पहलवान अमन सहरावत के लिए बहुत कुछ नहीं बदला है, लेकिन साथ ही सब कुछ बदल गया है। पेरिस ओलंपिक में भारत के एकमात्र पुरुष पहलवान सहरावत अब भी छत्रसाल स्टेडियम की सीटिंग गैलरी के नीचे एक छोटे से कमरे में दो अन्य पहलवानों के साथ रहते हैं। 20 साल के अमन सहरावत उस दीवार की ओर इशारा करते हैं, जिस पर उन्होंने मई में इस्तांबुल में विश्व ओलंपिक क्वालिफायर में ओलंपिक कोटा-स्थान विजेताओं को दिए जाने वाले बड़े आकार के ‘योग्य एथलीट’ प्रमाण पत्र को चिपकाया है।
अमन सहरावत ने ली रवि दहिया की जगह
57 किलोग्राम के पहलवान सहरावत ने टोक्यो ओलंपिक के रजत पदक विजेता रवि दहिया की जगह ली है। वह मॉडल टाउन में स्थित पहलवानों की नर्सरी के लिए मशाल वाहक के रूप में उभरे हैं। द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता कोच ललित कुमार कहते हैं कि जब से उन्होंने ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया है, 20 वर्षीय सहरावत पहले से ज्यादा मुस्कुरा रहे हैं। अप्रैल में किर्गिस्तान के बिश्केक से लौटने पर अमन सहरावत उदास थे। उस समय, पुरुष दल के बाकी सदस्यों की तरह, वह भी एशियाई क्वालिफायर में ओलंपिक कोटा हासिल करने से चूक गए थे।
सुशील कुमार ने दूर से ही पढ़ ली अमन के मन की बात
अमन सहरावत ने कहा, ‘मेरा लक्ष्य ओलंपिक में जगह बनाना था, इसलिए बिश्केक में प्रतियोगिता के बाद मैं बेचैन था।’ सेमीफाइनल में, उज्बेकी गुलोमजोन अब्दुल्लाव ने उन्हें पहले दौर में ही पछाड़ दिया था। वह निराश नहीं थे, लेकिन उन्हें एक उत्साहवर्धक बातचीत की जरूरत थी। यह कॉल एक अनुभवी पहलवान की तरफ से आई थी। अमन सहरावत को लगा कि दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार ने दूर से ही उनके मन की बात पढ़ ली थी। हत्या के आरोप में जेल में बंद होने के बावजूद, सुशील पहलवानों के बीच एक सम्मानित व्यक्ति बने हुए हैं। जब सुशील ने छत्रसाल को कुश्ती के नक्शे पर उतारा, तो अमन सहरावत जैसे सैकड़ों पहलवानों ने इस खेल की ओर रुख किया और प्रसिद्ध अखाड़े में शामिल हो गए।
सही समय पर सही व्यक्ति का फोन आया
भारत के सबसे मशहूर पहलवान से बातचीत के बारे में सहरावत ने कहा, ‘एशियाई क्वालिफायर के बाद मैं थोड़ा दबाव में था, क्योंकि मैं बिना कोटा के लौटा था और मुझसे उम्मीदें थीं। मेरे मन में कुछ संदेह थे। तभी मैंने सुशील पहलवान जी से बात की। विश्व क्वालिफायर में करीब तीन हफ्ते बचे थे और मैं यहां छत्रसाल में प्रशिक्षण ले रहा था। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं बहुत रक्षात्मक न बनूं और मेरा लक्ष्य पूरे छह मिनट तक लड़ना है। उन्होंने यह भी कहा कि मुझे दो विचारों में नहीं रहना चाहिए। अगर आपको बचाव करने के लिए मजबूर किया जाता है तो बचाव करें लेकिन फिर पहले अवसर का इंतजार करें और फिर पूरी ताकत से हमला करें। उन्होंने मुझसे कहा कि अनिर्णायक न बनूं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं आक्रामक पहलवान बना रहूं।’
