चरनपाल सिंह सोबती

एशिया कप में सुपर 4 राउंड में एशिया के चारों टेस्ट देश की टीम ही खेलीं। इनमें नेपाल का नाम नहीं है- ग्रुप ए में भारत और पाकिस्तान से हार के साथ उसका सफर रुक गया। रिकार्ड यही बताएगा कि एशिया कप में 4 सितंबर को भारत ने पल्लेकेले में नेपाल को 10 विकेट से मात दी। वास्तव में खबर, यह नतीजा नहीं, यह है कि नेपाल ने पहले बल्लेबाजी में भारत के शीर्ष गेंदबाजों के 48 से ज्यादा ओवर खेले और 230 का स्कोर बनाया।

नेपाल के क्रिकेट प्रेमियों के लिए आसिफ शेख का अर्धशतक (58), पावरप्ले में कुशल भुर्तेल (25 गेंद में 38) का स्ट्रोक प्ले और स्लाग ओवरों में सोमपाल कामी (48 रन- 1 चौका और 2 छक्के) की बल्लेबाजी एक बड़ी उपलब्धि थे। जब आसिफ ने अपना पचासा पूरा किया, तो नेपाली प्रशंसक झूम रहे थे और स्टेडियम में नेपाली गाने सुनाई दे रहे थे।

नेपाल की क्रिकेट में पहचान किसी हिमालय जैसी बड़ी ऊंचाई से कम नहीं है। खेलने और देखने वाले दोनों इस के लिए तारीफ़ के हकदार हैं। सुविधाओं की कमी और साल के ज्यादातर हिस्से में बेहद खराब मौसम के बावजूद, टीम भावना और जुनून की बदौलत, क्रिकेट को ऐसे मुकाम पर ले आए हैं कि अब वहां युवा वर्ग काम की तलाश में सिर्फ देश से बाहर निकलने के बारे में नहीं सोच रहा।

क्रिकेट आज वहां ऐसे मुकाम पर है जहां से उसे और प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है। क्रिकेट में बेहतर ढांचे की जरूरत है। यह आइसीसी का काम है- बड़ा आसान जवाब है यह। एशिया के तीनों बड़े क्रिकेट देश भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका की जिम्मेदारी है कि नेपाल की इस क्रिकेट सफर में मदद करें- खास तौर पर भारत की।

आज भारत क्रिकेट में जिस मुकाम पर है- हमेशा ऐसा नहीं था। न ऐसी प्रतिभा थी, न पैसा और न शीर्ष क्रिकेट खेलने का ऐसा इंतजाम। आज नेपाल टीम का एक मैच जीतना या मैच में अच्छा प्रदर्शन जैसे खबर बनता है- भारत में भी तब ऐसा ही था। इसलिए अब यह एशिया के बड़े क्रिकेट देशों को सोचना है कि वे नेपाल क्रिकेट को एक और कीनिया की तरह देखते हैं या वास्तव में, क्रिकेट में उन्हें अपनी पहचान बनाने के सफर में आगे बढ़ते देखना चाहते हैं।

बाकी का काम तो खुद नेपाल क्रिकेट और क्रिकेटरों को करना है। आज जैसे इतिहास भूलकर, रांची शहर का परिचय एमएस धोनी का शहर है- वैसे ही टूर गाइड, इन दिनों लुंबिनी को सिर्फ गौतम बुद्ध की जन्मस्थली नहीं बताते- क्रिकेट कप्तान कुशल भुर्तेल का शहर भी बताते हैं। वे एमबीए हैं और युवा वर्ग के लिए प्रेरणा।

जली मां को अस्पताल में छोड़कर नामीबिया के विरुद्ध मैच में जीत के लिए 286 रन की चुनौती के सामने भुर्तेल ने 113 गेंद में जो 115 रन बनाकर जीत दिलाई- उसकी कहानी नेपाल में कोई भी सुना देगा। युवा क्रिकेट खिलाड़ियों को प्रतिभा की बदौलत नेपाल सेना और पुलिस नौकरी दे रहे हैं। क्रिकेट को चाहने वाले अपनी कमाई का नुकसान कर मैच देखने आते हैं और तभी तो नेपाल ने विश्व कप क्वालीफायर खेलने और एशिया कप के लिए क्वालीफाई करने जैसा मौका हासिल किया। काठमांडो में त्रिभुवन यूनिवर्सिटी काम्प्लेक्स में क्रिकेट के लिए बुनियादी ढांचा जुटा लिया है और नेपाल टीम यहीं क्रिकेट मैच खेलती है।

ज्यादातर खिलाड़ी नेपाल के पश्चिमी हिस्से से, साधारण पृष्ठभूमि से हैं और क्रिकेट के लिए महीनों यहीं रहते हैं- परिवार से दूर। इसी यूनिवर्सिटी ग्राउंड में हजारों की भीड़ के सामने विश्व कप सुपर लीग 2 में 31 दिनों में, 12 मैच में नेपाल ने अपना वएक दिवसीय खेलने का दर्जा बचाया और आइसीसी के क्रिकेट में बड़े एसोसिएट सदस्यों नामीबिया, स्काटलैंड, पापुआ न्यू गिनी और यूएई को भी हराया।

नेपाल को 2018 में वनडे दर्जा मिला था और वे उसे खोने की कगार पर थे। टूर्नामेंट की अंक तालिका में सबसे नीचे से उठकर मुख्य प्रशिक्षक देसाई की टीम ने वह दर्जा बचा लिया। वर्ल्ड कप क्वालीफायर में मुकाबला वेस्ट इंडीज, जिम्बाब्वे, आयरलैंड और नीदरलैंड जैसी टीम से था और वह मुश्किल चुनौती साबित हुआ। एक दिन इन जैसी टीम या एशिया कप में बड़े पड़ोसी टैस्ट देशों से मुकाबला भी कर सकेंगे। बशर्ते इस मुकाम पर उनके क्रिकेटरों को लगातार बेहतर दर्जे की क्रिकेट खेलने का मौका मिले।

यहां बीसीसीआइ से मदद की उम्मीद है- रणजी ट्राफी/दलीप ट्राफी में खेलने का मौका उनमें दम भरेगा। सही बुनियादी ढांचे के लिए, भारत में उन्हें क्रिकेट अभ्यास की सुविधा मिले (जैसे अफ़ग़ानिस्तान के लिए किया) और शुरुआत के तौर पर राज्य में खेली जा रही टी20 लीग में उनके खिलाड़ियों के खेलने का रास्ता खुले। बीसीसीआइ को एक मार्गदर्शक के तौर पर वैसे ही मदद करनी होगी जैसे अन्य बड़े क्रिकेट देशों ने शुरू के सालों में भारत में क्रिकेट को दी।