चरनपाल सिंह सोबती

विश्व टैस्ट चैंपियनशिप का फाइनल शुरू होने में ज्यादा दिन नहीं बचे हैं और अभी से यह चर्चा शुरू हो गई है कि तटस्थ पिच पर दोनों टीमें कैसा खेलेंगी? अपनी घरेलू पिच का फायदा उठाना वह मसला है जिसकी विश्व टैस्ट चैंपियनशिप की शुरुआत के बाद से सबसे ज्यादा चर्चा हुई है और मौजूदा दौर में शायद अपने खिलाड़ियों के बेहतर प्रदर्शन से भी ज्यादा यह जरूरी हो गया कि ऐसी पिच बनाओ जो मेजबान के लिए, अंक जुटाने में फायदेमंद हो।

आज के दौर के टैस्ट क्रिकेट प्रेमी शायद कभी विश्वास भी नहीं कर पाएंगे कि एक समय तेंदुलकर (15,921), द्रविड़ (13,288), लक्ष्मण (8781), वीरेंद्र सहवाग (8586) और गांगुली (7212) जैसे खिलाड़ी एक साथ भारत की टीम में थे। विराट कोहली के टैस्ट 100 के इंतजार के अतिरिक्त पिछले कुछ सालों में बल्लेबाजी के किस कीर्तिमान की चिंता की गई? बात साफ़ है- विश्व टैस्ट चैंपियनशिप की शुरुआत के बाद दो साल के चक्र में जमा अंक सबसे खास हो गए क्योंकि फाइनल में खेलना है तो अंक चाहिए।

ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं। इस चक्र की सबसे आखिरी दो टैस्ट शृंखलाएं तो अभी याद ही हैं : भारत में भारत बनाम आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में न्यूजीलैंड बनाम श्रीलंका। इन दोनों में हर दिन सिर्फ जून में विश्व टैस्ट चैंपियनशिप की फाइनल टीमों की पहचान करने के लिए नतीजे की बात हुई- कैसी क्रिकेट खेल रहे हैं, इसकी नहीं।

आखिर में भारत ने द ओवल, लंदन में आस्ट्रेलिया से खेलने का हक हासिल किया लेकिन नाटक के बाद क्योंकि आस्ट्रेलियाई और श्रीलंकाई टीम ने भारत की योजना को लगभग बर्बाद कर ही दिया था। इनमें खेल रहे थे दिग्गज बल्लेबाज केन विलियमसन, स्टीव स्मिथ और विराट कोहली। आखिर में विलियमसन का फार्म काम आया। टैस्ट में उन्होंने दोहरा शतक जड़ा और भारत क्वालीफाई कर गया।

विराट कोहली ने भी वह शतक लगाया, जिसका इंतजार चल रहा था- उनका 28वां और विलियमसन के बराबर लेकिन ये शृृंंखला के उस चौथे टैस्ट में बना, जिसके पहले तीन टैस्ट ने भारत और आस्ट्रेलिया टीम के कई बल्लेबाजों की प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया था। बेशक, स्मिथ (30 टैस्ट शतक), इंग्लैंड के जो रूट (29 टैस्ट शतक), कोहली (28) और विलियमसन (28) एक साथ विश्व क्रिकेट में खेल रहे हैं पर इनके बाद क्या होगा? ये भी विश्व टैस्ट चैंपियनशिप की देन नहीं हैं- उससे पहले से चले आ रहे हैं।

80 के पूरे दशक और 90 के दशक की शुरुआत में वेस्ट इंडीज की टीमें अपने तेज गेंदबाजों की चौकड़ी के साथ विरोधियों को टिकने नहीं दे रही थीं। पिचें तब भी बहुत उम्दा नहीं थीं, खासकर ऐसे बेहतर और तेज गेंदबाजों का मुकाबला करने के लिए। नतीजतन, कई टैस्ट, चाहे आस्ट्रेलिया या इंग्लैंड के विरुद्ध भी क्यों न खेले हों, 3 से 4 दिनों में ही खत्म हो जाते थे। आस्ट्रेलिया ने भी मिच जानसन, ब्रेट ली और ग्लेन मैकग्राथ के साथ वेस्ट इंडीज के अतिरिक्त अन्य दूसरी टीम के विरुद्ध तेज और असमान बाउंस पिचें तैयार कीं और कामयाब रही।

