भारत-चीन विवाद के बाद से ही देश में चीनी कंपनियों के बहिष्कार की मांग तेज हो गई है, लेकिन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) चीनी कंपनी वीवो (VIVO) से करार खत्म नहीं करना चाहता। इसके पीछे शायद VIVO से हर साल मिलने वाले 440 करोड़ रुपए हैं। स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनी वीवो इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की स्पॉन्सर (प्रायोजक) भी है।

बीसीसीआई के कोषाध्यक्ष (ट्रेजरार) अरुण धूमल ने गुरुवार को स्पष्ट कर दिया कि वीवो से बोर्ड का करार 2022 तक है। इसके बाद ही स्पॉन्सरशिप का रिव्यू होगा। अरुण धूमल का यह बयान ऐसे समय आया है, जब बीएसएनएल ने 4जी रिसोर्सेस अपग्रेडेशन के लिए चीनी उत्पाद प्रतिबंधित करने का फैसला किया है। रेलवे ने भी कहा है कि वह चीनी कंपनी को दिया सिग्नलिंग और टेलीकम्युनिकेशन का 471 करोड़ का करार रद्द करेगा।

गलवान में भारत और चीन की सेनाओं के बीच झड़प के बाद इंडियन ओलिंपिक एसोसिएशन (आईओए) भी चीनी कंपनी ली निंग से करार खत्म करने की राह पर है। आईओए महासचिव राजीव मेहता ने कहा, हम इस वक्त देश के साथ हैं। आईओए ने इस कंपनी से मई 2018 में करार किया था। इसके तहत कंपनी भारतीय एथलीट्स को करीब 5 से 6 करोड़ रुपए के स्पोर्ट्स किट देती है।

धूमल ने कहा कि वीवो से स्पॉन्सरशिप करार के जरिए पैसा भारत में आ रहा है, न कि वहां जा रहा है। हमें यह समझना होगा कि चीनी कंपनी के फायदे का ध्यान रखने और चीनी कंपनी के जरिए देश का हित साधने में बड़ा फर्क है।

धूमल ने कहा कि चीनी कंपनियां भारत में अपने प्रोडक्ट बेचकर जो पैसा कमाती हैं, उसका बड़ा हिस्सा ब्रांड प्रमोशन के नाम पर बीसीसीआई को मिलता है। बोर्ड उस कमाई पर केंद्र सरकार को 42% टैक्स देता है। ऐसे में यह करार चीन के नहीं, बल्कि भारत के फायदे में है।

धूमल के मुताबिक, अगर चीन का पैसा भारतीय क्रिकेट की मदद कर रहा है, तो हमें इससे कोई दिक्कत नहीं। हम गैर-चीनी या भारतीय कंपनियों से भी स्पॉन्सरशिप का पैसा हासिल कर सकते हैं। सोच यही है कि जब चीनी कंपनियों को भारत में उनके उत्पाद बेचने की इजाजत दी जा रही है, तो बेहतर यही होगा कि वह पैसा भारतीय इकॉनमी में लौटे।

धूमल ने कहा, ‘मैं निजी तौर पर चीन के सामान पर निर्भरता कम करने के पक्ष में हूं, लेकिन जब तक वहां की कंपनियों को देश में कारोबार करने की इजाजत है, तब तक अगर कोई चीनी कंपनी आईपीएल जैसे भारतीय ब्रांड को स्पॉन्सर करती है, तो उसमें कोई बुराई नहीं।’

धूमल ने कहा, ‘अगर मैं किसी चीनी कंपनी को देश में क्रिकेट स्टेडियम बनाने का ठेका देता, तो मैं सीधे तौर पर उनकी मदद करता। गुजरात क्रिकेट एसोसिशएन ने मोटेरा में दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम बनाया, लेकिन उसका कॉन्ट्रैक्ट एक भारतीय कंपनी एलएंडटी को दिया। देश में हजारों करोड़ की लागत से क्रिकेट इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप किया जा रहा है, लेकिन इसमें से एक का भी कॉन्ट्रैक्ट चीनी कंपनी को नहीं दिया गया।’

चीनी मोबाइल कंपनी ओप्पो पिछले साल सितंबर तक टीम इंडिया को स्पॉन्सर कर रही थी। हालांकि, इसके बाद से बेंगलुरु की ऐप बेस्ड एजुकेशन कंपनी बायजू भारतीय टीम को स्पॉन्सर कर रही है। बीसीसीआई ने बायजू से जो करार किया है, वह 5 सितंबर 2019 से 31 मार्च 2022 तक लागू रहेगा।

ओप्पो ने मार्च 2017 में वीवो को पीछे छोड़कर 768 करोड़ में 5 साल के लिए टीम इंडिया की जर्सी के राइट्स खरीदे थे। उस डील के मुताबिक, ओप्पो को बायलैट्रल सीरीज के एक मैच में बीसीसीआई को 4.61 करोड़ रुपए देने थे, जबकि आईसीसी टूर्नामेंट में हर मैच के लिए उसे 1.56 करोड़ रुपए चुकाने थे।