केट विश्व कप में भारत का सफर सेमीफाइनल से आगे नहीं बढ़ पाया। आस्ट्रेलिया ने सिडनी के मैदान पर अपने जीत के रेकार्ड को और बेहतर किया। उसने भारत को 95 रनों से हरा कर विश्व कप से बाहर कर दिया। गुरुवार को भारतीय टीम चल नहीं पाई और दबाव में बिखर गई। न तो भविष्यवाणियां काम आर्इं, न दुआएं और न ही मन्नतें।
दुआएं और मन्नतें भी तभी काम आती हैं, जब टीम में लड़ने का जज्बा और कुछ कर गुजरने का जनून हो। सिडनी के मैदान पर न तो हममें जज्बा दिखा और न ही जीतने का जनून। पहले हमने आस्ट्रेलिया को तीन सौ से ज्यादा रन बनाने दिया और फिर जब बल्लेबाजी करने उतरे तो अच्छी शुरुआत को आगे नहीं ले जा सके। हमारा टाप आर्डर फ्लाप रहा तो मध्यक्रम दबाव में जूझता नजर आया।
पहले चार विकेट निकलने के बाद ही लगने लगा कि भारत ने एक तरह से पहले ही मैच गंवा दिया है। अब तक बल्लेबाजी और गेंदबाजी में चमकदार प्रदर्शन करने वाले हमारे योद्धा गुरुवार को बिना लड़े ही मैच हार गए और यह बात बेतरह परेशान करने वाली रही। हार-जीत खेल का हिस्सा है। एक टीम जीतती है और एक हारती है। लेकिन कई बार बेहतरीन प्रदर्शन कर टीमें हार कर भी जीत जाती हैं और कई बार टीमें जीत कर भी हारती हैं। हम गुरुवार को बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाए। पहले हम टास हारे और फिर मैच।
हार को लेकर ढेरों सवाल खड़े किए जा सकते हैं, खड़े होंगे भी। महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी को लेकर छींटाकशी होगी तो रवींद्र जडेजा को लेकर भी बहुत कुछ कहा जाएगा। टीम के दूसरे खिलाड़ी, जिनमें विराट कोहली सबसे ऊपर होंगे पर लगातार सवाल किए जाते रहेंगे।
ऐसा करते हुए हम यह भूल जाएंगे कि यह वही टीम है, जिसने विश्व कप में लगातार सात मैच जीते। बल्लेबाजों ने हल्ला बोला और विरोधी गेंदबाजों की बखिया उधेड़ दी तो गेंदबाजों ने बेहतरीन गेंदबाजी की। इसी विश्व कप में मोहम्मद शमी, उमेश यादव और मोहित शर्मा की लहराती गेंदों ने किसे नहीं परेशानी में डाला। रविचंद्रन अश्विन ने इस विश्व कप में अपने आप को फिर से खोज कर बेहतरीन गेंदबाजी की। नहीं तो पिछले कुछ दिनों से वे जिस तरह की नकारात्मक गेंदबाजी कर रहे थे, उससे स्पिन गेंदबाजी को लेकर क्रिकेट जानने वाले पसोपेश में थे।
लेकिन अश्विन ने इस विश्व कप में अपने उस आफ स्पिनर को फिर से खोज निकाला। खामियां तो बहुत गिनाई जाएंगी लेकिन इस विश्व कप से कई सकारात्मक पहलू भी सामने आए हैं। यों आलोचना करने के लिए टीम की बखिया उधेड़ी जा सकती है। लेकिन मोहित शर्मा इसी विश्व कप की खोज रहे हैं।
इशांत शर्मा के चोटिल होने के बाद मोहित को उनकी जगह टीम में शामिल किया गया था। पर उन्होंने लहराती गेंदों और स्लोअरवन से प्रभावित किया। विकटें तो ली हीं उन्होंने। यह उपलब्धि ही तो रही। फिर टीम जिस तरह एकजुट होकर खेली, उसने भी महेंद्र सिंह धोनी की इस टीम को चैंपियन के तौर पर दुनिया के सामने रखा।
लेकिन गुरुवार को हमारा दिन नहीं था। टास हारने के बाद कुछ भी हमारे पक्ष में नहीं गया। पंद्रह रन पर डेविड वार्नर को चलता करने के बाद स्मिथ और फिंच पर दबाव नहीं बना पाए, इससे दोनों ने 182 रनों की रेकार्ड साझेदारी कर मैच को आस्ट्रेलिया के पक्ष में मोड़ दिया। बीच में विकटें लेकर हमने वापसी जरूर की लेकिन डेथ ओवर और खास कर अंतिम तीन ओवरों में हमने ज्यादा रन लुटा दिए और आस्ट्रेलिया को तीन सौ से ज्यादा रन बनाने दिया। ऐसा नहीं है कि गेंदबाजी बहुत खराब हुई है लेकिन आस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों ने आक्रामकता के साथ-साथ संयम भी रखा और नतीजे में टीम के स्कोर को 329 रन तक ले गए।
भारतीय बल्लेबाज वह नहीं कर सके जो फिंच और स्मिथ ने किया था। फिंच ने स्मिथ को फटाफट करने दिया और खुद विकेट पर टिके रहे। इससे स्कोर भी बढ़ता रहा और गेंदबाजों पर भी दबाव बढ़ा। हमारे बल्लेबाज ऐसा नहीं कर पाए। ऊपर के चार बल्लेबाजों में कम से कम दो बल्लेबाजों को चालीस ओवर तक विकेट पर टिके रहना जरूरी था। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। हालांकि शुरुआत बेहतर रही।
हर ओवर में पांच से ज्यादा रन हम बना रहे थे। लेकिन 76 रन पर शिखर के आउट होने के बाद अगले 22 रनों के अंदर विराट कोहली, रोहित शर्मा और सुरेश रैना भी चलते बने। अच्छी गेंद पर आउट हुए होते तो अफसोस नहीं होता लेकिन खराब शाट खेल कर ये आउट हुए। रोहित और शिखर अच्छी शुरुआत को बड़े स्कोर में नहीं बदल पाए।
इसके बाद ही मैच हमारे हाथ से फिसल गया। क्षेत्ररक्षण के दौरान कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के चेहरे पर लिखी इबारत से ही उनकी मायूसी को पढ़ा जा सकता था। फिर जिस तरह से वे रन आउट हुए, वह उनकी इस मायूसी को और भी शिद्दत के साथ बयां करती है। उन्होंने डाइव लगाई होती तो वे रन आउट नहीं होते लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। सेमीफाइनल में भारत का पत्ता साफ हुआ और आस्ट्रेलिया का रास्ता।
हम हारे लेकिन संघर्ष कर नहीं हारे। लड़ कर मैदान से बाहर आता हारा हुआ योद्धा भी सुंदर दिखता है। दुख है कि सिडनी के मैदान पर हम लड़ कर नहीं हारे। लेकिन इस हार के बावजूद अपनी इस टीम से बहुत मायूस नहीं हुआ जा सकता। इस टीम ने कई सकारात्मक चीजों को हमारे सामने रखा है। जो खामियां हैं, उन्हें दूर कर खुद को अगले मुकाबलों के लिए हमें तैयार होना है। विश्व कप कोई अंतिम टूर्नामेंट नहीं है।
फ़ज़ल इमाम मल्लिक