एफआइएच जूनियर विश्व कप में भारत की जूनियर हाकी टीमों ( लड़कों और लड़कियों) का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। लड़कियों की टीम का नौवें स्थान पर रहना वास्तव में एक खराब प्रदर्शन था, लेकिन ध्यान लड़कों की टीम पर था, जिसे सेमीफाइनल में जर्मनी से 1-4 से हार के बाद कांस्य पदक के लिए हुए मुकाबले में स्पेन के हाथों 1-3 से हार का सामना करना पड़ा था। भारत के लिए जर्मनी मैच में 13 पेनल्टी कार्नर बर्बाद करना किसी अपराध से कम नहीं था।
इससे भी अधिक घटिया तर्क प्रशिक्षक सीआर कुमार ने दिया। उन्होंने कहा कि मैन-टू-मैन मार्किंग के कारण भारत हारा। इस पर भारतीय हाकी के दिग्गजों ने कहा कि यदि मैन-टू-मैन मार्किंग भारत के खराब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार थी, तो उसने 13 पेनल्टी कार्नर कैसे अर्जित किए? कुआलालंपुर में भारतीय प्रशंसकों के लिए भारत का जर्मनी से हारना हजम करने लायक नहीं था। सेमीफाइनल में जगह बनाने के बाद टीम को कम से कम दो योजनाएं तैयार रखनी थीं। आजकल, आधुनिक हाकी में पेनल्टी कार्नर को गोल में बदलना काफी अहम माना जाता है। यदि उस कार्य के लिए चार लोग थे तो भारत ने कोई बदलाव क्यों नहीं किया?
एक पूर्व दिग्गज का कहना था कि अगर आप पेनल्टी कार्नर को बदलने में कोई विविधता नहीं दिखाएंगे, तो यह अजीब है। चीन के हांगझू में एशियाई खेलों में पुरुष हाकी टीम द्वारा जीते गए स्वर्ण पदक का जश्न मना रहे हाकी प्रेमियों के लिए जूनियर खिलाड़ियों का खराब प्रदर्शन बहुत दुख पहुंचाने वाली खबर है। यह कहना लगभग असंभव है कि इनमें से कुछ जूनियर 2024 के पेरिस ओलंपिक के बाद सीनियर टीम में आएंगे। इसका मतलब है कि भावी खिलाड़ियों का मजबूत न होना वास्तविक चिंता का विषय है।
चर्चा है कि जूनियर बालक वर्ग में एका नहीं था। अगर ऐसा मामला है, तो प्रशिक्षक और बेलारूस से आए शख्स, जो दो जूनियर टीमों को संभालने के लिए तैनात थे, चुप कैसे हैं? अगस्त में, हाकी इंडिया ने घोषणा की थी कि पूर्व डच महिला हाकी कोच हरमन क्रूज दोनों पक्षों की तैयारियों की देखरेख करेंगे।
क्रूज ने अगस्त में एक बयान जारी कर कहा था, आने वाले चार महीने रोमांचक हैं और साथ ही टीमों की तैयारियों के लिए एक अहम चरण है। लेकिन एफआइएच-प्रमाणित कोच-सह-प्रशिक्षक अब चुप हैं। वे दो टीमों के खराब खेल के लिए जिम्मेदार हैं। 2016 में जब भारत की जूनियर टीम ने लखनऊ में विश्व कप जीता तो उत्साह का माहौल था।
कोच हरेंद्र सिंह सातवें आसमान पर थे, हालांकि सारी मेहनत हाई-परफार्मेंस निदेशक रोलैंट ओल्टमेंस ने की थी। यह एक अलग कहानी थी कि 2016 रियो ओलंपिक के बाद ओल्टमेंस को बर्खास्त कर दिया गया था। 2021 में, जब भुवनेश्वर ने जूनियर विश्व कप की मेजबानी की, तो भारत चौथे स्थान पर रहा।
भारतीय कप्तान उत्तम सिंह के पास शब्द नहीं हैं। सरकार द्वारा भारतीय हाकी में भरपूर पैसा लगाया गया है। उन्हें शिविरों में सर्वोत्तम सुविधाएं मिलती हैं। अगर इन सबके बाद भी नतीजे अच्छे नहीं आए तो सवाल तो पूछे ही जाएंगे।आदर्श रूप से, पूरे अभियान की योजना बनाने और निगरानी करने के लिए एक उच्च-प्रदर्शन निदेशक होना चाहिए। चूंकि ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, लिहाजा सोचना होगा। अगर तुलना की जाए तो क्रेग फुल्टन ने सीनियर टीम के साथ मुश्किल से तीन महीने बिताए और देश को दो बड़ी ट्राफियां, चेन्नई में एशियाई चैंपियंस ट्राफी और फिर एशियाई खेल जिताया।
चीर फाड़ तो करना ही होगा कि आखिर क्रूज की खोज किसने की और उन्होंने कितना योगदान दिया। भारतीय सीनियर टीम को मजबूत बनाए रखने की खातिर इसकी जांच हाकी इंडिया द्वारा गठित एक स्वतंत्र समिति द्वारा की जानी चाहिए। इतने सारे संसाधन बर्बाद हो गए हैं और कोई सवाल नहीं हो रहा है।
सरकार-भारतीय खेल प्राधिकरण (एसएआइ) और खेल मंत्रालय को कायदे से हाकी इंडिया (एचआइ) से पूछना चाहिए कि इस लचर प्रदर्शन के लिए कौन जिम्मेदार है। वर्तमान समय में हाकी को लेकर बहुत उत्साह है और यदि जूनियर टीमें अच्छा प्रदर्शन नहीं करती हैं, तो इसका जमीनी स्तर के विकास पर प्रभाव पड़ेगा।