अभी कुछ ही महीनों पहले भारतीय हाकी टीम के मुख्य कोच की जिम्मेदारी संभालने वाले क्रेग फुलटोन भारत को एशियाई चैंपियंस ट्राफी जिताकर पहली परीक्षा में तो पास हो गए हैं। पर उनकी असल परीक्षा तो अगले माह से चीन के हांगझोउ में होने वाले एशियाई खेलों में होने वाली है। यह सही है कि इस खिताबी जीत से टीम का एशियाई खेलों के लिए मनोबल बढ़ेगा।
भारत ने यहां जिन टीमों को हराया है, वहां भी उनसे ही सामना होने वाला है, इसलिए उसे मनोवैज्ञानिक लाभ भी मिलेगा। पर बड़ी स्पर्धाओं में टीमों की सोच अक्सर बदल जाती है और वह वहां बिलकुल से अलग अंदाज में खेलती नजर आती हैं। भारतीय मुख्य कोच क्रेग फुलटोन ने भी चेन्नई में चैंपियन बनने के बाद कहा, …यह एशियाई चैंपियंस ट्राफी है और एशियाई खेल नहीं हैं, इसलिए बहुत उत्साहित होने की जरूरत नहीं है।
भारतीय टीम एशियाई चैंपियंस ट्राफी में विजेता जरूर बनी है, पर हमें यह भी याद रखना होगा कि लीग दौर में जापान ने ड्रा खेलने को मजबूर कर दिया था और फाइनल में पहले हाफ में मलेशिया टीम 3-1 की बढ़त बनाए रखी थी। इसलिए टीम को अपनी खामियों पर और काम करने की जरूरत है। यहां खिताब जीतने से रैंकिंग में एक स्थान का सुधार होने से तीसरे स्थान पर पहुंचने से टीम के भरोसे में बढ़ोतरी होना लाजिमी है।
पर सबसे महत्त्वपूर्ण हांगझोउ एशियाई खेलों में हर हाल में स्वर्ण पदक जीतने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। यहां स्वर्ण पदक जीतना इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ऐसा करने वाली टीम को 2024 के पेरिस ओलंपिक में सीधा प्रवेश मिल जाएगा। भारत यदि एशियाई खेलों की हाकी में स्वर्ण पदक नहीं जीत पाता है तो उसे क्वालिफायर दौर से गुजरना होगा। ऐसा होने पर टीमों की मुश्किल अक्सर बढ़ जाती हैं। दिक्कत एक और भी है कि क्वालिफायर का आयोजन पाकिस्तान में होना है, इसलिए उसे वहां दर्शकों का साथ भी नहीं मिलने वाला है।
भारत ने फाइनल में मलेशिया के खिलाफ जिस तरह 1-3 से पिछड़ने के बाद वापसी करके विजय प्राप्त की, उससे लगता है कि इस टीम को मानसिक तौर पर मजबूत करने के लिए जो काम किया गया, वह सफल रहा। असल में भारतीय टीम को काफी समय तक ऐसी टीम के तौर पर जाना जाता था, जो पिछड़ने पर अक्सर बिखर जाती थी।
पर पिछले कोच ग्राहम रीड के दौर में इस तरफ काम किया गया और अब पैडी अपटोन के जुड़ने से टीम इस क्षेत्र में काफी मजबूत नजर आई। पैडी ने टीम को ना सिर्फ मानसिक तौर पर मजबूत बनाया है, बल्कि टीम की फिटनेस को भी बेहतर किया है। यह मानसिक मजबूती का ही कमाल था कि टीम ने फाइनल के तीसरे क्वार्टर के आखिरी समय में संघर्ष करके चौथे क्वार्टर में मैच को अपने पक्ष में करके यह जता दिया कि वह पूरे मैच को एक ही रफ्तार से खेलने में महारत रखती है। टीम की यह खूबी आने वाले समय में टीम के प्रदर्शन को और निखार सकती है।
