देवेंद्र पांडे। जिस उम्र में बच्चे गहरी नींद में सपने देखते हैं, उस उम्र में आयुष म्हात्रे अपने सपनों को हकीकत में बदलने की कोशिश में लगे रहते थे। हाल ही में मुंबई के लिए रणजी ट्रॉफी में बतौर ओपनर डेब्यू करने वाले 17 वर्षीय म्हात्रे पिछले कई सालों से सुबह 4:15 बजे उठते हैं, सुबह 5 बजे की ट्रेन पकड़ते हैं। फिर मुंबई शहर से 46 किलोमीटर दूर अपने घर विरार से प्रैक्टिस के लिए प्रसिद्ध ओवल मैदान पहुंचते हैं।
सरफराज खान के भाई मुशीर खान के चोटिल होने के कारण आयुष को मुंबई के लिए ओपनिंग करने का मौका मिला। म्हात्रे ने मौके को जाया नहीं जाने दिया। उन्होंने अपना पहला रणजी ट्रॉफी शतक जमाकर प्रथम श्रेणी क्रिकेट में अपने आगमन की घोषणा की। इससे शुक्रवार (18 अक्टूबर) को एमसीए-बीकेसी मैदान पर महाराष्ट्र के खिलाफ मैच के पहले दिन मुंबई को नियंत्रण हासिल करने में मदद मिली। उन्होंने बड़ौदा के खिलाफ 52 और 22 रन की पारी खेली थी।
पृथ्वी शॉ के बल्ले से जड़ा शतक
भारतीय टीम के कप्तान रोहित शर्मा के फैन म्हात्रे ने अपना शतक ओपनिंग पार्टनर पृथ्वी शॉ द्वारा दिए गए बल्ले से बनाया, जो उन्हें बड़ौदा के खिलाफ मैच के बाद मिला था। म्हात्रे ने दिन का खेल खत्म होने के बाद कहा, “मैंने उनसे उनका बल्ला मांगा था और उन्होंने मुझे दे दिया। मैंने आज उसी से शतक बनाया। मैं पृथ्वी को लंबे समय से जानता हूं क्योंकि वह भी विरार से हैं।” स्टंप्स तक वह 127 रन बनाकर नाबाद थे।
कैसे चयनकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया
आयुष म्हात्रे और पृथ्वी शॉ के संघर्ष की कहानी मिलती जुलती है। आयुष की आक्रामक बल्लेबाजी शैली ने चयनकर्ताओं को उन्हें सीनियर टीम में शामिल करने के लिए प्रेरित किया। वह 13 साल के थे जब उनके स्थानीय क्लब विरार-साईनाथ स्पोर्ट्स क्लब ने उन्हें अपनी सीनियर टीम में शामिल करने का फैसला किया, जहां उन्होंने बड़ी आसानी से अपने से बड़े लड़कों का सामना किया।
नाना छोड़ने आते थे
आयुष को उनके नाना रिटायर रेलवे कर्मचारी थे प्रतिदिन मुंबई के मैदान तक छोड़ने आते थे। उन्होंने कहा, “मैंने छह साल की उम्र से खेलना शुरू किया था, लेकिन मेरा असली क्रिकेट 10 साल की उम्र में शुरू हुआ। मुझे माटुंगा के डॉन बॉस्को हाई स्कूल में दाखिला मिला और मेरे नाना लक्ष्मीकांत नाइक ने मुझे हर दिन वहां ले जाने की जिम्मेदारी ली। इसलिए सुबह मैं माटुंगा में अभ्यास के लिए जाता था, फिर स्कूल जाता था और फिर अभ्यास के लिए चर्चगेट जाता था। मेरा परिवार मेरे दादाजी से कहता था कि मेरी नींद खराब न करें, लेकिन अब उन्हें भी लगता है कि मेरा त्याग रंग ला रहा है।”
चाचा विजय म्हात्रे मदद के लिए आगे आए
जब आयुष 12 साल के थे, तो एक और समस्या सामने आई। उसके दादा की आंख का ऑपरेशन होना था, जिसकी वजह से क्रिकेट के लिए यात्रा करना मुश्किल हो गया। लेकिन उसके चाचा विजय म्हात्रे मदद के लिए आगे आए। एक प्रतिष्ठित क्लब-एमआईजी एक ओपन अंडर-14 चयन ट्रायल आयोजित कर रहा था और आयुष का चयन 12 साल की उम्र में हुआ। चूंकि उनके चाचा एमआईजी के पास ही रहते थे, इसलिए यह तय हुआ कि आयुष अपने क्रिकेट के सपने को पूरा करने के लिए उनके साथ रहेगा। लेकिन जैसे ही अंडर-14 मैच होने वाले थे, कोविड-19 ने सुनिश्चित कर दिया कि आयुष अगले दो साल तक किसी भी बीसीसीआई टूर्नामेंट में नहीं खेल पाएगा।
पिता की नौकरी चली गई
बाद में, आयुछ को कल्पेश कोली टूर्नामेंट के लिए अंडर-16 चयन ट्रायल के लिए चुना गया, जहां उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया। क्रिकेट फिर से आगे बढ़ने लगा, वह एक स्थानीय टूर्नामेंट में अंडर-19 टीम में भी शामिल हुए। उन्होंने शतक बनाए, लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें और भी परेशानी हुई। उनके पिता योगेश की नौकरी चली गई और आयुष उनके समर्थन के लिए आभारी है।
वसई कॉर्पोरेशन बैंक में क्लर्क का काम करते हैं पिता
आयुष के पिता अब वसई कॉर्पोरेशन बैंक में क्लर्क के रूप में काम करते हैं। आयुष ने कहा, “मेरे पिता और मां ने मुझे कभी यह एहसास नहीं होने दिया कि घर में कुछ आर्थिक समस्या है। मैं समझ सकता था कि कोई समस्या है, इसलिए अगर मुझे कुछ चाहिए होता तो मैं जानता था कि मुझे उसे टाल देना चाहिए। जैसे अगर कोई बल्ला टूट जाता है, तो मैं नया नहीं मांगता। आज भी मेरे पिता मेरे साथ लोकल ट्रेन में यात्रा करते हैं, ताकि अगर किसी से तू-तू मैं-मैं हो जाए, तो वे उसे संभाल लें, ताकि मैं बल्लेबाजी करते समय किसी भी नकारात्मकता को अपने अंदर न ले लूं।”
छोटी सी सफलता को सिर पर नहीं चढ़ने देना है
एमसीए ने आयुष को केएससीए ट्रॉफी के लिए चुना, जो ऑफ-सीजन कैंप के दौरान हुई थी, जहां उन्होंने गुजरात के खिलाफ 52 और 172 रन बनाए थे। उन्हें ईरानी कप के लिए चुना गया था और मुशीर खान के कार दुर्घटना में घायल होने के कारण चयनकर्ताओं ने आयुष को रणजी ट्रॉफी खेलने के लिए चुना। रोहित शर्मा के प्रशंसक शर्मीले आयुष कहते हैं कि उन्हें पता है कि इस छोटी सी सफलता को अपने सिर पर हावी नहीं होने देना है। उन्होंने पिछले कुछ महीनों से खुद को सोशल मीडिया से दूर रखा है और उनके परिवार ने भी उन्हें ‘चीजों को सरल रखने’ के लिए कहा है, क्योंकि यह सिर्फ एक शुरुआत है।