भारतीय क्रिकेट टीम वनडे क्रिकेट में तीसरी बार वर्ल्ड चैंपियन बनने से एक कदम दूर है। 140 करोड़ की आबादी चाहती है कि 19 नवंबर 2023 का दिन मेन इन ब्लू के इतिहास में 25 जून 1983 और 2 अप्रैल 2011 की तरह स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो। न कि 23 मार्च 2003 की तरह, जिसमें ऑस्ट्रेलिया ने हराकर सपना तोड़ दिया था। क्रिकेट में भारत कहां से कहां पहुंचा है, बीते 20 साल इसकी कहानी बयां करते हैं।

2003 में 20 साल बाद भारतीय टीम फाइनल में पहुंची थी। 1983 के बाद के 2003 तक 5 वनडे वर्ल्ड कप हुए। बीते 20 साल में टीम तीसरी बार खिताबी मुकाबला खेलने को तैयार है। इस दशक में 6 बार वनडे वर्ल्ड कप हुआ है। भारतीय टीम और उसके फैंस का दिल 2003 फाइनल की हार के काफी दुखा था, लेकिन 2007 वर्ल्ड कप तो बुरे सपने की तरह था।

टीम इंडिया के कबीर खान यानी कोच द्रविड़

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ फाइनल होना है तो हर किसी को 2003 वर्ल्ड कप का फाइनल याद आ रहा है। हर कोई कंगारुओं से बदले की बात कर रहा है। इस बीच भारतीय ड्रेसिंग रूम में एक शख्स मौजूद है,जो उन 15 खिलाड़ियों में शामिल था, जिसने यह दिल तोड़ देने वाली झेली थी। यह शख्स कोई और नहीं टीम इंडिया के कबीर खान यानी कोच राहुल द्रविड़ हैं।

2011 में नहीं थे टीम का हिस्सा

मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह, हरभजन सिंह, आशीष नेहरा और जहीर खान उन खिलाड़ियों में शामिल थे, जो 2003 में उपविजेता रही टीम इंडिया के हिस्सा थे और 2011 में चैंपियन बने, लेकिन राहुल द्रविड़ नहीं। ऐसा भी नहीं था कि उन्होंने अनिल कुंबले और सौरव गांगुली की तरह संन्यास ले लिया था।

द्रविड़ जैसा टीम मैन नहीं मिलेगा

भारतीय क्रिकेट आज इस मुकाम पर पहुंचा है तो उसमें द्रविड़ जैसे निस्वार्थ सेवक का योगदान काफी अहम है। विश्व क्रिकेट में उनके जैसे टेक्निक वाले बल्लेबाज बहुत कम हुए हैं, लेकिन इससे बड़ी खूबी उनकी यह है कि वह टीम मैन हैं। टीम के लिए जरूरत पड़ने पर वह विकेटकीपिंग भी कर लेंगे और किसी भी क्रम पर बल्लेबाजी को तैयार होंगे, लेकिन कप्तान बनेंगे और हारेंगे तो विलेन बन जाएंगे। इस बोझ को बगैर शिकायत झेल लेंगे।

2007 में ग्रुप स्टेज से टीम इंडिया बाहर

2007 वर्ल्ड कप में टीम इंडिया प्रबल दावेदार के तौर पर गई थी। 2003 में शानदार प्रदर्शन के बाद उम्मीद की जा रह थी कि वह ऑस्ट्रेलिया के विज रथ को रोक सकती है, लेकिन बांग्लादेश और श्रीलंका से हारकर वह ग्रुप स्टेज बाहर हो गई। मेन इन ब्लू का इतना खराब प्रदर्शन होगा किसने नहीं सोचा था। फैंस का गुस्सा चरम पर था। इसके कारण कैरेबियाई सरजमीं से खिलाड़ियों की वापसी देर से हुई।

राहुल द्रविड़ पर पूरा दोष आया

सौरव गांगुली और तत्कालीन कोच ग्रेग चैपल के बीच विवाद से भारतीय क्रिकेट टीम का ड्रेसिंग रूम प्रभावित हुआ था। 2007 में खराब प्रदर्शन का यह कारण था, लेकिन कप्तान होने की वजह से राहुल द्रविड़ पर पूरा दोष आया। राहुल द्रविड़ को यस मैन बताया गया, जिन्होंने कोच ग्रेग चैपल को मनमानी करने दी। द्रविड़ की कप्तानी तुरंत नहीं गई, लेकिन वह बहुत दिन तक कप्तान नहीं रहे।

संन्यास के बाद भी टीम इंडिया की सेवा में तत्पर

महेंद्र सिंह धोनी कप्तान बने और राहुल द्रविड़ धीरे-धीरे लिमिटेड ओवर्स फॉर्मेट में टीम से साइड होते गए। सितंबर 2011 में आखिरी बार वनडे खेलने के बाद भी वह 2011 वर्ल्ड कप नहीं खेले। संन्यास के बाद भी वह टीम इंडिया की सेवा में तत्पर रहे। नेशनल क्रिकेट एकेडमी (NCA) में सेवाएं दी। इसके अलावा बतौर कोच ‘खिलाड़ियों की नई फसल’ तैयार की। शुभमन गिल और इशान किशन जैसे खिलाड़ियों को उन्होंने ही तैयार किया है।

कोच के तौर पर खूब झेली आलोचना

2021 में राहुल द्रविड़ जब सीनियर टीम इंडिया के सदस्य बने तो हर कोई उम्मीद कर रहा था कि वह रोहित शर्मा के साथ मिलकर भारतीय क्रिकेट को बुलंदियों पर ले जाएंगे, लेकिन एशिया कप 2023 से पहले तक दोनों ने केवल आलोचना झेली। टीम का प्रदर्शन ऐसा रहा कि आलोचना होना ही था।

फाइनल के नतीजे का भाव द्रविड़ नहीं झलकने देंगे

एशिया कप 2021 में खराब प्रदर्शन, टी20 वर्ल्ड कप 2021 में सेमीफाइनल और 2023 वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल में हार उनके कोचिंग करियर के भुला देने वाले क्षण रहे, लेकिन 2023 एशिया कप और वनडे वर्ल्ड कप शानदार रहा है। भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच मैच फाइनल मैच का नतीजा कुछ भी हो राहुल द्रविड़ इसके भाव दिखने नहीं देंगे।

कप्तान नहीं कोच के तौर पर बनेंगे वर्ल्ड चैंपियन

टीम इंडिया चैंपियन बनी तो वह साइड में दिखेंगे, लेकिन हारी तो डब्ल्यूटीसी फाइनल की तरह की कड़े सवालों का जवाब देते दिखेंगे। उनको इस बात से फर्क नहीं पड़ेगा कि कोच के तौर पर यह 19 नवंबर आखिरी दिन है। टीम इंडिया जीती तो द्रविड़ को बॉलिवुड सुपर स्टार शाहरुख खान की फिल्म चक दे इंडिया के किरदार कबीर खान से जोड़कर देखा जा सकता है। दोनों कप्तान के तौर पर बदनाम हुए, बकौल कोच विश्व खिताब दिलाया। दोनों को कोच के तौर पर तुरंत सफलता या स्वीकार्यता नहीं मिली।