दिल्ली के पूर्व कप्तान और गौतम गंभीर के साथी मिथुन मन्हास और जूनियर राष्ट्रीय चयन पैनल के सदस्य कृष्ण मोहन शर्मा, नॉर्थ जोन से भारतीय क्रिकेट टीम के चयनकर्ता पद की रेस में सबसे आगे हैं। अजित अगरकर की अगुआई वाली चयन पैनल में भारत के पूर्व तेज गेंदबाज सलिल अंकोला की जगह खाली होनी है। हरियाणा के पूर्व क्रिकेटर अजय रात्रा का पहले इंटरव्यू लिया जा चुका है। पंजाब के पूर्व ऑलराउंडर रीतिंदर सिंह सोढ़ी और निखिल चोपड़ा भी इस प्रमुख पद के लिए दावेदार हैं।
अंकोला जूनियर चयन सेटअप का हिस्सा बन सकते हैं। उनको राष्ट्रीय चयनकर्ता का पद छोड़ना होगा क्योंकि वरिष्ठ चयन पैनल में पश्चिम क्षेत्र से दो लोग हैं। दोनों मुंबई से ही हैं। चयनकर्ताओं के अध्यक्ष अजीत अगरकर भी मुंबई से हैं और चूंकि वे पैनल के प्रमुख हैं इसलिए अंकोला को बाहर जाना होगा। जानकारी के अनुसार चूंकि अंकोला को बीसीसीआई के अधिकारी उन्हें जूनियर चयन समिति का अध्यक्ष बनाने की योजना बना रहे हैं। कर्नाटक के पूर्व विकेटकीपर तिलक नायडू के अध्यक्ष होने के कारण जूनियर समिति में कोई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी नहीं है। अंकोला ने 1989 से 1997 के बीच एक टेस्ट और 20 एकदिवसीय मैच खेले हैं। इसलिए वह इस पद के लिए अधिक उपयुक्त हो सकते हैं।
निखिल चोपड़ा को डीडीसीए का मजबूत समर्थन
बीसीसीआई के एक सूत्र ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया, “दिल्ली से पूर्व भारतीय ऑफ स्पिनर निखिल चोपड़ा हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्हें डीडीसीए का मजबूत समर्थन प्राप्त है। दूसरे उम्मीदवार दिल्ली के पूर्व कप्तान मिथुन मन्हास हैं, जिन्हें जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन का भी समर्थन प्राप्त है। लेकिन पता चला है कि एक बहुत प्रभावशाली पूर्व पदाधिकारी चाहते थे कि पंजाब के पूर्व कप्तान कृष्ण मोहन आवेदन करें और उन्होंने उसी के अनुसार आवेदन किया। अब उन्हें काम पर रखा जाएगा या नहीं, यह अलग बात है, लेकिन उन्हें आवेदन करने के लिए कहा गया था।”
नवजोत सिंह सिद्धू, विक्रम राठौर और गुरशरण सिंह के साथ खेले कृष्ण मोहन
ऑलराउंडर मोहन ने 1987 से 1993 के बीच पंजाब के लिए 45 प्रथम श्रेणी मैच खेले थे और रणजी ट्रॉफी जीतने वाली पंजाब टीम के सदस्य थे। इसमें नवजोत सिंह सिद्धू, विक्रम राठौर और गुरशरण सिंह शामिल थे। अगर मोहन को यह पद मिल जाता है, तो वह दो साल तक पद पर बने रह सकते हैं, क्योंकि बीसीसीआई का संविधान जूनियर और सीनियर दोनों चयन समिति में रहने वाले व्यक्ति को कुल मिलाकर पांच साल पद पर बने रहने की अनुमति देता है। सूत्र ने कहा, “मन्हास इस पद के लिए इच्छुक हैं और उन्हें बोर्ड में सही लोगों का समर्थन भी प्राप्त है। लेकिन आप कृष्ण मोहन को हल्के में नहीं ले सकते।”