विश्व क्वालिफायर के महत्वपूर्ण सेमीफाइनल में अमन सहरावत ने उत्तर कोरिया के चोंगसोंग हान के खिलाफ बेहतरीन प्रदर्शन किया। अमन सहरावत ने 12-2 से जीत हासिल की और एक उच्च तीव्रता वाले लेग लेस रोल ने भारत को अपना पहला और एकमात्र पुरुष पेरिस ओलंपिक कोटा दिलाया। अमन सहरावत ने हान के लेग लॉक को अनलॉक किया, जिसे छत्रसाल में उनके लगातार बेहतर होते डिफेंस के संकेत के रूप में आज भी जाना जाता है।
सुशील कुमार ने की थी यह भविष्यवाणी
जब सुशील कमार छत्रसाल में थे तब उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि अमन सहरावत एक दिन ओलंपिक पदक जीतेंगे। मैट पर गति और शरीर के ऊपरी हिस्से की ताकत के साथ-साथ हमला करने की प्रवृत्ति अमन सहरावत को एक दावेदार बनाती है, लेकिन उनकी एक कमजोरी है- डिफेंस। अमन सहरावत एशियाई और विश्व अंडर-23 चैंपियन रहे हैं, लेकिन सीनियर स्तर पर एक अलग खेल है।
डिफेंस मजबूत होना चाहिए: अमन सहरावत
अमन सहरावत ने कहा, ‘सीनियर स्तर पर सबसे बड़ा अंतर यह है कि डिफेंस मजबूत होना चाहिए। जूनियर स्तर पर अधिक आक्रमण करने की प्रवृत्ति होती है। साथ ही जूनियर स्तर पर आप छोटी-मोटी गलतियों से बच सकते हैं, लेकिन सीनियर स्तर पर, अनुभवी पहलवानों के खिलाफ, हर गलती की कीमत चुकानी पड़ती है। मैं एक बेहतरीन पहलवान बनने के लिए अपनी डिफेंस रणनीति पर काम कर रहा हूं। मैं यह नहीं कहूंगा कि डिफेंस मेरी कमजोरी है, लेकिन मैं इस क्षेत्र में निश्चित रूप से सुधार कर सकता हूं।’
इस बात को लेकर सतर्क हैं कोच ललित
कोच ललित इस बात को लेकर सतर्क हैं कि उनका शिष्य मैट पर बहुत ज्यादा न सोचे। ललित ने कहा, ‘उसे संतुलन बनाना होगा। अपने जूनियर दिनों से ही वह आक्रमण करने के लिए तैयार रहता है और यही उसकी ताकत है। हमारे पास डिफेंस पर केंद्रित प्रशिक्षण सत्र हैं। लेकिन ओलंपिक के करीब होने के कारण, बहुत ज्यादा छेड़छाड़ नहीं करना ही बेहतर है। उसकी अपनी ताकत है और पेरिस ओलंपिक के लिए उसे इसी पर ध्यान देना चाहिए। अगर उसे मौका मिलता है तो वह जवाबी हमला कर सकता है, इसलिए यह उसके पक्ष में काम करेगा।
पेरिस ओलंपिक में 21 साल के अमन सहरावत को 57 किलोग्राम वर्ग में एक बेहतरीन खिलाड़ी का सामना करना पड़ेगा। हालांकि मौजूदा ओलंपिक चैंपियन रूस के जौर उग्यूव को अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ द्वारा प्रतिस्पर्धा करने के लिए अयोग्य घोषित किए जाने के बाद वह खेलों से बाहर हो जाएंगे, लेकिन एशियाई क्वालिफायर में उन्हें हराने वाले पहलवान अब्दुल्लाएव मैदान में होंगे, साथ ही तीन अन्य विश्व चैंपियन भी होंगे।
‘अगर यह आसान होता, तो हर कोई इसे करता’
