क्रिकेट विश्व कप का 13वां संस्करण भारत की मेजबानी में 5 अक्तूबर से 19 नवंबर 2023 तक हो रहा है। यह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद् द्वारा संचालित प्रमुख अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता है। इसमें सभी टैस्ट खेलने वाले देशों के अलावा क्वालीफाई करने वाले देश भाग लेते रहे हैं। इस बार 46 दिवसीय प्रतियोगिता में कुल 48 मैच खेले जाएंगे।
सभी 10 टीमों के बीच प्रतियोगिता के 45 मैच राउंड-राबिन लीग प्रारूप के आधार पर होंगे। इनमें से श्रेष्ठ 4 टीम सेमीफाइनल खेलेंगी। तीन नाकआउट मैच दो सेमीफाइनल व एक फाइनल खेला जाएगा। अभी तक विश्व कप के बारह संस्करण हो चुके हैं। इस दौरान बहुत से रोचक किस्से भी हैं…
सफर विश्व कप का
क्रिकेट विश्व कप का प्रथम आयोजन 1975 में इंग्लैंड में हुआ था। उसके बाद हर चार साल के अंतराल पर इसका आयोजन होता रहा है ( 1992 में पांच साल व 1999 में तीन साल में हुए आयोजन को छोड़कर)। इंग्लैंड सबसे ज्यादा पांच बार 1975, 1979 1983, 1999 व 2019 में। भारत व पाकिस्तान 1987, 1996 व 2011 जिसमें 1996 में श्रीलंका भी शामिल था तीन बार। आस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड 1992 व 2015 में दो बार । द0अफ्रीका 2003 व वेस्टइंडीज 2007 एक-एक बार मेजबानी कर चुके हैं।
आस्ट्रेलिया के नाम सर्वाधिक पांच खिताब हैं। भारत के नाम दो अलग-अलग ओवर 1983 में 60 ओवर व 2011 में का विश्व 50 ओवर खिताब है। विश्व कप में सर्वाधिक 2278 रन सचिन के नाम है तो सर्वोच्च व्यक्तिगत 237 रन का स्कोर न्यूजीलैंड के मार्टिन गुप्टिल के नाम है। सबसे बड़ी साझेदारी क्रिस गेल व मार्लोन सैमुअल के नाम 372 रन की जिंबाब्वे के खिलाफ है। सबसे ज्यादा 71 विकेट लेने का रिकार्ड ग्लेन मेकग्रा के नाम है। भारतीय गेंदबाज चेतन शर्मा के नाम विश्व कप की पहली हैट्रिक लेने का रिकार्ड है जो उन्होंने 1987 में ली।
1987 में पहली बार विश्व कप का आयोजन इंग्लैंड से बाहर भारत-पाकिस्तान की मेजबानी में हुआ। इस विश्व कप में पहली बार एक मैच में अधिकतम ओवर की सीमा 60 से घटाकर 50 की गई। 1992 में पहली बार विश्व कप में रंगीन ड्रेस, सफेद गेंद, डे-नाइट मैचों का आयोजन हुआ। वेस्ट इडीज के क्लाइव लायड 1975 व 1979 तथा आस्ट्रेलिया के रिकी पोंटिंग 2003 व 2007 के नाम अपनी कप्तानी में दो-दो बार विश्व विजेता बनने का रिकार्ड है।
अब तक के विश्व विजेता
अब तक हुए बारह विश्व कप हो चुके हैं जिन्हें पांच देशों-आस्ट्रेलिया 1987, 1999, 2003, 2007 व 2015 पांच बार, वेस्ट इंडीज 1975 व 1979 व भारत 1983 व 2011 दो-दो बार तथा पाकिस्तान 1992, श्रीलंका 1996 व इंग्लैंड 2019 एक-एक बार जीतने में सफल रहे हैं। लंबे समय से क्रिकेट जगत में अपनी धाक रखने वाले द अफ्रीका, न्यूजीलैंड व बांग्लादेश अभी तक विश्व खिताब से वंचित हैं।
विश्व कप की सबसे धीमी पारी
