11 अगस्त से शुरू होने वाले खरमास के अशुभ महीने से पहले जद (यू) के भाजपा के साथ संबंध तोड़ने की चर्चा है। अंदाजा लगाया जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर नीतीश कुमार एक बार फिर खुद को राष्ट्रीय राजनीति पुनर्स्थापित कर रहे हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षाओं के संबंध में पूर्व सहयोगी आर सी पी सिंह ने सोमवार को कहा, नीतीश कुमार ने 2005 से 2010 के बीच बिहार के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया क्योंकि उनका फोकस राज्य पर था। लेकिन उसके बाद मन में जब तरंगे उठने लगती हैं तो…।
आर सी पी सिंह ने रविवार को जद (यू) से इस्तीफा दे दिया। जदयू ने उन्हें तीसरी बार राज्यसभा भेजने से मना कर दिया था, जिसकी वजह से उनकी संसदीय सीट चली गई। इसके अलावा उन्हें अपनी ही पार्टी के भीतर भूमि सौदों के आरोपों का सामना करना पड़ रहा था। जिस समय उन्होंने यह बात कही, वह नीतीश कुमार के सबसे करीबी थे।
कांग्रेस और राजद के साथ महागठबंधन के प्रयोग के बाद नीतीश ने 2017 में एनडीए में वापस आने का फैसला किया, इससे पहले उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात की थी। लेकिन उससे कुछ नहीं निकला। तब तक नीतीश के यूपीए के राष्ट्रीय संयोजक के रूप में उभरने की उम्मीदें और 2019 के लिए प्रधानमंत्री पद दावेदारी दोनों खत्म होने लगी थी।
ममता बनर्जी चुनौती लेकिन…
नीतीश के भाजपा से अलग होने से न केवल हिंदी भाषी क्षेत्र की राजनीति बदल जाएगी, बल्कि उसका राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव होगा। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और राजद से सिर्फ एक सीट पीछे थी। जबकि जद (यू) सीटों के मामलें बहुत पीछे थी। नीतीश कुमार के साथ होने से भाजपा को हमेशा फायदा ही हुआ है।
नीतीश का विकास कार्ड, राजद पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को कम करने में मदद कर सकता है। पिछले विधानसभा चुनावों में यह स्पष्ट हो गया था कि राजद की पकड़ कम नहीं हुई है, वह लालू प्रसाद की अनुपस्थिति के बावजूद सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी।
महागठबंधन के लिए नीतीश का महत्व लोकसभा के आंकड़ों में अधिक है। कांग्रेस और राजद के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो बिहार के बाहर अपील करे।
जद (यू) की इच्छाधारी सोच यह है कि अगर ऐसा गठबंधन 2024 में बिहार में अच्छा प्रदर्शन करता है, तो नीतीश विपक्ष के केंद्र के रूप में उभर सकते हैं, जो विश्वसनीय चेहरों के लिए बेताब है। उनके रास्ते में एकमात्र बाधा पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी हो सकती हैं, जिनकी अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं हैं, लेकिन वामपंथियों और राज्य के कांग्रेस नेताओं के लिए वह अस्वीकार्य होंगी।
जद (यू) के एक नेता ने इसे संक्षेप में कहा: ”नीतीश कुमार केंद्रीय मंत्री रहे हैं और अब सबसे लंबे समय तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं। और क्या हासिल करना है- डिप्टी पीएम या पीएम। अगर आई के गुजराल और एचडी देवगौड़ा पीएम बन सकते हैं, तो नीतीश कुमार क्यों नहीं?”