टीम इंडिया के पूर्व ओपनर वीरेंद्र सहवाग की विस्फोटक ओपनर बल्लेबाजों में गिनती होती है। हालांकि, उनके करियर में एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने खेल छोड़ने का मन बना लिया था। हाल ही में एक बातचीत में सहवाग ने इसके बारे में खुलासा करते हुए कहा कि साल 2008 में ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान एकदिवसीय क्रिकेट से संन्यास लेना चाहते थे। तब टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने उन्हें कुछ मैचों में टीम से ड्रॉप कर दिया था। इससे नाराज होकर वीरू ने वनडे क्रिकेट को अलविदा कहने का मन बना लिया था। दिग्गज सचिन तेंदुलकर की सलाह के बाद उनका मन बदला।

सहवाग ने क्रिकबज के शो मैच पार्टी के दौरान कहा, “2008 में जब हम ऑस्ट्रेलिया में थे तो मेरे दिमाग में रिटायरमेंट का सवाल आया था। मैंने टेस्ट सीरीज में वापसी की और 150 रन बनाए। वनडे में मैं तीन-चार मैचों में इतना स्कोर नहीं कर सका। तो एमएस धोनी ने मुझे प्लेइंग इलेवन से बाहर कर दिया, फिर मेरे दिमाग में वनडे क्रिकेट छोड़ने का ख्याल आया। मैंने सोचा था कि मैं केवल टेस्ट क्रिकेट खेलना जारी रखूंगा।”

सहवाग ने एक महीने पहले अनिल कुंबले की कप्तानी में टेस्ट टीम में जोरदार वापसी की थी। उन्होंने मेजबान ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका के साथ कॉमनवेल्थ बैंक ट्राई सीरीज में भारत के 10 मैचों में से केवल 5 मैच खेले। सीरीज में भारत के पहले चार मैचों में 6, 33, 11 और 14 रन बनाने के बाद दाएं हाथ के इस तेज गेंदबाज को प्लेइंग इलेवन से बाहर कर दिया गया था।

एडिलेड में दो मैचों में प्लेइंग 11 से बाहर रहने के बाद, सहवाग को एक बार फिर सिडनी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अगले लीग मैच में में वापस लाया गया, लेकिन वह 14 रन बनाकर आउट हो गए और फिर ड्रॉप हो गए। भारत ने उस सीबी सीरीज में के बेस्ट ऑफ थ्री फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को 2-0 से हराकर ऐतिहासिक जीत हासिल की, लेकिन सहवाग ने 24 फरवरी को उस मैच के बाद सीरीज में कोई भूमिका नहीं निभाई।

सहवाग ने यह भी खुलासा किया कि यह सचिन तेंदुलकर थे, जिन्होंने उन्हें ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान एकदिवसीय प्रारूप से संन्यास की घोषणा करने से रोका था। उन्होंने कहा, “सचिन तेंदुलकर ने मुझे उस समय रोका। उन्होंने कहा यह आपके जीवन का एक बुरा दौर है। इंतजार करो। इस दौरे के बाद घर वापस जाओ, बढ़िया से सोचो और फिर तय करो कि आगे क्या करना है’। सौभाग्य से उस समय मैंने संन्यास लेने की घोषणा नहीं की।”

इसके बाद सहवाग ने खेल के तीनों प्रारूपों में भारत के लिए और 7-8 साल खेले और 2011 में एकदिवसीय विश्व कप विजेता टीम के भी हिस्सा रहे। प दाएं हाथ के पूर्व बल्लेबाज ने यह कहानी तब साझा की जब उनसे पूछा गया कि क्या विराट कोहली क्रिकेट से ब्रेक लेने पर विचार करेंगे? उन्होंने कहा, “खिलाड़ी दो तरह के होते हैं- जिन्हें चुनौतियां पसंद होती हैं, वे ऐसे हालात में मौज-मस्ती करते हैं और विराट उनमें से एक हैं। वह आलोचनाओं को मैदान पर रन बनाकर गलत साबित करते हैं। दूसरे वो होते हैं जो शोर-शराबे से प्रभावित नहीं होते। इसका कराण है कि वे जानते हैं कि उन्हें क्या करना है। मैं उस तरह का खिलाड़ी था। मुझे परवाह नहीं थी कि किसने मेरी आलोचना की। मैं खेलना चाहता था, रन बनाना चाहता था।”