भारत को एशियाई खेलों में जिन टीमों से टकराना है, उन सभी को वह यहां फतह कर चुकी है, इसका टीम को जरूर फायदा मिलेगा। भारतीय कप्तान हरमनप्रीत सिंह ने इस चैंपियशिप से पहले कहा था कि हमारी टीम की यह कमजोरी है कि वह कई बार निचली रैंकिंग की टीम से खेलते समय थोड़े आराम में आ जाती है।
फाइनल में मलेशिया से खेलते समय यह कमी साफ दिखी। भारत ने लीग मैच में मलेशिया को आसानी से हरा दिया था और शायद यही वजह रही होगी कि फाइनल में मलेशिया के खिलाफ कसा खेल नहीं खेल सकी और हाफ टाइम तक 1-3 से पिछड़ गई। लेकिन बेहतर फिटनेस और मानसिक तौर पर मजबूत होने की वजह से ही वह वापसी करने में सफल हो गई।
भारत इस खिताबी जीत से विश्व रैंकिंग में इंग्लैंड को पछाड़कर तीसरी रैंकिंग पर पहुंच गया है और सभी एशियाई टीमों को फतह करने के बाद भी यह मानकर चलना होगा कि एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक आसानी से मिलने वाला नहीं है। मलेशिया ने जिस तरह भारत को फाइनल के पहले दो क्वार्टर में परेशान किया और जापान ने लीग मैच में भारत को ड्रा खेलने को मजबूर करके यह संकेत जरूर दिया है कि अपना दिन होने पर ये टीमें उलटफेर भी कर सकती हैं।
वैसे भी एशियाई खेलों में भारत को चहेते दर्शकों के बीच खेलने का लाभ भी नहीं मिलने वाला है। इससे लगता है कि भारत को थोड़ी और तैयारी करने की जरुरत है। हां, इतना जरूर है कि भारतीय टीम यदि पूरी क्षमता से खेले तो कोई भी टीम उसकी बराबरी नहीं कर सकती है।
क्रेग फुलटोन ने भारतीय टीम को पहले डिफेंस करने और फिर जीतने का प्रयास करने के तौर पर तैयार किया है। अब लगता है कि भारतीय टीम इस शैली को अपनाने में सफल हो गई है। इसके लिए उन्होंने पहले मनप्रीत सिंह को डिफेंसिव मिडफील्डर के तौर पर खिलाना शुरू किया था। लेकिन इस चैंपियनशिप में वे आक्रामक मिडफील्डर के तौर पर खेले।
वहीं विवेक सागर प्रसाद और हार्दिक सिंह को थोड़ा डिफेंसिव खिलाया गया। हालात के हिसाब से खिलाड़ियों की स्थिति भी बदलती रहती है। सही मायनों में भारत के शानदार प्रदर्शन में मिडफील्डरों की इस तिकड़ी का अहम योगदान रहा। यह सही है कि हरमनप्रीत सिंह की पेनल्टी कार्नरों को गोल में तब्दील करने की क्षमता भारत की जीतों में अहम है। इस चैंपियनशिप में भारत द्वारा जमाए 29 गोलों में से नौ गोल हरमनप्रीत सिंह ने जमाए। पर टीम को पेनल्टी कॉर्नर के मामले में निर्भरता थोड़ी कम करने की जरूरत है, क्योंकि उनके रंगत में नहीं होने पर टीम मुश्किल में नजर आने लगती है।
भारतीय कप्तान हरमनप्रीत सिंह कहते हैं कि क्रेग फुलटोन ने कोच की जिम्मेदारी संभालने के बाद कई संरचनात्मक बदलाव किए हैं। उन्होंने बहुत ही कम समय में यह बदलाव कर दिए हैं। यह सही है कि यूरोपीय टूर पर टीम कई बार इन बदलावों में पारंगत नजर आ रही थी पर इस चैंपियनशिप में इस क्षेत्र में काफी सुधार दिखा। टीम जैसे जैसे इन बदलावों में पारंगत होती जाएगी, उसके प्रदर्शन में और निखार आता चला जाएगा।