सौरव गांगुली ने 2008 में कोलकाता नाइटराइडर्स (केकेआर) के कप्तान के रूप में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में अपने करियर की शुरुआत की थी। भारतीय क्रिकेट टीम का यह पूर्व कप्तान फ्रैंचाइजी का आइकॉन प्लेयर था। हालांकि, दुर्भाग्यवश वह केकेआर के कप्तान के रूप में सफल नहीं हुए। टीम शुरुआती सीजन में छठे नंबर रही। दूसरे सीजन में 8वें नंबर पर रही। 2010 में भी वह प्लेऑफ में जगह नहीं बना पाई और छठे नंबर पर रही। इसके बाद फ्रैंचाइजी ने अगले अगले सीजन के लिए गांगुली को रिटेन नहीं करने का फैसला किया।

फ्रैंचाइजी के इस फैसले की काफी आलोचना हुई। फैंस यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि कोलकाता का हीरो उनके शहर की ही फ्रैंचाइजी के लिए नहीं खेलेगा। रोचक यह था कि गांगुली को बाहर करने का फैसला वेंकी मैसूर के टीम के सीईओ बनने के बाद लिया गया था। वेंकी को लेकर भी फैंस गुस्सा थे। वेंकी आईपीएल 2010 के सीजन के बाद ही केकेआर के सीईओ बने थे। ऐसे में फैंस का उन पर सवाल उठाना लाजिमी था। हालांकि, वेंकी इसे लेकर कतई चिंतित नहीं थे। वेंकी मैसूर ने एक यूट्यूब चैनल पर पुराने दिनों की याद करते हुए बताया कि उनके लिए गांगुली को टीम से बाहर करना कोई कठिन फैसला नहीं था, लेकिन टीम मालिकों के लिए जरूर यह काफी मुश्किल था।

वेंकी ने कहा, ‘मैं दो भांगों में टूट गया था। निजी तौर पर यह लिए बड़ा निर्णय नहीं था, क्योंकि मैं इतना जुड़ा नहीं था। मैं नया-नया आया था। हां मुझे अहसास है कि टीम के मालिकों के लिए यह काफी कठिन था। ये सिर्फ एक फैसला और दूरदर्शिता थी, जो मैंने पेश की थी।’

वेंकी ने कहा, ‘मैं जब भी पीछे देखता हूं तो मुझे नहीं पता ये सही था कि नहीं था। हम अपने चेहरे पर कुछ दर्शाते नहीं हैं, यह एक नजरिया था। हम सब इसके साथ थे। अगर मुझे सफलता का श्रेय किसी को देना है तो मैं वह टीम के मालिक शाहरुख खान, जय मेहता और जूही चावला को देना चाहूंगा, जो फैसले के पीछे खड़े रहे, जो मैंने उन्हें प्रस्तावित किया था।’

मैसूर ने बताया, ‘मैंने फैसला किया और सभी ने मेरे उस प्रस्ताव पर मुझे समर्थन किया। इसके बाद हमने ऐलान किया। इस तरह एक ऑर्गनाइजेशन होने के नाते उनके लिए ये बड़ा फैसला ( गांगुली को बाहर करना ) था। मगर मेरे लिए ये बिल्कुल भी कठिन काम नहीं था।’