पूर्व इंडियन क्रिकेटर संजय मांजरेकर ने क्रिकेट से जुड़े अपने अनुभवों को एक किताब की शक्ल में उतारा है। मांजरेकर ने अपनी किताब ‘इम्परफेक्ट’ में कई खुलासे किए हैं। उन्होंने क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर और युग के सबसे खतरनाक गेंदबाज का तमगा पाने वाले वसीम अकरम के बारे में भी कई दिलचस्प खुलासे किए हैं। उन्होंने टीम के इंडिया के दूसरे बल्लेबाजों और सचिन के बीच क्या अंतर है, यह भी बताया है। उन्होंने किताब में लिखा- 22 वर्षों तक क्रिकेट की पिच पर राज करने वाले सचिन रमेंश तेंदुलकर ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में कदम महज 16 वर्ष की उम्र में रखा, उन्हें मनोज प्रभाकर को टीम से बाहर रखकर जगह दी गई थी। लेकिन वह एकदम से प्रभाव छोड़नें में नाकामयाब रहे और लगभग भूल जाने वाला डेब्यू किया। लेकिन उसी सीरीज के दूसरे टेस्ट मैच में उन्होंने वसीम अकरम और इमरान खान जैसे गेंदबाजों को आसानी के साथ खेलते हुए 172 गेंदों में 59 रन बनाकर अपनी छाप छोड़ी दी। फाइनल मुकाबले में उन्होंने एक और अर्धशतक जड़ा।

फिर 1991 में तेंदुलकर ने बेहिचक पाकिस्तान के तेज गेंदबाजों को खेला और तब इस युवा बल्लेबाज ने उस वक्त सबसे खतरनाक माने जाने वाले इमरान खान, वसीम अकरम और वकार यूनिस की गेंदों को ताबड़तोड़ खेलते हुए मैदान के हर कोने में पहुंचाया। 257 रन का पीछा करते हुए भारतीय टीम संघर्ष कर रही थी। 134 रन पर टीम इंडिया तीन विकेट खो चुकी थी। संजय मांजरेकर और तेंदुलकर ने चौथे विकेट के लिए 85 रन की साझेदारी कर इनिंग को पुनर्जीवित किया।
वसीम अकरम को युग का सबसे खतरनाक तेज गेंदबाज माना जाता था। तेंदुलकर ने बड़ी सहजता से उन्हें खेला। 80 और 90 के दशक में पैदा हुए बच्चे इन दिग्गजों की टक्कर को मिस करेंगे। दोनों जब आमने सामने आते थे तो दर्शकों को रोमांचक मुकाबला देखने को मिलता था।

अकरम की तूफानी गेंदबाजी को खेलना आसान नहीं था, लेकिन शायद वही थे जो तेंदुलकर के स्तर की गेंदें डालते थे। अकरम के खलीते में गेंदबाजी के हुनर के सभी पैतरे थे जिनसे वह बिजलियां गिराकर कहर बरपाते थे। लेकिन तेंदुलकर को वह कभी खतरनाक नहीं लगे। संजय मांजरेकर ने अपनी किताब ‘इम्परफेक्ट’ में ये बातें कही हैं। क्रिकइन्फो से साझा किए अपनी किताब के एक अंश में पूर्व क्रिकेटर ने लिखा- तेंदुलकर कभी भी खुलासा नहीं करेंगे, लेकिन वह अक्सर यह सोचते थे कि क्यों दूसरे बल्लेबाजों को वसीम अकरम का सामना करने में कठिनाई आती थी। इस पर मांजरेकर की स्वाभिक प्रतिक्रिया यही है कि सचिन दूसरों के जैसे नहीं हैं, वह सबसे अलग और उपहार समान थे।