भारतीय फुटबाल टीम एशियाई खेलों में जाएगी। खेलप्रेमियों और खेल का संचालन करने वालों के लिए यह सुखद खबर है। हर चार साल बाद जब एशिया के इस प्रतिष्ठित खेल मेले का समय नजदीक आता है तो चयन और भागीदारी को लेकर विवाद उठता है। अपने दावे को मुहर लगाने के लिए मामले को कोर्ट तक ले जाया जाता है। इस बार भी खिलाड़ी कोर्ट में गए। सरकारी नीति की सबसे बड़ी चोट टीम खेलों पर पड़ती है। इसमें फुटबाल भी शामिल है। अगर आप एशिया की शीर्ष आठ टीमों में आते हैं तो हरी झंडी मिल जाएगी। लेकिन अगर इस दायरे में नहीं आते तो भाग लेने या न लेने के लिए सरकारी मेहरबानी पर निर्भर हो जाएंगे।

कहने को तो यह कहा जाता है कि खेलों में हिस्सा लेना जरूरी है, जीतना महत्त्वपूर्ण नहीं। वास्तविकता यह है कि हर खिलाड़ी जीतना चाहता है और उसका देश अपने खिलाड़ियों से अपेक्षा रखता है कि वह जीते, नाम कमाए और देश का मान बढ़ाए। इसलिए सरकारी स्तर पर पदक जीतने के लिए पुरस्कार भी मिलता है। इसलिए सरकारी स्तर पर ऐसी लकीर खींच दी जाती है जिसका पालन जरूरी होता है। अगर नियम न बनें तो हर स्तर पर अफरा-तफरी मच जाएगी। सरकार कभी नहीं चाहेगी कि दल तो बड़ा भेजो और सफलता के नाम पर मिले चंद पदक।

पदक लक्ष्य जरूर होना चाहिए पर इसके लिए भागीदारी जरूरी है। मापदंड की आड़ में अगर खिलाड़ी को अपने से बेहतर टीमों के खिलाफ खेलने का सुअवसर नसीब नहीं हो पाए तो क्या फायदा? अपने से बेहतर टीमों या खिलाड़ियों के खिलाफ खेलने से ही जहां कौशल में निखार आएगा, वहीं रैंकिंग में भी सुधार आएगा।

इसलिए टीमों को अनुभव दिलाने और रैंकिंग सुधारने के लिए अंतरराष्ट्रीय मैचों की संख्या भी बढ़ी है। वैसे राष्ट्रीय टीमों की रैंकिंग आपकी सफलता की गारंटी नहीं है। यह सिर्फ मन को तसल्ली देने वाली बात है। लेकिन एक बात जरूर है कि बेहतर रैंकिंग से जहां आप प्रतिद्बंद्बी पर दबाव बना सकते हैं, वहीं मनोवैज्ञानिक लाभ भी उठा सकते हैं। टीमों की रैंकिंग को देखकर भी रणनीति को बनाया जा सकता है।

अब एशियाई खेलों में पुरुष फुटबाल को ही लीजिए। भारत ग्रुप ए में है। उसके साथ मेजबान चीन, बांग्लादेश और म्यांमा की टीमें हैं। मेजबान होने के साथ-साथ चीन रैंकिंग में भी भारत से ऊपर है, इसलिए वह प्रबल प्रतिद्बंद्बी साबित होगा। चीन की फीफा रैंकिंग 80 है जबकि भारत पिछले कुछ समय में किए गए अच्छे प्रदर्शन के फलस्वरूप अपनी रैंकिंग को सौ से नीचे लाने में कामयाब हुआ है।

मार्च में भारत की रैंकिंग 106 थी। लेकिन सैफ फुटबाल और इंटर कांटीनेंटल कप की खिताबी सफलता मिलने से भारत की स्थिति बेहतर हुई है। अब भारत फीफा रैंकिंग में 99वें स्थान पर है। रैंकिंग के हिसाब से देखा जाए तो भारत एशिया में 18वें स्थान पर है। अगर सरकारी मापदंड से चला जाए तो भारत एशियाई फुटबाल में भाग लेने की पात्रता नहीं रखता है।

