मिहिर वासवड़ा। मार्च 2025 की शुरुआत में दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें चुनाव कराने में देरी के कारण भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (BFI) को निलंबित कर दिया गया था। पिछले शुक्रवार को बीएफआई की हिमाचल प्रदेश इकाई ने 28 मार्च को होने वाले चुनावों के लिए अपने अध्यक्ष पद के उम्मीदवार पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के नामांकन को खारिज करने के लिए महासंघ को अदालत में ले जाने की चेतावनी दी।
द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार मुक्केबाजी प्रशासनिक मुद्दों में कोर्ट की हस्तक्षेप की मांग करने वाला एकमात्र खेल नहीं है। यह उन 49 खेलों में से एक है, जहां अदालतों ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई है। इनमें गवर्नेंस बॉडी इलेक्शन या टीम सलेक्शन से संबंधित विवादों के काफी मामले हैं। खेल से जुड़े कानून विशेषज्ञों द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़ों के अनुसार 2015 से खेल और खेल निकायों से संबंधित लगभग 770 मुकदमे देशभर की अदालतों और सेंट्रल ट्रिब्यूनल में विभिन्न चरणों में लंबित हैं। इनमें से 462 मामले हाई कोर्ट और 22 सुप्रीम कोर्ट में हैं।
150 मामले शासन निकाय के चुनावों या अन्य मुद्दों से संबंधित हैं
अधिकांश मुकदमे सरकारी खेल निकायों से जुड़े नियमित प्रशासनिक मामले से जुड़े हैं। 200 से अधिक मामले ऐसे हैं, जिनमें राष्ट्रीय खेल महासंघ (National Sports Fedration) ने या तो याचिका दायर की है या उनके खिलाफ याचिका दायर है। इनमें से 150 मामले शासन निकाय के चुनावों या अन्य मुद्दों से संबंधित हैं। 64 मामले असंतुष्ट एथलीट्स से संबंधित हैं, जो चयन से चूक गए।
राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक 2024 का मसौदा
खेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक 2024 के मसौदे (Draft National Sports Governance Bill 2024) को इसका हल बताया। उन्होंे कहा कि प्रस्तावित कानून अदालतों पर बोझ कम कर सकता है। अधिकारी ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ” विधेयक में एक सिफारिश यह भी की गई है कि खेल पंचाट न्यायालय (Court of Arbitration for Sport) की तरह ही अपील करने के लिए स्पोर्ट्स ट्रिब्यूनल (Appellate Sports Tribunal) बने। ऐसा होने पर पीड़ित पक्षों को पहले प्रस्तावित ट्रिब्यूनल के पास जाना होगा। अगर वे फैसले से असंतुष्ट हैं तो वे सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।”
भारतीय खेल प्रशासन में “पारदर्शिता की कमी”
खेल मंत्रालय ने पिछले साल अक्टूबर में विधेयक को जनता की प्रतिक्रिया के लिए प्रकाशित किया था। उम्मीद थी कि इसे चालू बजट सत्र में पेश किया जाएगा। स्पोर्ट्स लॉ फर्म क्रीडा लीगल के मैनेजिंग पार्टनर विदुषपत सिंघानिया के अनुसार आंकड़े भारतीय खेल प्रशासन में “पारदर्शिता की कमी” को उजागर करता है। उन्होंने कहा, “चयन में, दिशा-निर्देशों और चयन प्रक्रिया में अस्पष्टता ही वह कारण है, जिसके कारण एथलीट अदालतों में जाते हैं… शासन के पहलू में भी पारदर्शिता की कमी है। यदि नियम स्पष्ट होते और चुनाव पूरी तरह से पारदर्शी तरीके से होते तो आपको यह देखने को नहीं मिलता। निर्वाचक मंडल से लेकर रिटर्निंग अधिकारी तक बिना किसी पक्षपात के काम करते।”
हर निकाय को कानूनी लागतों के लिए बजट बनाना पड़ता है
