भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में बहुत धार्मिक नहीं थीं। 1966 में उन्होंने पीएम पद की शपथ संविधान को साक्षी मानकर ली थी। जबकि आम तौर पर नेता पद और गोपनीयता की शपथ ईश्वर के नाम पर लेते हैं।

इंदिरा गांधी के पिता नेहरू अज्ञेयवादी थे; उनकी मां कमला नेहरू एक अत्यंत धार्मिक महिला थीं। इंदिरा अपने जीवन में विभिन्न समयों पर इन दोनों से प्रभावित रहीं। द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने अपनी नई किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में बताया है कि समय के साथ इंदिरा गांधी कैसे धार्मिक और एक वक्त पर अंधविश्वासी होती चली गईं।  

इंदिरा गांधी का ‘हिंदूकरण’  

वर्ष 1964 में नेहरू की मृत्यु हुई, तो उन्होंने उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से किया गया था। जबकि नेहरू ने अपनी वसीयत में धार्मिक अंत्येष्टि न करने का स्पष्ट निर्देश दिया था। लेकिन इंदिरा ने नेहरू ने वसीयत के विपरीत जाकर फैसला लिया।

वह जानती थी कि वह अपने पिता की इच्छाओं की अवहेलना कर रही है। लेकिन राजनेताओं और धार्मिक नेताओं ने उन्हें आश्वस्त किया कि भारत के लोग नेहरू के लिए गैर-धार्मिक अंतिम संस्कार को स्वीकार नहीं करेंगे।

संजय के लिए ज्योतिषी ने दी थी चेतावनी

नीरजा चौधरी ने अपनी किताब में अनिल बाली (मोहन मीकिन समूह के कपिल मोहन के भतीजे) के एक बयान को उद्धत किया है, “मेरी समझ यह थी कि इंदिरा गांधी ने वास्तव में अपने बेटे संजय गांधी के लिए इस धर्मकर्म की ओर रुख किया था। ये तब की बात है, जब वह आपातकाल के बाद सत्ता से बाहर थीं। एक ज्योतिषी ने उन्हें चेतावनी दी थी कि संजय की कुंडली में ‘जीवन रेखा कम हो गई है।’ इस चेतावनी ने 1977 के बाद इंदिरा गांधी के लगातार मंदिर जाने में बड़ा योगदान दिया। वह संजय की सुरक्षा को लेकर अत्यधिक धार्मिक होने लगीं।

ज्योतिषी के कहने पर बदल दिया पार्टी का चुनाव चिन्ह!

किताब में दावा है कि इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान भी ज्योतिषियों से परामर्श लिया था। लेकिन आपातकाल के बाद 1977 में सत्ता से बाहर होने के बाद वह जुनूनी भाव से छोटे-बड़े मंदिरों का दौरा करने लगीं।

तब कई लोगों को ऐला लगा था कि इंदिरा ने बाबा देवरहा की वजह से अपनी पार्टी का चुनाव चिन्ह गाय और बछड़े से बदलकर हाथ कर लिया है। वह एक सिद्ध योगी थे जो पूर्वी यूपी में सरयू नदी के तट पर 12 फुट ऊंचे लकड़ी के मंच पर रहते थे; वह केवल नदी में डुबकी लगाने के लिए अपने आसन से नीचे उतरते था। जब इंदिरा 1978 में उनसे मिलने गईं, तो बाबा विशेष रूप से उनसे मिलने आए। उन्होंने अपने दोनों हाथ उठाकर इंदिरा को आशीर्वाद दिया।

आनंदमयी मां ने उन्हें एक दुर्लभ एकमुखी रुद्राक्ष दिया था। उनके पास 108 भूरे मोतियों का एक हार था, जिसे वह गंभीर परिस्थितियों में अपनी रक्षा के लिए एक प्रकार के ताबीज के रूप में पहनती थीं। एक और आध्यात्मिक हस्ती जिसके पास वह पहुंची, वह थे जिद्दू कृष्णमूर्ति। उनके समय में रजनीश भी बहुत चर्चित थे। दिल्ली का छत्तरपुर मंदिर इंदिरा के कार्यकाल के दौरान ही बनाया गया था। धीरेंद्र ब्रह्मचारी को उनके दरबार में संरक्षण मिला और उन्होंने उन्हें योग सिखाया।

इंदिरा के घर पर एक छोटा सा पूजा कक्ष था। वह हर दिन 108 फूलों चढ़ाए जाते थे। जब वह जनवरी 1980 के चुनावों में जीतीं और एक बार फिर 1, सफदरजंग रोड स्थित अपने पुराने घर लौटीं, तो उन्होंने उस स्थान को शुद्ध करने के लिए भारी पूजा-पाठ कराया था।

सूर्य ग्रहण देख गर्भवती मेनका को कमरे में जाने को कहा था

साल 1980 में 16 फरवरी को सूर्य ग्रहण लगा था। इंदिरा ने गर्भवती मेनका को अपने कमरे में जाने के लिए कहा। ग्रहण को गर्भस्थ शिशु के लिए अशुभ माना जाता था। नीरजा चौधरी लिखती हैं, इंदिरा की दोस्त पुपुल जयकर उन्हें इस तरह अंधविश्वासी होता देख परेशान थी।

सत्यपाल मलिक बताते हैं कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इंदिरा गांधी ने अपने घर पर एक महीने के लिए महामृत्युंजय पाठ कराया था। अरुण नेहरू ने मुझे व्यक्तिगत रूप से यह बताया था। उन्हें डर था कि उनकी हत्या हो सकती है।

करण सिंह पुष्टि करते हैं कि ‘श्रीमती गांधी बहुत धार्मिक थीं। वह अलग-अलग दिनों में (धार्मिक कारणों से) अलग-अलग रंग की साड़ियां पहनती थीं।’