बल्लेबाजों को तेज गेंदबाजी के सामने संघर्ष करते देखने का अलग मजा है। अपने-अपने दौर में तेज गेंदबाजों ने बल्लेबाजों पर राज किया है। 1930 के दशक में बाडीलाइन शृंखला में लारवुड और वोस की गेंदबाजी चर्चा में रही। 50 और 60 के दशक में वेस्ट इंडीज के वेस्ली हाल और चार्ली ग्रिफिथ की तूफानी गेंदबाजी जोड़ी का खौफ छाया। यह वही ग्रिफिथ था जिसके बाउंसर पर भारतीय कप्तान नरी कांट्रेक्टर के सिर में चोट लगी थी। फिर आया आॅस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाजों डेनिस लिली और ज्योफ थामसन का दौर। 1970 के दशक में थामसन का यह बयान सुर्खियों में रहा कि मुझे पिच पर खून गिरा हुआ देखकर मजा आता है। यह उस दौर में गेंदबाजों की मानसिकता भी दर्शाती है।
इसके बाद भी तेज गेंदबाज हमेशा छाए रहे। पहले आॅस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और वेस्ट इंडीज, फिर पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड। एंडी राबर्ट्स, माइकल होल्डिंग, मैल्कम मार्शल, कर्टले एम्ब्रोस, कोलिन क्राफ्ट, जोइल गार्नर, इमरान खान, सरफराज, शोएब अख्तर, एलन डोनाल्ड, डेल स्टेन, ग्लेन मैकग्रा, गिलेस्पी, जानसन, जिमी एंडरसन, स्टुअर्ट ब्राड, शेन बांड, ट्रेंट बोल्ट सरीखे गेंदबाजों ने सुर्खियां बटोरी। आज भारत के पास बेहतरीन तेज गेंदबाजों की फौज है जिनमें अपनी सरजमीं पर ही नहीं, विदेशी पिचों पर भी जीतने का माद्दा है। बीते वर्ष आॅस्ट्रेलिया और इंग्लैंड को उसी की धरती पर हराना अपने आप में ही उपलब्धि है। अब दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सेंचुरियन में पहले टैस्ट में मिली ऐतिहासिक सफलता से भारतीय तेज गेंदबाजों का कद बढ़ा है। सेंचुरियन तो दक्षिण अफ्रीका का मजबूत किला था। टैस्ट क्रिकेट के इतिहास में कोई भी एशियाई देश उसे इन मैदान पर नहीं हरा पाया था। पहल का गौरव भारत को मिला।
जोहानिसबर्ग में चल रहे दूसरे टैस्ट में दक्षिण अफ्रीका की पहली पारी के दसों विकेट तेज गेंदबाजों ने निकाले। शारदुल ठाकुर ने कमाल की गेंदबाजी करते हुए 61 रन पर सात विकेट झटके। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ किसी भारतीय गेंदबाज का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। पिछले आॅस्ट्रेलियाई दौरे पर मिले मौके को मोहम्मद सिराज ने बखूबी भुनाया है। दक्षिण अफ्रीका के साथ चल रही सीरिज में भी सिराज की गेंदबाजी प्रभावशाली रही है। वांडरर्स पर दूसरे टैस्ट के पहले दिन उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के कप्तान डीन एल्गर को काफी परेशान किया। 2006 में ईशांत शर्मा के कमाल के प्रदर्शन की याद तरोताजा हो गई जब उन्होंने आॅस्ट्रेलिया के बल्लेबाजी स्तंभ रिकी पोंटिंग को खूब छकाया था।
तेज गेंदबाजों के दम पर सफलता का यह दौर भारत के लिए चंद वर्षों की मेहनत का नतीजा है। यों समय-समय पर भारत ने अच्छे तेज गेंदबाज निकाले हैं। पर कभी भी ऐसा दौर नहीं आया जब स्तरीय तेज गेंदबाजों की इतनी लंबी कतार लग जाए कि आपको मशक्कत करनी पड़े कि किसे खिलाएं और किसे नहीं। भारत एक साथ चार तेज गेंदबाजों को उतारने में सक्षम है। टैस्ट टीम में जगह बनाने की प्रतिस्पर्धा इतनी है कि तीन सौ से ज्यादा विकेट लेने वाले ईशांत शर्मा को भी डग आउट में बैठना पड़ रहा है उमेश यादव भी बाहर हैं।
जसप्रीत बुमराह के आने के बाद टीम इंडिया का तेज गेंदबाजी आक्रमण काफी सशक्त हुआ है। मोहम्मद शमी की मौजूदगी से इसकी धार और पैनी हुई है। सिराज का अंदाज भी आक्रामक है। शारदुल ठाकुर भी बढ़िया गेंदबाजी से बल्लेबाजों को राहत नहीं लेने दे रहे। वैसे चार तेज गेंदबाजों को खिलाने का एक नुकसान यह है कि बल्लेबाजी गहराई कम हो जाती है। शारदुल, बुमराह और शमी ने बीते समय में उपयोगी बल्लेबाजी की है। पर कभी कभार रन बनाने से काम नहीं चलेगा। तेज गेंदबाजों के लिए बल्लेबाजी सुधार समय की मांग है। गेंदबाजी से किसी को शिकायत नहीं। पिछले साल इंग्लैंड दौरे पर चार टैस्ट मैचों में 70 में 61 विकेट तेज गेंदबाजों ने निकाले थे।