2018 के एशियाई खेलों में सरकार ने फुटबाल टीम को इसी वजह से नहीं भेजा था, लेकिन अब खेल मंत्री अनुराग ठाकुर की भी समझ में आ गया है कि अगर इसी पर चलते रहे तो निकट भविष्य में फुटबाल टीम तो इन खेलों का हिस्सा ही नहीं बन सकती। इसलिए खेल के हित में यह जरूरी है कि टीम को भाग लेने का मौका दिया जाए। और एशियाई खेलों में भारत जिस ग्रुप में है, उससे नाकआउट दौर में पहुंचने के अच्छे आसार हैं। खासतौर पर टीम के हालिया प्रदर्शन को देखते हुए।

यह सच है कि अब हमारी छवि विजेता वाली नहीं रही। एशिया में फुटबाल का जो स्तर इस समय है, उसमें हम काफी पिछड़ गए हैं। दक्षिण कोरिया, जापान, कतर, सऊदी अरब, ईरान, इराक और आस्ट्रेलिया जैसी टीमों की मौजूदगी में ऊपर उठकर शीर्ष आठ में जगह बनाना काफी मुश्किल काम है। इगोर स्टिमिक की टीम का पिछले माह प्रदर्शन काफी शानदार रहा।

टीम ने पांच मैच जीते और चार ड्रा खेले हैं। जब टीम अच्छा खेलती है तो खिलाड़ियों का आत्मविश्वास बढ़ता है और रैंकिंग भी सुधरती है। सुधार की उम्मीद एशियाड में भी है क्योंकि ग्रुप ए में चीन के अलावा भारत को बांग्लादेश और म्यांम से खेलना है। ये दोनों टीमें रैंकिंग में भारत से नीचे हैं। इनके खिलाफ जीत से भी भारत की स्थिति मजबूत होगी।

विदेशी कोच हमें मिला हुआ है। पर चैंपियन वाली क्लास के लिए चैंपियन खिलाड़ी भी चाहिए। 1951 में प्रथम एशियाड की स्वर्णिम सफलता के बाद भारतीय फुटबाल ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। दूसरे देशों के खेल स्तर में अप्रत्याशित सुधार हुआ है जिसके चलते लगता नहीं कि निकट भविष्य में तस्वीर बदलेगी। दक्षिण कोरिया एशियाई खेलों की पिछली विजेता है। जापान नंबर एक टीम है। दोनों ही कई बार विश्व कप में चुनौती पेश कर चुकी हैं। फिर खाड़ी के देशों की ताकत से सभी वाकिफ हैं।

महिला फुटबाल टीम एशियाई खेलों में दूसरी बार भाग लेगी। 2014 में तो उसका ग्रुप कठिन था और टीम तीन में से एक ही मुकाबला जीत पाई थी। लेकिन एक दशक में भारतीय महिला फुटबाल टीम की स्थिति सुधरी है। कुछ युवा प्रतिभाओं ने भी राष्ट्रीय मानचित्र पर अपना रंग जमाया है। ग्रुप में चीनी ताइपेइ और थाईलैंड की टीमें हैं। दोनों ही टीमें भारतीय महिलाओं के लिए टफ होंगी। सरकार ने तो हरी झंडी दिखा दी है। अब पुरुष और महिला टीमों को साबित करना है कि जिस हालिया प्रदर्शन से उसका दावा बना है, उस कसौटी पर वह खरी उतरें।

1951 में प्रथम एशियाड की स्वर्णिम सफलता के बाद भारतीय फुटबाल ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। दूसरे देशों के खेल स्तर में अप्रत्याशित सुधार हुआ है जिसके चलते लगता नहीं कि निकट भविष्य में तस्वीर बदलेगी। दक्षिण कोरिया एशियाई खेलों की पिछली विजेता है। जापान नंबर एक टीम है। दोनों ही कई बार विश्व कप में चुनौती पेश कर चुकी हैं। फिर खाड़ी के देशों की ताकत से सभी वाकिफ हैं।