अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एशिया के दौरे पर जा रहे हैं, जहां वह एक हफ्ते तक लगातार अलग-अलग बैठकों में शामिल रहेंगे। इस दौरान उनकी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से होने वाली मुलाकात पर सबकी नजरें टिकी हैं।

दोनों नेताओं के बीच सबसे अहम मुद्दा व्यापार रहेगा। एक ऐसा क्षेत्र जहां दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच तनाव एक बार फिर बढ़ गया है। ट्रंप रविवार को मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर पहुंचे, जहां दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान का शिखर सम्मेलन शुरू होगा। इसके बाद वह जापान और फिर दक्षिण कोरिया जाएंगे, जहां वाइट हाउस के अनुसार उनकी मुलाकात शी जिनपिंग से होगी।

क्या ट्रंप के लिए चीन ही सबसे अहम?

ट्रंप के एशिया दौरे का मुख्य लक्ष्य नए व्यापार समझौते करना होगा, ताकि अमेरिकी कंपनियों को नए मौके मिलें और साथ ही शुल्क से होने वाली आमदनी अमेरिकी खजाने में बनी रहे। वैश्विक व्यापार की इस दौड़ में कई खिलाड़ी हैं, लेकिन ट्रंप की सफलता या असफलता की चाबी चीन के हाथ में है। शी जिनपिंग के साथ ट्रंप की यह मुलाकात एपेक सम्मेलन के दौरान होनी है।

2019 के बाद दोनों नेताओं की यह पहली बैठक होगी। यह बातचीत ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के बचे समय के लिए अमेरिका-चीन रिश्तों की दिशा तय कर सकती है।

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ट्रंप खुद मान चुके हैं कि चीनी सामान पर लगाए गए कठोर शुल्क लंबे समय तक टिक नहीं सकते। भले ही उन्होंने यह साफ तौर पर नहीं कहा हो, लेकिन अमेरिका के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार के साथ बढ़ता आर्थिक टकराव न केवल दोनों देशों बल्कि पूरी दुनिया के लिए भारी असर डाल सकता है। जब भी चीन और अमेरिका के बीच बातचीत रुकती दिखती है, अमेरिकी शेयर बाजारों में भारी गिरावट इस हकीकत की याद दिलाती है।

अगर ट्रंप अगले हफ्ते अमेरिका लौटते समय दक्षिण कोरिया के साथ कोई समझौता पक्का कर लें और जापान से अमेरिकी उद्योग में नए निवेश की प्रतिबद्धता हासिल कर लें, तो इसे उनके लिए बड़ी सफलता माना जाएगा, लेकिन उनका सबसे बड़ा लक्ष्य यही रहेगा कि शी जिनपिंग को मनाया जाए ताकि चीन अमेरिकी कृषि उत्पादों की खरीद फिर शुरू करे, विदेशी कंपनियों पर लगाए गए नए प्रतिबंधों में ढील दे, अमेरिकी कंपनियों को चीन के बाजार में ज्यादा पहुंच दे और व्यापार युद्ध से बचा जाए।

शी जिनपिंग की लंबी रणनीति

जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग 30 अक्तूबर को दक्षिण कोरिया में ट्रंप से मिलेंगे, तो वह अपने आपको ज्यादा मजबूत वार्ताकार के रूप में पेश करना चाहेंगे। इसीलिए वह चीन के उस दबदबे का इस्तेमाल कर रहे हैं जो रेयर अर्थ यानी दुर्लभ खनिजों पर है। ऐसे खनिज जिनके बिना सेमीकंडक्टर, गाड़ियां या स्मार्टफोन तक नहीं बनाए जा सकते। यह अमेरिका की एक बड़ी कमजोरी है और चीन इसका फायदा उठा रहा है।

जैसे चीन अमेरिकी किसानों के सोयाबीन न खरीदकर ट्रंप के ग्रामीण वोट बैंक को चोट पहुंचा रहा है। शी जिनपिंग ने ट्रंप के पहले कार्यकाल से सबक सीखा है और इस बार लगता है कि चीन शुल्क से होने वाले नुकसान को झेलने को तैयार है। एक वजह यह भी है कि अब अमेरिका, जो कभी चीन के निर्यात का पांचवां हिस्सा खरीदता था, चीन के लिए पहले जितना अहम बाजार नहीं रह गया है। फिर भी शी जिनपिंग को एक ओर अमेरिका के साथ आर्थिक टकराव तो दूसरी ओर घरेलू मुश्किलों के बीच संतुलन साधना होगा।

अमेरिका शी की चीन में चुनौतियों से वाकिफ है। युवाओं में बेरोजगारी, रियल एस्टेट संकट, स्थानीय सरकार पर बढ़ता कर्ज और ऐसी आबादी जो खर्च करने को तैयार नहीं है, इनमें प्रमुख है। विश्लेषकों का मानना है कि चीन कोई समझौता तभी पेश करेगा जब ट्रंप एडवांस एआइ चिप्स के निर्यात को दोबारा शुरू करने या ताइवान को मिल रही सैन्य मदद में कटौती करने पर सहमत हों। लेकिन वहां तक पहुंचना आसान नहीं होगा।

थोड़े समय के लिए भले ही पत्ते चीन के हाथों में हों, लेकिन अमेरिका के पास कुछ रणनीतिक विकल्प हैं। अमेरिका शुल्क कम करने का प्रस्ताव दे सकता है, जो कि चीन के लिए बहुत आकर्षक हो सकता है। क्योंकि व्यापार युद्ध से चीन के निर्माण क्षेत्र को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। चीन की अर्थव्यवस्था, देश में बनने वाली वस्तुओं और उनके निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर है

– जियाओ यांग, प्रोफेसर,सिंगापुर प्रबंधन विश्वविद्यालय

अमेरिका चीन पर और व्यापारिक अंकुश लगाने की धमकी दे सकता है जिससे चीन के तकनीकी क्षेत्र के विकास की कोशिशों को बड़ा झटका लग सकता है। उदाहरण के लिए वाइट हाउस ने चीन द्वारा एनवीडिया के अत्याधुनिक चिप्स की खरीद पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया है, जिसने चीन के लिए जरुरी सेमीकंडक्टर्स को निशाना बनाया है।

– प्रोफेसर मैकडोना, सोफिया कलांत्जाकोस, न्यूयार्क विश्वविद्यालय की प्रोफेसर

मसला एयरलाइन क्षेत्र का

अमेरिका और चीन के बीच नया मसला एयरलाइन क्षेत्र को लेकर है। इसे लेकर अमेरिकी सरकार ने चीन से एक बड़ी मांग की है। अमेरिका चाहता है कि चीनी एयरलाइंस रूस के ऊपर से उड़ान न भरें, खासकर तब जब वे अमेरिका आ-जा रही हों। अमेरिका का कहना है कि इससे अमेरिकी एयरलाइंस को नुकसान हो रहा है।

भारत पर कैसे असर?

अमेरिका-चीन के बीच की यह लड़ाई भारत के लिए जटिल स्थिति पैदा करती है। सोयाबीन, रेयर अर्थ और एअरलाइन मार्ग को लेकर चल रही यह लड़ाई भारत के लिए बड़े आर्थिक अवसर तो पैदा करती है, लेकिन तकनीकी चुनौतियां भी लाती है। सकारात्मक पक्ष यह है कि अमेरिका और पश्चिमी कंपनियां चीन पर निर्भरता कम करने के लिए इलेक्ट्रानिक्स के क्षेत्र में निवेश को भारत की ओर मुड़ रही हैं।

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