तब भी भारतीय टीम में इसके सभी दिग्गज थे- वीवीएस लक्ष्मण, नवजोत सिद्धू, राहुल द्रविड़, तेंदुलकर, मोहम्मद अजहरुद्दीन, सौरव गांगुली आदि लेकिन ये मशहूर लाइन-अप फ्रेंकलिन रोज की मध्यम तेज गेंदबाजी के सामने भी न टिक पाई। कर्टली एम्ब्रोस, इयान बिशप और पिच की मदद भी थी वहां। तब भी, आम तौर पर, आस्ट्रेलिया, वेस्ट इंडीज, इंग्लैंड और यहां तक कि भारतीय उपमहाद्वीप में पिचों को आसान और बल्लेबाजों के लिए तैयार कर रहे थे।

सिर्फ भारत नहीं, लगभग हर टीम में दो-तीन (या ज्यादा भी) ऐसे बल्लेबाज थे, जिन्होंने इस दौर में ढेरों रन बनाए। आस्ट्रेलिया में रिकी पोंटिंग (13,378 टैस्ट रन), स्टीव वॉ (10,927), मैथ्यू हेडन, एडम गिलक्रिस्ट थे। दक्षिण अफ्रीका में जैक कैलिस (13,289), हाशिम अमला (9282), ग्रीम स्मिथ (9625)। वेस्ट इंडीज में ब्रायन लारा (11,953), शिवनारायण चंद्रपाल (11,867) श्रीलंका के शीर्ष बल्लेबाजी सितारे कुमार संगकारा (12,400) और महेला जयवर्धने (11,814) थे।

इंग्लैंड के पास एलिस्टेयर कुक (12,472) थे और पाकिस्तान ने इंजमाम उल हक (8830) और मोहम्मद यूनुस (7,530) के जरिए बेहतर प्रदर्शन किया। यह बल्लेबाजों के लिए स्वर्ण दौर था और लगभग सभी टीमों में कुछ भारी स्कोर करने वाले खिलाड़ी थे। भारतीय प्रशंसकों ने भी तेंदुलकर (15,921), द्रविड़ (13,288), लक्ष्मण (8781), वीरेंद्र सहवाग (8,586) और गांगुली (7,212) की बल्लेबाजी का मजा लिया।

अच्छी पिचों की यह विरासत विश्व टैस्ट चैंपियनशिप के आने तक जारी रही और उसके बाद दो साल के चक्र में जमा हुए अंक प्लेआफ फाइनल के लिए सबसे खास हो गए। मेजबान देशों ने अपने मतलब के लिए पिचों में बदलाव किया। इंग्लैंड में आक्रामक क्रिकेट और कीवी टीम का घरेलू पिचों पर न हारना एक अलग शैली थी, अन्यथा किसी भी टीम को उसकी घरेलू पिच पर हराना लगभग असंभव था।

भारत को मालूम था कि घूमती पिचो का फायदा उठाने के लिए उन के पास स्पिनरों को सबसे अच्छे विकल्प हैं। रविचंद्रन अश्विन, रवींद्र जडेजा और अन्य इन घूमती गेंदों वाली पिचों पर वास्तव में अजेय थे। आस्ट्रेलियाई टीम को क्रमश: नागपुर और दिल्ली में 91 और 113 के स्कोर पर आउट कर दिया। भारत ने दोनों टैस्ट तीन दिनों के अंदर और बड़े अंतर से जीते। कभी-कभी पासा उल्टा भी पड़ जाता है जैसे कि इंदौर में हुआ और भारत 109 और 163 पर ढेर हो गया और तीन दिनों के भीतर हार गया।

विश्व टैस्ट चैंपियनशिप अंक की मौजूदा प्रणाली मेजबान देश के लिए है और वे उसी के अनुरूप पिच तैयार कर रहे हैं। ऐसे में बड़े स्कोर और बल्लेबाजी के रिकार्ड शिकार हो रहे हैं। कभी-कभी, ड्रा और बड़े स्कोर देखने को मिल सकते हैं लेकिन इस युग के बड़े टैस्ट बल्लेबाजों को तेंदुलकर, पोंटिंग, या कैलिस युग की तुलना में बहुत अलग पिचों पर खेलना पड़ रहा है।