ब्रिसबेन के गाबा स्टेडियम में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टीम इंडिया की पहली टेस्ट जीत में चेतेश्वर पुजारा की भी अहम भूमिका रही थी। उन्होंने दूसरी पारी में ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों के अपने शरीर पर ‘वार’ भी झेले। कंगारू गेंदबाजों ने दूसरी पारी में उनके शरीर को जमकर निशाना बनाया, लेकिन वह डटे रहे। चेतेश्वर पुजारा के शरीर पर करीब एक दर्जन गेंदें लगीं, लेकिन कोई भी उनका हौसला नहीं तोड़ पाई। आखिरी और निर्णायक टेस्ट मैच में चेतेश्वर पुजारा ने पहली पारी में 94 गेंद पर 25 और दूसरी पारी में 211 गेंद पर 56 रन बनाए थे।

अपनी उस पारी को लेकर चेतेश्वर पुजारा ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि कैसे उन्होंने मैदान और मैदान से बाहर दोनों जगह ऑस्ट्रेलियाई टीम के ‘वज्रपातों’ पर विजय हासिल की। पुजारा ने कहा कि अब वह घर में ‘अंग्रेजी चुनौती’ के लिए तैयार हैं। यह पूछने पर कि क्या इतनी चोटें लगने के कारण दिमाग में कभी रिटायर्ड हर्ट होने की बात आई, पुजारा ने कहा, ‘कभी नहीं। रिटायर होना कभी कोई विकल्प ही नहीं था। मैं खुद से कहता रहा कि मैं यहां से जाने वाला नहीं हूं। हां, सबसे कठिन हिस्सा तब था जब मेरी अंगुली पर चोट लग रही थी, क्योंकि दूसरे टेस्ट के बाद, जब हम मेलबर्न में अभ्यास कर रहे थे, तब उस समय मेरी अंगुली चोटिल हो गई थी। इसलिए सिडनी में तीसरे टेस्ट के दौरान मेरी अंगुली में पहले से ही थोड़ा दर्द हो रहा था।’

पुजारा ने बताया, ‘गाबा में फिर से उसी जगह पर मुझे गेंद लगी। जब गेंद मुझे लगी तो लगा कि मेरी अंगुली टूट गई। हालांकि, हमारे फिजियो नितिन पटेल आए। उन्होंने मुझे बताया कि भले ही वह टूट गई है या जो कुछ भी है, लेकिन आप इस दर्द को अच्छी तरह झेल ले रहे हैं। अगर आपको जरूरत हो, तो मैं आपको एक दर्द निवारक (पेन किलर) दवा दूंगा। मैंने उनसे कहा कि मैं दर्द निवारक दवा नहीं लेना चाहता, और दर्द सहन करने की कोशिश करता हूं। मैं आगे बढ़ा। मैं बल्ले को ठीक से पकड़ नहीं पाया। मेरे लिए बल्ला पकड़ना मुश्किल था और चोट लगने के बाद मैं अपना स्वाभाविक खेल भी नहीं खेल पा रहा था।’

पुजारा ने एक दिन पहले ही हिंदुस्तान टाइम्स से कहा था, ‘मैं आखिरी गेंद के बारे में नहीं सोच रहा था। चाहे मैने चौका लगाया हो या फिर गेंद मेरे शरीर पर आकर लगी हो। उस पारी की सबसे अच्छी बात यही थी कि मैं अगली गेंद पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा था। मैं जानता था कि अगली गेंद पिछली गेंद की तरह नहीं होगी। गेंदों से लगी चोटें मेरे दिमाग में बिल्कुल भी नहीं थी। जब मुझे गेंद लगती तो मैं उसका इलाज करवाता और फिर से अगली गेंद पर फोकस करता। यह मेरा अनुशासन था उस पारी के दौरान।’