सानिया मिर्जा टेनिस को अलविदा कह चुकी हैं। सालों लंबे करियर में सानिया ने ग्रैंड स्लैम की जीत देखीं, अपने पहनावे पर लोगों के ताने सुने, देश के लिए मेडल जीतकर पोडियम पर खड़ी हुईं और मां बनने के बाद वापसी करके सुपरमॉम का टैग भी हासिल किया। सानिया के करियर में कई उतार-चढ़ाव रहे। सानिया मिर्जा ने हर मुश्किल का सामना पूरी हिम्मत से किया। सानिया जब भी लोगों के सामने आती हैं वह कभी मजबूर दिखाई नहीं दी। वह आज भी एक वंडरवुमेन हैं, देश में महिलाओं के लिए खेल का रास्ता बनाने वाली पोस्टर गर्ल हैं।
सानिया के जीवन का सबसे खौफनाक सफर
सानिया मिर्जा को यह शोहरत रातों-रात नहीं मिली है। छोटी सी उम्र में कंधे पर टेनिस किट लटकाए सानिया मिर्जा जब अकेडमी जाया करती थीं तो उनकी आंखों में सपना था कि वह दुनिया की नंबर वन खिलाड़ी बनें। सानिया अपने देश का नाम रोशन करना चाहती थीं। वह चाहती थीं कि टेनिस की बड़ी सी दुनिया में भारत की भी पहचान बने। सानिया को पहली भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका 14 साल की उम्र में मिला। इसके लिए सानिया को जिंदगी का सबसे मुश्किल और खौफनाक सफर तय करना पड़ा जिसके बारे में उन्होंने अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘Odd Against Ace’ में लिखा है।
सानिया के लिए अहम था गुवाहाटी में होना वाला वह टूर्नामेंट
1999 में AITA ने यह ऐलान किया था कि अंडर-14 कैटेगरी में टॉप थ्री खिलाड़ी उस साल होने वाली जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लेंगे। सानिया के लिए यह बड़ा मौका था। सानिया ने पूरे साल मेहनत की वह रैंकिंग में टॉप थ्री के करीब पहुंच चुकी थी। सानिया के टीम इंडिया में सेलेक्शन के लिए अहम था कि वह गुवाहाटी में होने वाले टूर्नामेंट के कम से कम सेमीफाइनल में पहुंचे। हैदराबाद से गुवाहाटी का यह सफर डर और खौफ के साये में बिता। सानिया ने तिरंगे का प्रतिनिधित्व करने का मौका पाया।
13 साल की उम्र का वह सफर नहीं भूलीं सानिया
हर बार की तरह सानिया के पिता ने पूरा प्लान तैयार किया। उन्होंने हैदराबाद से कोलकाता के लिए ट्रेन में सीटें बुक की जो कि 24 घंटे का सफर था। तय कार्यक्रम के मुताबिक कोलकाता में एक दिन बिताकर वह फ्लाइट लेकर टूर्नामेंट से एक दिन पहले गुवाहाटी पहुंच जाते। सानिया को हैदराबाद से निकलते हुए अंदाजा भी नहीं था कि यह सफर दंगें, खून, ब्लास्ट और हिंसा के रंगों से रंगा होगा।
बीच रास्ते में रोक दी गई थी ट्रेन
सानिया की हैदराबाद से कोलकाता की ट्रेन 12 घंटे लेट थी। कोलकाता से 160 किमी पहले ही यह ट्रेन रोक दी गई। ट्रेन के यत्रियों को बताया गया कि पश्चिम बंगाल में बंद के कारण ऐसा हुआ है। उन्हें किसी ओर ट्रेन में जाने को कहा गया लेकिन भीड़ देखकर सानिया के पिता ने वहीं रुकने का फैसला किया। यहीं पर सानिया को एक और परिवार मिला जो अपने बेटी के साथ गुवाहाटी ही जा रहा था। सानिया की तरह उनकी बेटी मंजूषा भी उसी टूर्नामेंट में हिस्सा लेने वाली थी। दोनों के पिता वहां के एक नेता के घर गए उनसे एक मेडिकल ग्राउंड पर एक आधिकारिक चिट्ठी ली। इस चिट्ठी को देखकर बहुत मुश्किल से एक टैक्सी वाला मिला जो उन्हें कोलकाता ले जाने को तैयार हो गया।
सानिया के पिता के सिर पर लगी गहरी चोट
हालांकि यहां भी सानिया और उनके पिता की परेशानी खत्म नहीं हुई। जैसे ही सानिया के पिता सामान को टैक्सी में डाल रहे थे उनके सिर पर चोट लग गई। सिर से खून आने लगा जिसे देखकर सानिया को उल्टी होने लगी। घाव बहुत घहरा था। बंद के कारण डॉक्टर ढूंढने में बहुत देर लगी। सानिया के पिता के सिर पर टांके लगे। इसके बाद सफर शुरू हुआ तो दंगाइयों ने उनकी गाड़ी को घेर लिया। 50 दंगाइयों की भीड़ से टैक्सी वाला दोनों परिवारों को लेकर निकल गया। आगे एक और गैंग मिली और वहीं पर गैंग वॉर शुरू हो गई। नन्हीं सानिया के आखों में इस समय केवल पिता के लिए चिंता और गैंग वॉर का डर था। गैंग वॉर से बचाने के लिए ड्राइवर ने टैक्सी को खेतों के बीच दौड़ाया।
ड्राइवर ने जाहिर की आखिरी इच्छा
इसके बाद ड्राइवर ने कुछ ऐसा कहा जिसे सुनकर गाड़ी में बैठे सभी लोग सुन्न पड़ गए। टैक्सी ड्राइवर ने एक पन्ने पर घर का पता लिखकर सानिया के पिता को थमाया और कहा कि अगर उन्हें कुछ हो जाए तो गाड़ी को उस पते पर भेज दे। पूरी रात भटकने के बाद टैक्सी ड्राइवर ने सभी को एयरपोर्ट तक पहुंचा दिया। हालांकि वहां पहुंचकर सानिया को पता चला कि जिस रास्ते से वह 20 मिनट पहले गुजरे थे वहां बम ब्लास्ट हुआ।
खौफनाक सफर के बाद हुई नए सफर की शुरुआत
एक 13 साल की बच्ची रात भर में इतना कुछ देखने के बाद टूर्नामेंट कैसे खेलती। हालांकि वह सानिया मिर्जा थीं। जो कोर्ट पर कदम रखते ही हर मुश्किल, हर दर्द, हर परेशानी और हर दुख भूल जाती थी। उनका ध्यान केवल खेल पर होता था। वह इस टूर्नामेंट में सेमीफाइनल तक पहुंचने में कामयाब रही। वापसी में उनकी फ्लाइट से पहले फिर एक बम ब्लास्ट हुआ था जिसके कारण उन्हें घंटो बाद फ्लाइट मिली। इस बार भी सानिया और उनके पिता बाल-बाल बचे। सानिया कोलकाता से वापस हैदराबाद आ रही थीं और उस समय ट्रेन में उन्होंने अखबार लिया। उस अखबार में जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए भारतीय टीम में चुने गए खिलाड़ियों का नाम लिखा हुआ था। उन तीन नामों में सानिया मिर्जा का नाम शामिल था। अपने जिंदगी के सबसे लंबे और सबसे खौफनाक सफर के बाद सानिया को जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी मिली। उन्हें पहली बार भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला।