पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आगामी शीतकालीन सत्र के लिए निर्धारित चंडीगढ़ से संबंधित एक विवादास्पद विधेयक को स्थगित कर दिया, तो राष्ट्रीय राजनीतिक हलकों में कई लोगों ने पूछा कि केंद्र की भाजपा नीत राजग सरकार ने इसे संसदीय बुलेटिन में सूचीबद्ध क्यों किया। इस विधेयक को वापस लेने के बाद तीव्र राजनीतिक प्रतिक्रिया हुई, जिसमें अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली विपक्षी आप, कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल ने विधेयक की आलोचना करते हुए कहा कि यह केंद्र का चंडीगढ़ के प्रशासनिक ढांचे को बदलने और चंडीगढ़ पर पंजाब के राजधानी के रूप में दावे को कमजोर करने का प्रयास है। इससे कुछ दिन पहले एक विधेयक पर विवाद के बाद केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने आठ नवंबर को एक समान रूप से विवादास्पद अधिसूचना को वापस ले लिया, जिसमें पंजाब विवि के प्रशासनिक ढांचे को बदलने की बात कही गई थी। यह कोई पहला उदाहरण नहीं है, जब केंद्र में 2014 से सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने कानून या विधेयक वापस लिए हों या इन्हें संशोधित किया हो। तीन कृषि कानूनों से लेकर डेटा संरक्षण विधेयक तक कई फैसलों को रद्द करने या संशोधित करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। आगे भी ऐसा नहीं होगा, ये नहीं कहा जा सकता। सावधान, आगे मोड़ (यू-टर्न) है…

विलंबित प्रवेश

केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने 20 अगस्त को संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को पत्र लिखकर तीन दिन के भीतर केंद्रीय मंत्रालयों में मध्य-स्तरीय पदों पर विलंबित प्रवेश (लेटरल एंट्री) के लिए आवेदन आमंत्रित करने वाले विज्ञापन को वापस लेने का निर्देश दिया था। यह विज्ञापन 24 मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के 45 पदों को अनुबंध के आधार पर भरने के लिए था। ये पद 17 सितंबर तक भरे जाने थे।

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विपक्ष ने सरकार के विलंबित प्रवेश कदम को कोटा-विरोधी करार देते हुए इसकी कड़ी आलोचना की थी, जिसमें कांग्रेस सांसद और विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सबसे आगे बढ़कर विरोध जताया। भाजपा के राजग सहयोगी, जद(एकी) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने भी इस कदम का विरोध किया था। विरोध के बाद सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा।

भूमि अधिग्रहण (संशोधन) विधेयक

भाजपा के सत्ता में आने के एक साल बाद, साल 2015 में, भूमि अधिग्रहण कानून पर पुनर्विचार की मांग स्वीकार कर ली। लेकिन विरोध के बाद उसने भूमि अधिग्रहण (संशोधन) विधेयक, 2015 में सामाजिक प्रभाव आकलन और सहमति संबंधी प्रावधानों सहित छह विवादास्पद संशोधनों को वापस ले लिया।

तीन कृषि कानून

कृषि क्षेत्र व कृषि उत्पाद विपणन में सुधार के नाम पर वर्ष 2020 में लाए गए तीन कृषि कानूनों, जिनके विरोध में किसानों ने एक साल से ज्यादा समय तक दिल्ली की घेराबंदी की थी, को वर्ष 2021 में वापस ले लिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर, 2021 को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020, आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 और कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020 को वापस लेने की घोषणा की। भाजपा के सबसे पुराने सहयोगियों में से एक और राजग के संस्थापक सदस्य शिरोमणि अकाली दल ने कृषि कानूनों के मुद्दे पर गठबंधन छोड़ दिया। किसानों ने इन कानूनों का विरोध करते हुए कहा था कि ये न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था को समाप्त कर देंगे और उन्हें बड़े निगमों की दया पर छोड़ देंगे।

डेटा संरक्षण विधेयक

केंद्र ने 2022 में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (पीडीपी) विधेयक वापस ले लिया, जिसे पहली बार 2019 में प्रस्तावित किया गया था। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि केंद्र ने यह निर्णय इसलिए लिया क्योंकि विधेयक की संसदीय पैनल की समीक्षा में 81 संशोधनों का सुझाव दिया गया था, जिससे एक नए व्यापक कानूनी ढांचे की आवश्यकता हुई। फिर वर्ष 2023 में, केंद्र डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (डीपीडीपी) विधेयक लेकर आया, जिसे नौ अगस्त को संसद ने मंजूरी दे दी।