छत्रसाल स्टेडियम में अमन सहरावत के छोटे से कमरे में एक शिलालेख लिखा है, ‘अगर यह आसान होता, तो हर कोई इसे करता।’ सहवरत जानते हैं कि सुशील, योगेश्वर दत्त, रवि दहिया, सभी छत्रसाल के पूर्व छात्र हैं, जिनका अनुसरण करना आसान नहीं है। लेकिन ओलंपिक में अखाड़े की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें चुना गया है। सुशील के कुश्ती वीडियो देखना सहवरत के लिए प्रेरणा रहे हैं, फिर भी जब 3 साल पहले रवि दहिया ने ओलंपिक रजत जीता था, तब उन्हें लगा कि वह 57 किलोग्राम वर्ग में अपने सीनियर के नक्शेकदम पर चल सकते हैं।
राष्ट्रीय ट्रायल में बैटन पासिंग हुई। अमन सहरावत ने पहली बार रवि दहिया को हराया। यह सही है कि अमन से 5 साल बड़े रवि दहिया अपनी सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में नहीं थे, लेकिन उन्होंने बाद में वापसी करके लोगों को डरा दिया। अमन सहरावत के पक्ष में अंतिम स्कोर 14-13 रहा, जो युवा खिलाड़ी के लिए शारीरिक रूप से मजबूती देने वाला था। साल 2022 में कॉमनवेल्थ गेम्स के ट्रायल में दहिया ने सहरावत को 10-0 से हराया था।
छत्रसाल ने दिए हैं कुश्ती के दिग्गज खिलाड़ी
सहरावत और दहिया ने शायद ही कभी एक साथ मुकाबला किया हो, जबकि वे एक ही हॉल में ट्रेनिंग करते हैं। उन्होंने रणनीति पर नोट्स साझा किए हैं, लेकिन चूंकि दोनों एक ही स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे थे, इसलिए कोच ललित का मानना है कि कुछ कार्ड गुप्त रखे गए थे। अमन ने बताया, ‘ओलंपिक पदक एक बड़ा सपना है। छत्रसाल ने भारतीय कुश्ती में दिग्गज खिलाड़ी दिए हैं। मैं केवल सीखने और उनके द्वारा किए गए कामों का अनुसरण करने की कोशिश कर रहा हूं। अभी के लिए, मैं बस सिर झुकाकर कड़ी मेहनत कर रहा हूं। लेकिन अगर आप छत्रसाल से हैं, तो ओलंपिक पदक एक उम्मीद बन गया है।’
अमन का घर है छत्रसाल स्टेडियम
छत्रसाल किशोरावस्था से पहले ही अमन सहरावत का घर रहा है। अमन सहरावत ने झज्जर के एक गांव बिरोहर की मिट्टी में पहलवान के रूप में शुरुआत की। जब सुशील ने लंदन खेलों में अपना दूसरा ओलंपिक पदक जीता, तो सहरावत ने पिता को इस बात के लिए राजी किया कि वह उस जगह दाखिला लेना चाहते हैं, जहां भारत के सर्वश्रेष्ठ पहलवान प्रशिक्षण लेते हैं। जब वह किशोरावस्था में थे, तब उन्होंने एक साल के अंतराल पर अपने माता-पिता को खो दिया था।
कोच ललित ने कहा, ‘तब से छत्रसाल उनके लिए घर जैसा है। हमने उन्हें एक बेहतरीन पहलवान के रूप में विकसित होते देखा है। अब वह ओलंपिक में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पहलवानों से मुकाबला करने के लिए तैयार हैं।’ जब छत्रसाल में शाम की वार्म-अप ड्रिल शुरू होती, तो सहरावत बाकी लोगों के साथ शामिल हो जाते और भीड़ में खो जाते- जूनियर से लेकर अनुभवी पेशेवर तक हर कोई पदकों की संख्या या स्थिति की परवाह किए बिना लाइन में लग जाता। कुछ दिनों में अगर पेरिस में सहरावत की किस्मत चमकती है, तो उनका पोस्टर कुश्ती हॉल में कुछ महानतम पहलवानों के बगल में लगाया जाएगा। यह विशेषाधिकार कुश्ती की इस नर्सरी में कुछ चुनिंदा लोगों तक ही सीमित है।