सिंघानिया ने डेटा नहीं देखा है, लेकिन उन्होंने कहा कि मामलों की संख्या से पता चलता है कि “वास्तव में हर महासंघ विवाद में है”। उन्होंने कहा कि उन्हें आश्चर्य नहीं हुआ। लगभग हर शासी निकाय को कानूनी लागतों के लिए बजट बनाना पड़ता है। चाहे वह ड्रैगन बोट रेसर, बॉल-बैडमिंटन और सिलंबम जैसे कम लोकप्रिय खेल हों या फुटबॉल, बैडमिंटन और हॉकी जैसे लोकप्रिय खेल हों।
पीयू चित्रा बनाम भारतीय एथलेटिक्स महासंघ
भारत की विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप टीम में जगह न मिलने पर मिडिल डिस्टेंस रनर पीयू चित्रा ने 2017 में भारतीय एथलेटिक्स महासंघ को केरल हाई कोर्ट में घसीटा। विश्व एथलेटिक्स के आंकड़ों के अनुसार चित्रा का आखिरी कंप्टीशन 2023 में था। उनका 2017 का मामला अभी भी लंबित है।
एमेच्योर बेसबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया से जुड़ा मामला
दिसंबर 2019 से नवंबर 2022 तक 11 अलग-अलग अदालती मामलों में कई राज्य महासंघों ने एमेच्योर बेसबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया पर “मनमानी”, “अवैध रूप से” काम करने और युवा खिलाड़ियों को राष्ट्रीय चैंपियनशिप में प्रतिस्पर्धा करने से “रोकने” का आरोप लगाया है। मामले अभी भी चल रहे हैं।
नियम लिखे जाने से पहले ही योग में बवाल
नियम लिखे जाने से पहले ही योग में दो प्रतिद्वंद्वी निकाय उभरे। इस स्पोर्ट्स के एशियाई खेलों और ओलंपिक का हिस्सा बनने की उम्मीद है। 2021 में, भारतीय योग महासंघ ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर सरकार के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें राष्ट्रीय योगासन खेल महासंघ को खेल को संचालित करने के लिए मान्यता दी गई थी। मामले की अगली सुनवाई 21 मई को होगी।
खिलाड़ियों के लिए फंड पर असर
एक खेल कानून विशेषज्ञ ने कहा कि मामलों की भारी संख्या के कारण खिलाड़ियों के लिए फंड पर असर पड़ता है, क्योंकि महासंघों को भारी कानूनी खर्च वहन करना पड़ता है। वकील ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “चूंकि लगभग हर महासंघ कई महीनों या सालों तक चलने वाले अदालती मामलों से जूझ रहा है, इसलिए मुकदमेबाजी का खर्च बहुत ज्यादा हो जाता है। पहले से ही सरकार और निजी तौर पर संचालित एजेंसियां शीर्ष एथलीट्स के लिए धन का प्रबंध कर रही हैं। लेकिन कानूनी मामलों पर खर्च करने से युवा विकास में महासंघों की वित्तीय संभावनाएं भी सीमित हो जाती हैं।”
भारतीय फुटबॉल महासंघ ने कानूनी मामलों में 3 करोड़ रुपये खर्च किए
रिपोर्ट के अनुसार 2022 में अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (AIFA) ने कानूनी मामलों में 3 करोड़ रुपये खर्च किए। हालांकि, सभी मामले शासन संबंधी मुद्दों या चुनाव या चयन के नहीं हैं। असंतुष्ट एथलीट्स ने नेशनल स्पोर्ट्स अवार्ड्स से संबंधित मुद्दों पर अदालत का दरवाजा खटखटाया है। स्क्वैय (एक मार्शल आर्ट) से लेकर बेसबॉल तक के खेलों में युवा एथलीट उच्च शिक्षा संस्थानों में खेल कोटा सीटों की मांग कर रहे हैं। भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) या नेहरू युवा केंद्र संगठन के लंबे समय से सरकारी कर्मचारी पदोन्नति और उच्च वेतन की मांग कर रहे हैं और बर्खास्तगी का विरोध कर रहे हैं। बीएफआई पूर्व खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के चुनाव लड़ने पर क्यों रोक लगाई? जानने के लिए क्लिक करें।