सूचकांकीकरण लाभ बहाल

सरकार को ‘रियल एस्टेट’ पर सूचकांकीकरण (इंडेक्सेशन) लाभ हटाने वाले बजट प्रस्ताव पर फिर से विचार करना पड़ा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई को पेश बजट में रियल एस्टेट से इंडेक्सेशन लाभ वापस लेने और दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (एलटीसीजी) कर को 20 फीसद से घटाकर 12.5 फीसद करने की घोषणा की। यह प्रस्ताव घर खरीदारों के साथ-साथ रियल एस्टेट क्षेत्र को भी रास नहीं आया और उन्होंने इस पर पुनर्विचार की मांग की। छह अगस्त को, केंद्र ने घर के मालिकों को 23 जुलाई, 2024 से पहले खरीदी गई संपत्तियों के लिए इंडेक्सेशन लाभ के साथ 20 फीसद एलटीसीजी कर या इंडेक्सेशन के बिना 12.5 फीसद की दर के बीच चयन करने की अनुमति दी। हालांकि, 23 जुलाई या उसके बाद संपत्ति खरीदने वाले मालिकों को नई कर व्यवस्था का पालन करना अनिवार्य रखा गया।

लैपटाप, कंप्यूटर आयात पर प्रतिबंध

2023 में लगभग इसी समय, केंद्र सरकार ने लैपटाप और पर्सनल कंप्यूटर के आयात को प्रतिबंधित करने वाली अपनी नीति को रद्द कर दिया। इस नीति के तहत, एप्पल, डेल और एचपी जैसी कंपनियों को लैपटाप, टैबलेट, कंप्यूटर की शिपिंग के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य था। संभावित सुरक्षा मुद्दों को दूर करने और संवेदनशील डेटा की सुरक्षा के उद्देश्य से किए गए इस कदम से विदेशी निर्माताओं की बिक्री में मंदी की आशंकाएं पैदा हो गईं। नए मानदंडों को वापस लेने का निर्णय विश्व व्यापार संगठन की बाजार पहुंच समिति की बैठक में अमेरिका, ताइवान और दक्षिण कोरिया द्वारा भारत द्वारा आयात पर प्रतिबंध लगाने के कदम पर चिंता जताए जाने के बाद लिया गया।

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चंडीगढ़ व पंजाब विश्वविद्यालय का यह है मामला

चंडीगढ़ में राष्ट्रपति को शक्ति देने वाले प्रस्तावित विधेयक में एक आम डर यह था कि सरकार विधायी परिवर्तनों के माध्यम से चंडीगढ़ को चलाने के लिए उपराज्यपाल की नियुक्ति का रास्ता खोल देगी और 41 साल पुरानी व्यवस्था को समाप्त कर देगी जिसके तहत पंजाब के राज्यपाल चंडीगढ़ के प्रशासक के रूप में कार्य करते हैं।

यहां तक कि पंजाब भाजपा भी इस कदम को लेकर चिंतित थी और उसने दिल्ली में अपने नेताओं को सलाह दी कि वे पंजाब की संवेदनशीलता को ध्यान में रखें। चंडीगढ़ एक ऐसी राजधानी है, जिसे वह पड़ोसी हरियाणा के साथ साझा करता है, लेकिन उसे अपनी राजधानी मानता है। जब गृह मंत्रालय ने दो दिन पहले संसद के शुक्रवार के बुलेटिन में इस विधेयक को सूचीबद्ध करने के बाद रविवार को इसे वापस ले लिया, तो राजधानी के सत्ता के गलियारों में यह सवाल पूछा जा रहा था कि इस विधेयक को सूचीबद्ध करने का सुझाव किसने दिया और क्यों?

यह प्रश्न तब और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया जब गृह मंत्रालय ने विधेयक को स्थगित करने की घोषणा करते हुए एक बयान में कहा कि यह अंतिम नहीं है तथा अभी भी विचाराधीन है। वापस ली गई शिक्षा मंत्रालय की अधिसूचना की पृष्ठभूमि भी एक रहस्य बनी हुई है। यह स्पष्ट है कि पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़, जिसके कुलाधिपति उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन हैं, के संबंध में अधिसूचना नियमित रूप से जारी कर दी गई, तथा इसके राजनीतिक परिणामों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

घटनाओं का ठीक यही क्रम संविधान संशोधन विधेयक को सूचीबद्ध करने और अंतत: वापस लेने में भी देखने को मिला, जिसमें चंडीगढ़ को संविधान के अनुच्छेद 240 के तहत उल्लिखित अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दादरा नगर हवेली, दमन दीव के साथ जोड़ने की मांग की गई थी। यह विधेयक उन दस नए विधेयकों की सूची में शामिल है, जिन्हें सरकार को संसद के शीतकालीन सत्र में पारित कराना है। यह तब हुआ, जब गृह मंत्रालय की स्वीकारोक्ति के अनुसार यह विधेयक अंतिम रूप से पारित नहीं हुआ है।