आइपीएल यानी इंडियन प्रीमियर लीग के छठे चरण के खेलों में सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग को लेकर सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय जांच समिति के फैसले से एक बार फिर बीसीसीआइ यानी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है। जांच समिति ने आइपीएल की दो टीमों चेन्नई सुपरकिंग्स और राजस्थान रॉयल्स को दो साल के लिए और इनके मालिकों गुरुनाथ मेयप्पन और राज कुंद्रा को आजीवन क्रिकेट की गतिविधियों में हिस्सा लेने से प्रतिबंधित कर दिया है।
दो साल पहले आइपीएल के छठे चरण में मेयप्पन और राज कुंद्रा पर सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग के आरोप लगे थे। तब बीसीसीआइ ने इन दोनों को बचाने का प्रयास किया था। उस वक्त बीसीसीआइ के अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन थे। मेयप्पन उनके दामाद हैं। इसलिए श्रीनिवासन ने क्रिकेट के बजाय अपने दामाद को बचाने का पूरा जतन किया। इसमें बीसीसीआइ के दूसरे अधिकारियों ने भी मौन साध कर उनका साथ दिया।
तब बीसीसीआइ ने अपनी तरफ से जांच समिति गठित की और उसने दोनों आरोपियों को बरी कर दिया। मुंबई उच्च न्यायालय ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया। फिर सर्वोच्च न्यायालय में यह मामला पहुंचा और उसने भी मेयप्पन और राज कुंद्रा को दोषी पाया। मामला बस इतना रह गया था कि इन दोनों को व्यक्तिगत तौर पर और इनकी टीम के खिलाड़ियों को क्या सजा हो। सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि दोषी केवल इन टीमों के मालिकों को नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि उनकी रणनीति का हिस्सा रहे खिलाड़ी भी बराबर के दोषी हैं।
इसी के मद्देनजर अदालत ने करीब छह महीने पहले पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अगुआई में तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया था। समिति का फैसला एक तरह से क्रिकेट में व्याप्त भ्रष्टाचार पर नकेल कसने का प्रयास है।
इस फैसले के बाद दोनों टीमों से जुड़े खिलाड़ियों और आइपीएल के भविष्य को लेकर अनिश्चितता का माहौल है। बीसीसीआइ को चिंता है कि आइपीएल का क्या होगा, क्योंकि दो टीमों पर प्रतिबंध लगने के बाद केवल छह टीमें रह गई हैं। इस तरह आइपीएल का रोमांच खत्म हो जाएगा। फिर आइपीएल के जरिए बीसीसीआइ की जो अकूत कमाई होती है, उस पर गहरा असर पड़ेगा। हालांकि उसके सामने दो नई टीमें शामिल करने का विकल्प है।
राजस्थान रॉयल्स और चेन्नई सुपरकिंग्स का मालिकाना हक बेच कर इन्हें फिर से मैदान में उतारा जा सकता है, पर ऐसा करने से क्रिकेट पर लगा दाग और गाढ़ा होगा। इसी अनिश्चितता के चलते बीसीसीआइ ने टी-20 मैचों को फिलहाल रोक दिया है। मगर जांच समिति के इस फैसले के बाद बीसीसीआइ को आइपीएल की फिक्र के बजाय क्रिकेट में शुचिता लाने पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
पिछले कई सालों से बीसीसीआइ एक तरह से कुछ लोगों की निजी जागीर जैसा बन कर रह गया है। कई मौकों पर इसमें अनियमितताएं उजागर हो चुकी हैं। सर्वोच्च न्यायालय पहले भी कह चुका है कि बीसीसीआइ की जिम्मेदारी राजनीतिक लोगों के बजाय खिलाड़ियों को सौंपी जानी चाहिए। मगर इसमें बेपनाह कमाई का आकर्षण ऐसा है कि रसूखदार लोग बीसीसीआइ पर काबिज होते गए हैं।
लोढ़ा समिति ने फैसला सुनाते वक्त कहा कि खेल महत्त्वपूर्ण है न कि कोई टीम और उसके खिलाड़ी, इसलिए अगर खेल नियमों का उल्लंघन होता है तो उन्हें इसका दंड भुगतने को तैयार रहना चाहिए। यह एक तरह से बीसीसीआइ को नसीहत भी है। उसे अपने भीतर सुधार के उपाय तलाशने चाहिए। क्रिकेट के दामन पर दाग लगा रहेगा तो बीसीसीआइ की साख पर सवाल उठते रहेंगे।
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