सुनील गावस्कर के नाम विश्व कप में सबसे धीमी पारी खेलने का अनोखा रिकार्ड आज भी है। 7 जून, 1975 को भारत का मैच इंग्लैंड के साथ था। इंग्लैंड ने 60 ओवर में 4 विकेट खोने के बाद 334 रन बनाए। सबको उम्मीद थी कि गावस्कर तेजी से रन बनाएंगे। लेकिन गावस्कर ओपनर आने के बाद 60 ओवर में 174 बाल खेलकर एक चौके के साथ केवल 36 रन ही बना पाए। वे अंत में नाबाद पवेलियन लौटे। गावस्कर की यह पारी आज भी विश्व कप इतिहास में सबसे धीमी पारी कहलाई जाती है। इसी गावस्कर ने 1987 में नागपुर में न्यूजीलैंड के खिलाफ 85 गेंदों पर शतक भी बनाया था जो उस समय सबसे दूसरा तेज शतक था।
कैच का कमाल जिताया भी और हराया भी
बात 25 जून, 1983 की। इंग्लैंड में तीसरे विश्व कप का फाइनल भारत व वेस्ट इंडीज के मध्य खेला जा रहा था। भारतीय टीम मात्र 183 रन बनाकर पवेलियन लौट गई। भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को वेस्ट इंडीज की मजबूत बल्लेबाजी को देखते हुए हार निश्चित लग रही थी। तेज-तर्रार बल्लेबाज विवियन रिचर्र्ड्स ने आते ही दनादन सात चौके मार वेस्ट इंडीज के तीसरी बार विजेता के रास्ते खोल दिए।
लेकिन मदनलाल की एक गेंद पर रिचर्ड्स ने जोरदार प्रहार किया तो भारत के कप्तान कपिलदेव उलटी दिशा में दौड़ते हुए एक असंभव से कैच को लपक कर रिचर्ड्स को पवेलियन भेज दिया। यह कैच भारत के विश्व विजेता बनने में महत्त्वपूर्ण साबित हुआ। क्योंकि उसके बाद इंडीज की पूरी टीम 143 पर आउट हो गई। भारत कपिल के इस कैच के कारण पहली बार विश्व विजेता बन गया।
आत्मसम्मान की चोट ने बनाया विश्व विजेता
भारत-पाकिस्तान-श्रीलंका की संयुक्त मेजबानी में 1996 का विश्व कप आयोजित किया गया था। उस समय श्रीलंका में सुरक्षा की दृष्टि से हालात सामान्य नहीं थे। इस कारण आस्ट्रेलिया व वेस्ट इंडीज की टीमों ने श्रीलंका में रखे गये अपने लीग मैचों को वहां जाकर खेलने से मना कर दिया। इस बात से श्रीलंकाई क्रिकेट खिलाड़ियों व वहां के खेल प्रेमियों के आत्मसम्मान को गहरी चोट लगी।
इस चोट का बदला लेने के लिए श्रीलंका टीम ने यह दृढ़ निश्चय किया कि इसका जवाब विश्व कप जीतकर देना है। अपने इस उदेश्य के लिए उन्होंने अपने खेलने के ढर्रे में बदलाव किया। पुछल्ले बल्लेबाजों सनथ जयसूर्या ओर विकेटकीपर कालूवितर्णा को ओपनर में उतार उन्हें ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करने का आदेश दिया। अपनी इसी रणनीति से खेलते हुए श्रीलंका की टीम ने फाइनल तक पहुंच गई।
खिताबी मुकाबले में उनके सामने वही आस्ट्रेलियाई टीम थी जिसने श्रीलंका में जाकर न खेलकर लंकाई खिलाड़ियों के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाई थी। खिताबी जंग में एकबार फिर से शानदार प्रदर्शन करते हुए श्रीलंका के खिलाड़ियों ने मजबूत टीम आस्ट्रेलियाई को 7 विकेट की करारी शिकस्त देकर विश्व विजेता बनते हुए बदला ले लिया।