कांग्रेस सांसद और पूर्व कैबिनेट मंत्री शशि थरूर का क्रिकेट प्रेम तो जगजाहिर है। वह क्रिकेट देखना काफी पसंद करते हैं। यही नहीं मैच के दौरान पर मैदान पर लिए गए फैसले कभी-कभी उनको परेशान भी कर देते हैं। भारतीय राजनीतिज्ञ और पूर्व राजनयिक ने खुद इसका रहस्योद्घाटन किया है। बता दें कि महेंद्र सिंह धोनी डीआरएस यानी (डिसीजन रिव्यू सिस्टम) के मास्टर माने जाते हैं। हालांकि, शुरू में धोनी और सचिन तेंदुलकर इसके हक में नहीं थे। वे इस तकनीक में कई खामियां मानते थे। कांग्रेस सांसद ने सचिन तेंदुलकर को नॉन मोटिवेशनल कप्तान बताया है।
थरूर ने स्पोर्ट्सक्रीडा को दिए इंटरव्यू में डीआरएस (DRS) को क्रिकेट का अहम हिस्सा बताया। उन्होंने कहा, ‘इससे कई गलत फैसलों को बदलने की गुंजाइश रहती है। साथ ही खेल में नया रोमांच भी आता है।’ थरूर ने बताया कि जब शुरुआत में धोनी और सचिन जैसे दिग्गजों ने डीआरएस का विरोध किया था तो वह काफी नाराज हुए थे। उन्होंने कहा, ‘मैं तकनीक का बड़ा फैन हूं। मैं शुरुआत से ही डीआरएस को सपोर्ट करता आया हूं। जब धोनी और सचिन ने इसके लिए मना किया था तो मैं काफी अपसेट हो गया था। मैं क्रिकेट देखता हूं। हर बार यही लगता है कि अंपायरों को फैसले लेने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।’
थरूर ने बताया, ‘जब बीसीसीआई ने 2016 में भारत-इंग्लैंड सीरीज के दौरान इसका इस्तेमाल करने की इजाजत दी तब मुझे राहत मिली। डीआरएस बहुत बड़ा इनोवेशन है। मैं इंटरेशनल क्रिकेट बिना डीआरएस के नहीं देखना चाहता। डीआरएस के कारण कई सारे गलत फैसलों को सही करने में मदद मिली है।। फैंस को भी ये उत्साहित करता है। ये किसी कहानी में एक अतिरिक्त रोमांच पैदा करता है। जहां तक मेरा सवाल है तो ये काफी अच्छी तकनीक है।’
सचिन की कप्तानी पर थरूर ने कहा, ‘सचिन के कप्तान बनने से पहले मुझे लगता था कि वह एक बेहतर कप्तान साबित होंगे, लेकिन उनकी कप्तानी सफल नहीं रही। दरअसल, जब वे कप्तान नहीं थे तो काफी एक्टिव थे। वे स्लिप में फील्डिंग करते थे। कप्तान को सलाह भी देते थे। उसका हौसला बढ़ाते थे। मैंने सोचा कि इस खिलाड़ी को कप्तान बनना चाहिए। हालांकि, जब वे कप्तान बने तो चीजें उनके पक्ष में नहीं गईं। उनके पास ज्यादा मजबूत भारतीय टीम नहीं थीं। सचिन खुद भी इस बात को स्वीकार करेंगे कि वह ज्यादा प्रेरणायादक और मोटिवेशनल कप्तान नहीं थे।’