सुरेश कौशिक
फुटबॉल का गढ़ है कोलकाता। ‘मैदान’ पर ढेरों क्लबों ने प्रतिभाओं को उभारा है। मगर इसकी शान और जान रहे हैं तीन फुटबॉल क्लब। खेल की दीवानगी जितनी इस शहर में है उतनी देश के किसी और हिस्से में नहीं। मोहन बागान और ईस्ट बंगाल की प्रतिद्वंद्विता तो जगजाहिर है। तीसरी तोप टीम मोहम्मडन स्पोर्टिंग बुरे दौर से गुजर रही है। आजकल चर्चा में है ईस्ट बंगाल जिसका यह शताब्दी वर्ष है। पहली अगस्त से जश्न शुरू हो गया है और साल भर कार्यक्रम होते रहेंगे।

किसी भी फुटबॉल क्लब के लिए सौ साल पूरे करना उपलब्धि है। जब सफर और रेकॉर्ड शानदार रहा हो तो उससे जुड़ा हर शख्स अपने को गौरवान्वित महसूस करता है। टीम के इतिहास और इससे जुड़े रहे सितारा खिलाड़ियों को लेकर बहस छिड़ जाती है। कौन से खिलाड़ी महान रहे और किस दौर की टीम सर्वश्रेष्ठ थी, इसे लेकर आलोचक भी बंट जाते हैं।

जिन लोगों ने क्लब को सींचा, जिन हस्तियों ने उसे लोकप्रियता और पहचान दिलाई, उनके योगदान को याद किया जाता है। एक अगस्त को कोलकाता के नेताजी इंडोर स्टेडियम में हुए शताब्दी वर्ष के पहले समारोह में उन लोगों को सम्मानित किया गया जो संस्थापक सदस्यों की अगली पीढ़ी से थे। खिलाड़ी और कोच के रूप में नाम कमाने वाले पीके बनर्जी व्हील चेयर पर आए। मोहम्मद हबीब, श्याम थापा, सुभाष भौमिक और सुरजीत सेनगुप्ता उनके साथ थे। इनके साथ-साथ मनोरंजन भराचार्य को भी सम्मानित किया गया। मशहूर पत्रकार और प्रख्यात कमेंटेटर नोवी कपाड़िया भी सम्मानित हुए।

इस समारोह में कपिल देव और सौरव गांगुली भी आए। कपिल देव को भारत गौरव का सम्मान दिया गया। बाईचुंग भूटिया ने समारोह की शुरुआत की। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। 13 अगस्त को इस कड़ी में दूसरा समारोह होगा जिसमें ईस्ट बंगाल अपने पूर्व कप्तानों को सम्मानित करेगी।

जहां तक कोलकाता फुटबॉल का सवाल है, मोहन बागान ने तो 1911 में ही कमाल कर दिया था जब नंगे पांव खेलते हुए उसके खिलाड़ियों ने इंगलिश टीम ईस्ट यार्क्स को हराकर आइएफए शील्ड जीती थी। मोहम्मडन स्पोर्टिंग ने 1940 में देश के सबसे पुराने फुटबॉल टूर्नामेंट डूरंड कप को जीतकर इतिहास रचा था। मोहम्मडन कोलकाता का ही नहीं, देश का पहला क्लब था जिसे खिताबी सफलता का श्रेय मिला।

ईस्ट बंगाल क्लब 1920 में अस्तित्व में आया। गठन की कहानी भी दिलचस्प रही। एक खिलाड़ी को टीम में शामिल करने के मुद्दे को लेकर विवाद हो गया और जोर बागान नामक टीम में टूट हो गई। टीम के उपाध्यक्ष और चेयरमैन सुरेश चंद्रा चौधरी ने स्टार हाफ बैक शैलेश बोस को टीम में शामिल करने का अनुरोध ठुकराए जाने पर सुरेश ने रमेश चंद्रा सेन, और अरबिंदो घोष के साथ मिलकर अक अगस्त 1920 को ईस्ट बंगाल क्लब की नींव रख दी।

इसके बाद रेड एंड गोल्ड जर्सी में खेलने वाली ईस्ट बंगाल ने अपनी पहचान को बनाया। आठ फेडरेशन कप खिताब, तीन आइ लीग खिताब, तीन अंतरराष्ट्रीय खिताबों सहित छोटे-बड़े 161 टूर्नामेंट जीतकर अपना जलवा दिखाया। 1924 में द्बितीय डिविजन चैंपियन बनकर ईस्ट बंगाल ने कोलकाता फर्स्ट डिविजन लीग में कदम रखा। 1942 में कोलकाता फर्स्ट डिविजन लीग चैंपियन बनकर अपना धाक जमाई। अगले साल आइएफए शील्ड जीतकर उसने अपनी पहचान को बढ़ाया। फिर 1945 में प्रतिष्ठित कोलकाता लीग और आइएफए शील्ड की दोहरी सफलता का जश्न मनाया। 1949, 50 और 51 में आइएफए शील्ड जीतकर हैट्रिक करने वाली ईस्ट बंगाल पहली टीम बनी। 1972 में एक ही सीजन में आइएफए शील्ड, कोलकाता लीग, डूरंड कप और रोवर्स कप जीतने का कमाल किया। कोलकाता लीग की सफलता में तो टीम ने एक भी गोल नहीं खाया।

यह कहानी 1991 में फिर दोहराई गई। 1975 में ईस्ट बंगाल ने लगातार छठी बार कोलकाता लीग खिताब जीतने का रेकॉर्ड बनाया। इसी वर्ष ईस्ट बंगाल ने आइएफए शील्ड ने फाइनल में मोहन बागान को 5-0 से धोया। यह आज भी रेकॉर्ड है। देश के दूसरे हिस्सों से आए फुटबॉलरों ने भी ईस्ट बंगाल की कामयाबी में अहम भूमिका निभाई। 1980 से विदेशी खिलाड़ियों के आने का दौर शुरू हुआ। ईरानी खिलाड़ी माजिद बकसर, जमशेद नसीरी और खोंडासई ने इस टीम के खेल में विदेशी रंग दिया। इसके बाद तो चीमा ओकेरी, चिबुजोर और दूसरे विदेशी खिलाड़ियों ने ईस्ट बंगाल को ताकत दी।

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मोहम्मद हबीब, अकबर, हरजिंदर, गुरदेव, श्याम थापा, बाईचुंग भूटिया जैसे खिलाड़ी भी टीम की सफलता में नायक बने। 1973 की टीम जिसमें सुधीर करमरकर, गौतम सरकार, हबीब, सुभाष भौमिक और अकबर से युक्त टीम को सर्वकालीन श्रेष्ठ टीम में रखा जा सकता है। 1975 की टीम भी गजब की थी जिसमें श्याम थापा और सुरजीत सेनगुप्ता जैसे धुरंधर थे। सन 50 के दशक में वेंकटेश, धनराज, अप्पा राव और अहमद खान वाली टीम को भी कई आलोचक सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। क्लब की सबसे बड़ी उपलब्धि 2003 में सुभाष भौमिक की कोचिंग में एशियन क्लब चैंपियनशिप जीतना है। 2010 से 2017 तक ईस्ट बंगाल ने लगातार आठ बार कलकत्ता लीग जीतकर अपना ही कीर्तिमान बेहतर बनाया था। 1953 में देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की सिफारिश पर ईस्ट बंगाल रोमानिया में यूथ फेस्टिवल में खेली थी। कई विदेशी टीम को भी ईस्ट बंगाल ने विभिन्न टूर्नामेंट में फतह किया है।