महानतम बल्लेबजों की बात होगी तो वह कभी दिग्गज सुनील गावस्कर बगैर कभी पूरी नहीं होगी। हालांकि, उनके करियर एक पारी हमेशा सवालों के घेरे में रहेगी। वाक्या 1975 का है, जब भारत का पहली बार एकदिवसीय विश्व कप में इंग्लैंड से सामना हुआ था। पहले बल्लेबाजी करते हुए डेनिस एमिस के 137 रनों की पारी की मदद से 4 विकेट पर 334 रन बनाए। एमिस को कीथ फ्लेचर (68) और क्रिस ओल्ड (51*) ने काफी मदद मिली।
जवाब में भारतीय टीम कभी भी अच्छी स्थिति में नहीं दिखी। गावस्कर ने उस मैच में सीमित ओवरों के क्रिकेट में सबसे धीमी पारियों में से एक खेली। कोई भी समझ नहीं पा रहा था कि यह महान भारतीय बल्लेबाज क्या करने की कोशिश कर रहा था। वह गेंदों को रोकते और छोड़ते रहे। भारत ने 60 ओवर में 3 विकेट पर 132 रन बनाए। गावस्कर 174 गेंदों पर 36 रन बनाकर नाबाद रहे और उन्होंने सिर्फ एक चौका लगाया।
गावस्कर की पारी से दर्शक हैरान रह गए और उन्होंने सलामी बल्लेबाज का भी मजाक उड़ाया। हालांकि, गावस्कर इससे प्रभावित नहीं हुए और वैसे ही बल्लेबाजी करते रहे। मैच के बाद बोलते हुए टीम इंडिया के पूर्व कप्तान और उस विश्व कप के दौरान टीम के मैनेजर गुलाबराय रामचंद ने स्वीकार किया कि बैठक में गावस्कर ने जिस तरह का दृष्टिकोण दिखाया वह मीटिंग में चर्चा नहीं की गई थी। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि सलामी बल्लेबाज को न तो फटकार लगाई जाएगी और न ही इस प्रदर्शन के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
हालांकि, श्रीनिवास वेंकटराघवन ने कई वर्षों के एक इंटरव्यू में कहा कि गावस्कर ने टीम, दर्शकों और खेल की भावना को नीचा दिखाया। अपनी किताब सनी डेज में मैच के बारे में बात करते हुए गावस्कर ने कहा था कि उन्होंने इस मैच में कई बार आउट होने की कोशिश की। वह मानसिक पीड़ा से गुजर रहे थे।
उन्होंने कहा, “ऐसे मौके आए जब मैनें स्टंप्स से हटने का मन बनाया, ताकि मैं बोल्ड हो जाऊं। मैं मानसिक पीड़ा से पीड़ित था। इससे दूर होने का यही एकमात्र तरीका था। मैं पारी को गती नहीं दे पा रहा था और मैं आउट नहीं हो सका। अंत में मैं मैकेनिकली खेल रहा था।” गावस्कर टेस्ट क्रिकेट में 10,000 रन बनाने वाले पहले बल्लेबाज थे। सीमित ओवरों के प्रारूप में उन्होंने एक शतक और 27 अर्धशतक के साथ 35.13 की औसत से 108 एकदिवसीय मैचों में 3092 रन बनाए।