इजरायल और ईरान के बीच 12 दिनों के युद्ध, जिसे ईरान के परमाणु केंद्रों पर अमेरिका के हवाई हमले ने और भड़काने का ही काम किया, उसने मध्य पूर्व में तनाव को काफी बढ़ा दिया है। रूस ने अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के उल्लंघन के लिए अमेरिका और इजरायल दोनों की निंदा की है। हालांकि, इस बयानबाजी से आगे रूस इस संघर्ष में कुछ और नहीं कर सका।

यूक्रेन के युद्ध में खुद के फंसे होने और अमेरिका के साथ संबंध सामान्य बनाने की बातचीत के साथ-साथ इजरायल के साथ नजदीकी आर्थिक रिश्तों और दोनों देशों की जनता के बीच संबंध की वजह से रूस को ईरान को दिए जाने वाले समर्थन को कूटनीतिक क्षेत्र तक ही सीमित रखना पड़ा है।

इस स्तर पर भी, ईरान और इजरायल के बीच मध्यस्थता के रूस के प्रस्ताव को अमेरिका के राष्ट्रपति डानल्ड ट्रंप ने खारिज कर दिया था। इजरायल और ईरान के संघर्ष ने रूस और ईरान की सामरिक साझेदारी की सीमाओं को उजागर कर दिया है और क्षेत्र में संतुलन बनाने की रूस की कोशिशों को भी मुश्किल में डाल दिया है।

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विशेषज्ञों के मुताबिक, मध्य पूर्व का इलाका हमेशा से ही रूस की विदेश नीति का अहम हिस्सा रहा है, जिसके पीछे रूस के ऊर्जा संबंधी हित और पश्चिमी हिंद महासागर तक पहुंच बनाने की उसकी जरूरत जैसे कारण हैं।

भौगोलिक रूप से रूस के करीब है ईरान

ये इलाका भौगोलिक रूप से रूस के करीब है, और अमेरिका के साथ बड़ी शक्तियों वाली प्रतिस्पर्धा की वजह से रूस, इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की होड़ में हमेशा शामिल रहा है। ईरान और पूर्व सोवियत संघ के रिश्ते जटिल थे, जिसमें कई बार सहयोग का दौर चला तो बीच-बीच में अविश्वास का माहौल भी रहा था। इस वजह से रूस के लिए ईरान के साथ अपने रिश्ते मजबूत बनाने में बाधाएं आती रहीं।

वैसे तो सोवियत संघ ऐसी पहली बड़ी महाशक्ति था, जिसने 1979 में ईरान के इस्लामिक गणराज्य के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित किए थे। लेकिन, जब उसने अफगानिस्तान पर हमला किया, तो ईरान ने इसे अपने प्रभाव क्षेत्र में उसके दखल के तौर पर देखा था। इस वजह से ईरान के नेतृत्व के बीच सोवियत संघ की नकारात्मक छवि बनी और सहयोग की संभावनाओं को चोट पहुंची।

इजरायल के साथ रूस के नजदीकी आर्थिक रिश्ते

यूक्रेन के युद्ध में खुद के फंसे होने और अमेरिका के साथ संबंध सामान्य बनाने की बातचीत के साथ साथ इजरायल के साथ नजदीकी आर्थिक रिश्तों और दोनों देशों की जनता के बीच संबंध की वजह से रूस को ईरान को दिए जाने वाले समर्थन को कूटनीतिक क्षेत्र तक ही सीमित रखना पड़ा है। वैसे तो रूस मोटे तौर पर अपनी निर्णय प्रक्रिया के लिए अमेरिका का मोहताज था, फिर भी उसने ईरान के सिविल न्यूक्लियर प्रोग्राम में मदद देना शुरू कर दिया।

परमाणु प्रसार को लेकर अमेरिका की चिंताओं के बावजूद, रूस ने 1995 में ईरान के साथ बुशहर में लाइट वाटर रिएक्टर वाला एक परमाणु बिजलीघर बनाने का समझौता किया। इस समझौते में ईरान के इंजीनियरों और वैज्ञानिकों को रूस के परमाणु अनुसंधान केंद्रों में प्रशिक्षण देना भी शामिल था। हालांकि, उसी साल जुलाई में अमेरिका के दबाव में अहम नीतिगत बदलाव करते हुए रूस ने ईरान को पारंपरिक हथियारों की बिक्री रोकने का फैसला भी किया था।

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