भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने तत्कालीन कोच ग्रेग चैपल को लेकर अपनी किताब ‘ए सेंचुरी इज नॉट इनफ’ में नया खुलासा किया है। पूर्व क्रिकेटर ने बताया कि चैपल से टकराव बढ़ने के बाद उनके दिवंगत पिता ने क्रिकेट छोड़ने की सलाह दी थी, लेकिन उन्होंने खुद को एक और मौका देने का निर्णय लिया था। गांगुली ने लिखा, ‘मेरे पिता मुझसे पेशेवर मामलों पर यदा-कदा ही बात करते थे। लेकिन, एक शाम वह अखबार में छपी एक रिपोर्ट लेकर मेरे पास आए थे, जिसमें वेस्टइंडीज में भारत की जीत के बाद मेरे लिए भारतीय टीम का दरवाजा हमेशा के लिए बंद होने की बात कही गई थी। उनका मानना था कि जितनी बार भारतीय टीम जीतेगी, मेरे लिए टीम में शामिल होने का मौका उतना ही कम होता जाएगा। उन्होंने कहा था, ‘महाराज, तुमने बहुत कुछ हासिल किया। तुम पूरे सम्मान के साथ खेल को क्यों नहीं अलविदा कह देते हो?’ वह बहुत चिंतित और उदास थे। आखिरकार उन्होंने वह बात कही जो वह कहना नहीं चाहते थे। मेरे पिता ने मुझसे कहा था, ‘महाराज, मुझ पर विश्वास करो…मुझे तुम्हारे लिए कोई मौका दिखाई नहीं देता? कोई उम्मीद नहीं है।’ गांगुली ने लिखा कि पिता के साथ हुई बातचीत के बाद वह खुद को असहाय महसूस करने लगे थे। पूर्व क्रिकेटर ने लिखा, ‘मैंने पिता से कहा कि कोई हमेशा के लिए नहीं खेल सकता है। सर्वकालिक महानतम खिलाड़ियों मैराडोना, पीट संप्रास या सुनील गावस्कर को भी एक वक्त रुकना पड़ा था। मैं जानता हूं आज या कल मुझे भी जाना होगा, लेकिन मैं इस सोच के साथ नहीं जा सकता कि मैंने पूरा प्रयास नहीं किया।’

रात में ही लिए थे तीन फैसले: सौरव गांगुली ने अपनी किताब में लिखा कि पिता से बात होने के बाद रात में मैंने तीन निर्णय लिए थे, ‘मैं खुद को नए सिरे से प्रशिक्षित करूंगा। दूसरा, मैं रणजी ट्रॉफी के सभी मैच खेलूंगा और मैं हार नहीं मानूंगा।’ पूर्व कप्तान ने बताया कि उन्होंने एक ट्रेनर रखा और सप्ताह में छह दिन तक प्रशिक्षण लेते थे। इसका उद्देश्य खुद को शारीरिक तौर पर फिट रखने के अलावा गुस्से को दूर रखना था। गांगुली ने अपनी किताब में लिखा कि ग्रेग चैपल से टकराव के बाद उन्होंने बीसीसीआई के तत्कालीन प्रमुख शरद पवार से बात की थी। पूर्व दिग्गज बल्लेबाज ने बताया कि वह इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं कि पवार का सचिन से बात होने के बाद उन्हें पाकिस्तान दौरे के लिए टीम में चुना गया था या कोई और वजह थी।