खून के अंतिम कतरे तक हिंदू हित की रक्षा करने का दावा करने वाले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) ने विश्व जनसंख्या दिवस (11 जुलाई) पर एक वीडियो जारी किया। भाजपा नेता ने वीडियो में कहा है कि ”बढ़ती जनसंख्या का दानव भारत को विश्व गुरु बनने से रोक रहा है। दस-दस बच्चे पैदा करने वाली विकृत मानसिकता पर अंकुश लगाने की जरूरत है।” 10-10 बच्चे पैदा करना किसकी मानसिकता है, यह उन्होंने नहीं बताया।

विडंबना यह है कि वीडियो में जिस बढ़ती जनसंख्या को गिरिराज सिंह दानव बता रहे हैं, कभी खुद उसी ‘दानव’ को बढ़ाने की अपील कर चुके हैं। अक्टूबर 2016 की बात है। देवबंद क्षेत्र में हिन्दू जनसंसद चल रहा था। गिरिराज सिंह भी इस जनसंसद में शामिल हुए थे। तब उन्होंने कहा था, ”देश के आठ राज्यों में हिंदुओं की जनसंख्या निरंतर घटती जा रही है। हिन्दुओं को अपनी जनसंख्या को बढ़ाने की जरूरत है।”

कुछ यही हाल आरएसएस का भी रहा है। 2016 में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हिन्दुओं से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील की थी। आगरा में भागवत ने कहा था, ”कौन सा कानून कहता है कि हिंदुओं की आबादी नहीं बढ़ानी चाहिए? जब दूसरों की आबादी बढ़ रही है तो हिंदुओं को कौन रोक रहा है?” 

2016 में ही आरएसएस के समर्थन से नागपुर में आयोजित तीन दिवसीय धर्म संस्कृति महाकुंभ में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती ने हिंदुओं से 10-10 बच्चे पैदा करने की अपील की थी। साल 2005 में तत्कालीन संघ प्रमुख सुदर्शन ने हिन्दुओं से तीन बच्चे पैदा करने का निवेदन किया था।

यहां भी वही विरोधाभास है। एक तरफ आरएसएस हिन्दुओं से अधिक बच्चे पैदा करने की अपील करता रहा है। दूसरी तरफ जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग करता रहा है। आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य में जनसंख्या नियंत्रण नीति को आवश्यक बताते हुए कई लेख छपे हैं। खुद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत अपनी ही बात से पलटते हुए 2020 में कह चुके हैं कि संघ का अगला एजेंडा जनसंख्या नियंत्रण कानून है। मुरादाबाद में आयोजित संघ के पांच दिवसीय कार्यक्रम में भागवत ने कहा था, ”संघ का अगला एजेंडा जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर देशभर में आंदोलन करना है। हम हमेशा से दो बच्चों के समर्थन में रहे हैं।”

क्या भ्रमित है हिंदू दक्षिणपंथ? : विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन होने का दावा करने वाले आरएसएस और विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा क्या इतनी भ्रमित है कि उसे अपनी ही कही बात याद नहीं रहती? जिस संघ को अपना 70 साल पुराना एजेंडा भी याद रहता है, जो भाजपा अपनी स्थापना के वक्त के संकल्प को आज भी पूरा करने में जुटी हुई है, वो जनसंख्या के मुद्दे पर भ्रमित कैसे हो सकती है?

दरअसल हिन्दू दक्षिणपंथ बिल्कुल भी भ्रमित नहीं है। भाजपा-आरएसएस को भ्रम का छद्म इसलिए करना पड़ता है क्योंकि उनकी वैचारिक योजना भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था से मेल नहीं खाती। हिन्दुत्व शब्द के राजनीतिक इस्तेमाल के जनक और हिंदुत्ववादी विचारधारा को आकार देने वाले विनायक दामोदर सावरकर विराट हिंदू की अवधारणा पेश करते हैं। जिसके मुताबिक, मुसलमान और ईसाई अपनी पितृभूमि और पुण्य भूमि भारत से बाहर मानते हैं, इसलिए वे हिंदुत्व का हिस्सा नहीं हैं। इस विचार के तहत भारत की भूमि सिर्फ हिन्दुओं के लिए है।

इस विचारधारा के आलोक में हिन्दू दक्षिणपंथ के कथित भ्रम को देखने से पता चलता है कि वो जनसंख्या नियंत्रण कानून के जरिए मुसलमानों और ईसाइयों की जनसंख्या को तो कंट्रोल करना चाहते हैं। लेकिन हिंदुओं की आबादी बढ़ाना चाहते हैं। ताकि एक ऐसा वक्त आ सके जब भारत भूमि पर सिर्फ हिन्दू ही बच जाएं। साल 2021 में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार जब नई जनसंख्या नियंत्रण नीति के लिए विधेयक लेकर आयी थी, तब विश्व हिन्दू परिषद ने कड़ा विरोध किया था।

वीएचपी के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा था, ”हम जनसंख्या को लेकर कानून लाने के सरकार के कदम का स्वागत करते हैं। लेकिन इस कानून से हिंदू और मुस्लिमों की जनसंख्या में असमानता पैदा होगी। सरकार को इसके बारे में सोचना चाहिए, क्योंकि इससे जनसंख्या में नकारात्मक वृद्धि होगी।”

यहां यह समझना जरूरी है कि बहुसंख्यक आबादी को अल्पसंख्यक हो जाने की चिंता, नस्लीय श्रेष्ठता को स्थापित रखने की चिंता है। दुनिया में ज्यादातर जगहों पर बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यक हो जाने का डर दिखाकर ही जनसंख्या नियंत्रण का अभियान चलाया गया है। और यह संयोग नहीं है कि जहां भी नस्लीय श्रेष्ठता की चिंता से जनसंख्या नियंत्रण का अभियान चला है, वहां की राजनीतिक बयार दक्षिण की तरफ रही है। इससे भी खतरनाक बात यह है कि ऐसे अभियानों की एक चिंता जहां कथित ‘अशुद्ध’ और ‘अवांछित’ नस्ल को खत्म करने या कम करने पर रहा है, वहीं दूसरी चिंता कथित श्रेष्ठ नस्ल को बढ़ावा देना रहा है।

इतिहास में इसके उदाहरण मौजूद हैं। यूरोप और अमेरिका में जहां व्हाइट सुपरमेसी को बनाए रखने के लिए ऐसे विचारों को फैलाया गया, वहीं नाजी जर्मनी में पहले सरकारी नीति बनाकर ‘अशुद्ध’ और ‘अवांछित’ यहूदियों की जनसंख्या को रोकने का प्रयास हुआ और बाद में नरसंहार का रास्ता अपनाया गया।