटाइए। और वह प्रक्रिया आपकी लॉर्डशिप के समक्ष स्थापित की जानी चाहिए।”
CJI ने बिहार SIR का किया उल्लेख
बिहार में हुए SIR के उदाहरण का उल्लेख करते हुए CJI ने कहा कि वहां बहुत कम आपत्तियांं आई थीं। उन्होंने कहा, “अगर कहीं कोई ऐसा मामला है जहां कोई व्यक्ति bona fide निवासी है, भारत का नागरिक है, और फिर भी उसका नाम हटा दिया गया है, तो हम ऐसे मामलों की तलाश बड़ी उत्सुकता और गंभीरता से कर रहे हैं ताकि प्रक्रियागत त्रुटि को सुधारा जा सके।”
कपिल सिब्बल ने कहा, “अगर मतदान के दिन कोई मतदाता मतदान केंद्र पर जाए और उसे पता चले कि उसका नाम सूची में नहीं है, तो वह क्या करेगा?”
CJI ने कहा कि जहां तक बिहार का सवाल है, मीडिया रोजाना रिपोर्ट कर रहा था और सबसे दूर-दराज इलाकों में बैठे लोग भी जान गए होंगे कि क्या हो रहा है। उन्होंने कहा, “कभी-कभी हमें मीडिया को भी पूरा श्रेय देना चाहिए। बिहार SIR में रोज मीडिया रिपोर्ट्स आ रही थीं। अगर कोई व्यक्ति सबसे दूर स्थित क्षेत्र में बैठा भी यह जानता है कि कुछ हो रहा है, लिस्ट तैयार हो रही है, नई वोटर लिस्ट जारी होने वाली है, तो क्या कोई यह कह सकता है कि मुझे पता ही नहीं था कि क्या हुआ?”
‘मृत वोटरों को नहीं हटा सकते सॉफ्टवेयर’
कपिल सिब्बल ने कहा कि केस ये नहीं है कि चुनाव आयोग के पास शक्तियां नहीं हैं। उन्होंने कहा, “मैं सिर्फ प्रक्रिया की बात कर रहा हूं, जो समावेशी होनी चाहिए। किसी भी तथ्य को साबित करने के लिए भार वोटर पर डालने का प्रयास हमारी संवैधानिक संस्कृति – जो स्वतंत्रता से पहले से चली आ रही है – के अनुरूप नहीं है।”
उन्होंने कहा कि अब ऐसे सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं, जिनसे डुप्लीकेट वोटर खोजकर हटाए जा सकते हैं और इसके लिए BLOs को वोटर्स के नाम काटने की इतनी व्यापक शक्ति देने की जरूरत नहीं है। इस पर जस्टिस बागची ने कहा कि सॉफ्टवेयर सिर्फ डुप्लीकेट मतदाताओं को हटा सकता है, मरे हुए व्यक्तियों को नहीं।”
मृत वोटर्स को हटाने की जरूरत समझाते हुए जस्टिस बागची ने कहा, “यह सब राजनीतिक झुकाव पर निर्भर करता है। जो राजनीतिक दल मजबूत होता है, वह सभी मृत वोटर्स को अपने पक्ष में ‘डलवाया हुआ’ दिखा सकता है। हम हवा में निर्णय नहीं लेते। यही वजह है है कि मृत वोटर्स को हटाना जरूरी है। इसलिए यह पार्टी A या पार्टी B का मुद्दा नहीं है… अगर सत्ता का झुकाव पार्टी A की ओर है, तो सभी मृत वोटर्स पार्टी A को ही वोट करेंगे।”
