भारतीय टीम का लक्ष्य ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ब्रिस्बेन वनडे मैच जीतना होगा। पांच मैचों की सीरिज का पहला मैच पांच गंवाने वाली टीम इंडिया इस समय 1-0 से पीछे है और ब्रिस्बेन में जीत उसे बराबरी दिला देगी। भारतीय कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी को दूसरे वनडे में कई बातों पर ध्यान रखना होगा जिससे कि जीत हाथ से फिसल न जाए। पर्थ वनडे में 309 रन का स्कोर खड़ा करने के बावजूद टीम इंडिया को हार झेलनी पड़ी थी। जीत के लिए इन क्षेत्रों में टीम इंडिया को करना होगा सुधार:
टीम संयोजन
ब्रिस्बेन की पिच तेज गेंदबाजों के मददगार रहती है इसे देखते हुए धोनी के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी टीम संयोजन। पर्थ में धोनी ने दो स्पिनर खिलाए थे जो कि महंगा सौदा साबित हुआ और जीत से महरूम होना पड़ा। आर अश्विन और रवीन्द्र जडेजा के 18 ओवरों में कुल 128 रन लुटाए थे, इसमें अगर रोहित शर्मा का ओवर भी जोड़ दें तो यह आंकड़ा 19 ओवर में 140 हो जाता है। इन्हीं ओवरों में मिले रनों के चलते ऑस्ट्रेलिया ने शुरुआती झटकों से पार पाई और विजेता बना। इस मैच में ऑस्ट्रेलिया ने चार तेज गेंदबाज खिलाए थे जबकि भारत ने तीन। अगर पर्थ वनडे में ईशांत शर्मा या रिषि धवन को जगह दी जाती तो नतीजा कुछ और हो सकता था।
11 से 40 ओवरों का खेल
हाल के दिनों में भारतीय टीम को 11 से 40 ओवरों के खेल में कमजोरी के चलते हार झेलनी पड़ी है। फिर चाहे वो दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ वनडे सीरिज में कानपुर और राजकोट मैच या हो फिर पर्थ वनडे। कानपुर और राजकोट में भारतीय बल्लेबाजों ने लक्ष्य का पीछा करने के दौरान रन बनाने में सुस्ती दिखाई थी। नतीजा जीते हुए मैच हाथ से फिसल गए। वहीं पर्थ वनडे में इन 30 ओवरों में टीम एक भी विकेट नहीं ले पाई और 200 से ज्यादा रन खर्च बैठी। टीम इंडिया को जल्द से जल्द इसमें सुधार करना होगा। इसके लिए गेंदबाजी और बल्लेबाजी दोनों में अनुशासन लाना होगा।
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तेज गेंदबाजों पर भरोसा
महेन्द्र सिंह धोनी स्पिनर्स पर काफी भरोसा करते हैं लेकिन पर्थ में मिली हार से उन्हें सबक लेना चाहिए। ऑस्ट्रेलिया की पिचें भले ही पहले ही तुलना में धीमी हुई है लेकिन अब भी तेज गेंदबाजों को ही मदद करती है। ब्रिस्बेन की पिच में काफी उछाल रहता है इसे देखते हुए रवीन्द्र जडेजा की जगह ईशांत शर्मा की एंट्री बनती है। वहीं रिषि धवन को भी मौका दिया जा सकता है, वह मीडियम पेस बॉलिंग के साथ ही बैटिेंग की काबिलियत भी रखते हैं। इस लिहाज से टीम में र्इशांत को जगह देनी चाहिए, क्योंकि वे अभी अच्छी फॉर्म में हैं।
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सिंगल लेने की जरूरत
पर्थ वनडे में भारतीय टीम ने भले ही 309 रन का स्कोर खड़ा किया हो लेकिन यह आंकड़ा 350 के करीब भी जा सकता था। शिखर धवन का विकेट जल्दी गिरने के बाद विराट कोहली और रोहित शर्मा ने मिलकर टीम को बड़े स्कोर तक पहुंचाया, लेकिन इन दोनों के ज्यादातर रन बाउंड्री से आए। कोहली और रोहित के क्रीज पर रहते भारत ने 11 से 40 ओवर के बीच लगभग पांच की रनरेट से 164 रन बनाए। इसी अवधि में ऑस्ट्रेलिया के लिए स्टीवन स्मिथ और जॉर्ज बैली ने 209 रन जोड़े यानि प्रति ओवर सात रन। ऑस्ट्रेलिया के बड़े मैदानों को देखते हुए सिंगल और डबल रन लेना और भी जरूरी हो जाता है और टीम इंडिया को इसमें सुधार करना ही होगा। इस कमजोरी को दूर करने के लिए भारतीय बल्लेबाजों को धोनी से सबक लेना चाहिए।
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धोनी के फैसले
अब तो महेन्द्र सिंह धोनी के प्रशंसक भी स्वीकार करते हैं कि कैप्टन कूल का मिडास टच अब उनका साथ छोड़ रहा है। धोनी अब अपने फैसलों को लेकर पहले जितने स्पष्ट दिखाई नहीं देते। फिर चाहे वो उनका खुद का बल्लेबाजी क्रम हो या फिर गेंदबाजी परिवर्तन का निर्णय। बांग्लादेश के खिलाफ वनडे सीरिज में हार के बाद से धोनी कहते हैं कि वे चार नंबर पर खेलना चाहते हैं, लेकिन वे खुद की इस बारे में कंफ्यूज हैं। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ वनडे सीरिज में वे कभी चार नंबर पर आए तो कभी नंबर छह पर उतरे। ऐसा ही पर्थ वनडे में भी नजर आया जब उन्होंने खुद को प्रमोट किया। साथ ही रवीन्द्र जडेजा को भी अजिंक्या रहाणे से ऊपर उतार दिया। वहीं गेंदबाजी में दो विकेट जल्दी मिलने के बाद उमेश यादव की जगह पहले रोहित शर्मा से बॉलिंग करा दी। फैसला गलत साबित हुआ क्योंकि रोहित के ओवर में 11 रन गए और मैच का पासा पलट गया। मौके की जरूरत है कि धोनी हड़बड़ी न दिखाए और पहले की तरह ही फैसलों पर डटे रहने का जज्बा दिखाएं।