अंडर-19 एशिया कप 2023 के पहले मैच में भारत ने अफगानिस्तान को 7 विकेट से हराया। इस मैच में भारत के लिए ऑलराउंडर अर्शिन कुलकर्णी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। 3 विकेट लेने के साथ 70 रन की नाबाद पारी खेली। इस पारी के बदौलत अर्शिन ने पहले ही मैच में अपने परिवार के संघर्ष और बलिदान को सार्थक ठहराने में पहला कदम आगे बढ़ाया। हालांकि, उन्हें अभी लंबा सफर तय करना है। डॉक्टर्स की फैमली से आने वाले अर्शिन को पूरा परिवार क्रिकेटर बनाने में लग गया। दादी ने काफी साथ दिया।
कुलकर्णी परिवार में डॉक्टर्स भरे पड़े हैं, लेकिन सोलापुर के बाल रोग विशेषज्ञ (Paediatrician)अतुल चाहते थे कि उनका सबसे छोटा बेटा अर्शिन डॉक्टर न बनकर क्रिकेटर बने। वह खुद एक असफल क्रिकेटर थे, उनका सबसे बड़ा सपना अपने बेटे को क्रिकेटर बनाना था। उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “मेरे परिवार में मेरी बेटी सहित हर कोई डॉक्टर है। मैं क्रिकेट खेलता था और अर्शिन के दादा भी क्रिकेट खेलते थे।” अर्शिन के प्रदर्शन से अतुल काफी खुश हैं।
अर्शिन मोबाइल भूल सकते हैं, लेकिन बल्ला नहीं
अर्शिन का सुहाना सफर बलिदानों से भरा है। एक दिन सोलापुर में अर्शिन के कोच सलीम खान और तिलक ने अतुल को बताया कि उनका बेटा काफी प्रतिभाशाली है। उसे अपने खेल को चमकाने के लिए और अगर वह एक पेशेवर क्रिकेटर बनने के बारे में गंभीर है, तो सोलापुर से लगभग 250 किमी दूर पुणे शिफ्ट होना होगा। उस समय वह जिला टीम में के अलावा महाराष्ट्र की अंडर 14 टीम में थे। वह पढ़ाई में भी अच्छे थे, लेकिन वे खेल के प्रति अपने बेटे के जुनून को जानते थे और चाहते थे कि वह अपने सपने को पूरा करे। अपनी उम्र के लड़कों की तरह वह मोबाइल तो नहीं ले जाता था, लेकिन जहां भी जाता था, बल्ला जरूर ले जाता था।
जब अर्शिन को पुणे ले जाने का फैसला हुआ
उस रात डॉक्टरों का परिवार अर्शिन के भविष्य का फैसला करने के लिए एक साथ बैठा। उन्होंने उसे पुणे ले जाने का फैसला किया, लेकिन हमेशा के लिए नहीं। यह परिवार का सबसे बड़ा फैसला था, लेकिन इसमें भी काफी बाधाएं आती रहीं। अतुल ने कहा, ” उसका स्कूल सबसे बड़ी समस्या थी। वह सोलापुर के सेंट जोसेफ स्कूल में पढ़ रहा था। एक दिन मैं गया और प्रिंसिपल से मिला और स्कूल से अर्शिन को सप्ताह में तीन दिन की छुट्टी देने का अनुरोध किया ताकि वह अपना क्रिकेट जारी रख सके। हमने स्कूल को आश्वस्त किया कि हम उसकी पढ़ाई पूरी करने में मदद करेंगे।”
अर्शिन के साथ दादी जाती थीं पुणे
इस तरह से अर्शिन को कैडेंस अकादमी द्वारा चुने जाने के बाद परिवार ने पुणे में एक घर किराए पर लिया। अर्शिन के पिता ने बताया, “बुधवार दोपहर को वह हमारे ड्राइवर और अपनी दादी के साथ पुणे के लिए रवाना होंगे। वह अर्शिन के साथ रहती थीं और उसकी देखभाल करती थीं। रविवार के मैच के बाद वे सोलापुर वापस आ जाते थे। यह महाराष्ट्र अंडर-14 से अंडर-19 के दिनों तक जारी रहा।”
दादा ने स्विंग के बारे में समझाया
वह एक लेग स्पिनर था, जो बल्लेबाजी कर सकता था, लेकिन नेट्स में उसके कोचों को लगा कि उसकी शरीर ऐसी है कि वह मिडियम पेस गेंदबाजी कर सकता है। इसलिए अपने अंडर-16 दिनों के दौरान उन्होंने मिडियम पेस गेंदबाजी करना शुरू किया और ऑलराउंडर बन गए। उनके दादा भी एक तेज गेंदबाज थे, जिन्होंने गेंद की सीम का उपयोग करना बताकर अर्शिन को स्विंग के बारे में समझाया।
अर्शिन को मिला कड़ी मेहनत का फल
अर्शिन में समर्पण है और वह समय के पाबंद हैं। वह शायद ही कभी नेट्स पर देर से पहुंचे। कड़ी मेहनत का फल मिला। पिछले साल वह वीनू मांकड़ ट्रॉफी में महाराष्ट्र के लिए सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज थे। इस साल उन्हें वीनू मांकड़ ट्रॉफी नॉकआउट के लिए चुने जाने से पहले सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी के लिए महाराष्ट्र की सीनियर टीम में चुना गया था, जिसमें उन्होंने फाइनल में शतक लगाया था। हाल ही में, उन्होंने महाराष्ट्र प्रीमियर लीग में चमक बिखेरी, जहां उन्होंने 13 छक्कों की मदद से 100 रन बनाए।