क्‍या ऐसा हो सकता है क‍ि सुप्रीम कोर्ट सरकार के प्रभाव में हो, जैसा क‍ि सुप्रीम कोर्ट बार एसोस‍िएशन के पूर्व अध्‍यक्ष दुष्‍यंत दवे ने आरोप लगाया है? जब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्‍ट‍िस मदन लोकुर के सामने जनसत्‍ता.कॉम ने यह सवाल रखा तो उन्‍होंने कहा- थोड़ा बहुत लगता है। उन्‍होंने ऐसा लगने का आधार बताते हुए कहा क‍ि दो-तीन केस ऐसे हैं जिनमें सुनवाई नहीं हो रही। क्‍यों नहींं हो रही, ये इंट्रोस्‍पेक्‍शन की बात है। इलेक्टोरल बॉन्ड का मामला ऐसा ही है। जब सुनवाई होगी तो पता नहीं क्या फैसला होगा, लेकिन लोग कहेंगे क‍ि अरे सुनवाई नहीं हो रही, अगर सुप्रीम कोर्ट इलेक्टोरेल बॉन्ड मामले में सुनवाई कर इसे रद कर देता तो त्र‍िपुरा, नागालैंड और मेघालय के चुनाव नतीजे कुछ और ही हो सकते थे। ये चीजें सोचनी चाह‍िए।

जस्‍ट‍िस लोकुर का कहना था कि अहम मुद्दे सुनवाई के ल‍िए प्राथम‍िकता सूची में पीछे जा रहे हैं। उन्‍होंने कहा क‍ि आज किस तरह के केस लिए जा रहे हैं? सवाल है कि किस तरह के केस सुने जाएं? लोगों को UAPA में बेवजह जेल में डाला जा रहा है। इसमें (इनकी सुनवाई में) देरी क्यों हुई? स्टेन स्वामी की जेल में ही मौत हो गई। उनको बेल क्यों नहीं मिली? ये चीजें सोचनी चाह‍िए।

जस्‍ट‍िस लोकुर ने एक सवाल के जवाब में यह भी माना क‍ि मामलों की प्राथम‍िकता क‍िसी और सोच के तहत तय की जा रही है। उन्‍होंने इस बात पर जोर द‍िया क‍ि यह तय करना जरूरी है क‍ि क‍िस तरह के केस जल्‍दी सुने जाएं।

इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड (Electoral Bond) का मामला 2017 में ही पहुंचा है कोर्ट

इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सरकार की स्कीम को पहली बार 2017 में चुनौती दी गई थी। लेकिन अभी तक इस मामले में कोई खास प्रगति नहीं है। तब से पांच सीजेआई रिटायर हो गए। दीपक मिश्रा, रंजन गगोई, एसए बोबड़े, एनवी रमना और यूयू लल‍ित के बाद अब डीवाय चंद्रचूड़ सीजेआई की कुर्सी पर हैं। जस्‍ट‍िस रमना के कार्यकाल में तो मामला एक बार सूचीबद्ध तक नहीं हुआ। जस्‍ट‍िस चंद्रचूड़ ने अगली तारीख मार्च के तीसरे हफ्ते की दी है।

क्‍या है इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड

Representation of Peoples Act 1951(RPA) की धारा 29(C) में बललाव कर 2017 में ये प्रावधान किया गया था कि कोई डोनर जो राजनीतिक दल को चंदा देना चाहता है वो बैंकों से इलेक्टोरेल बॉन्ड खरीद सकेगा। पेमेंट का मोड इलेक्ट्रानिक होगा। उसे अपना जरूरी डेटा (KYC के तहत) भी बताना होगा। हालांकि राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग को डोनर के बारे में कोई जानकारी देने की जरूरत नहीं होती।

डोनर 1 हजार से 1 करोड़ रुपये तक की किसी भी कीमत के बॉन्ड खरीद सकता है। ये खरीद की तारीख से 15 दिनों तक वैध होंगे। बॉन्ड के ऊपर खरीदने वाले का नाम नहीं होता है। राजनीतिक दल इन्हें कैश करा सकते हैं। ये उस राजनीतिक दल की आमदनी में शुमार होगा। Income Tax Act, 196 के सेक्शन 13A के तहत राजनीतिक दल को टैक्स में रिबेट भी मिलेगी।

सुप्रीम कोर्ट के र‍िटायर्ड जस्‍ट‍िस मदन लोकुर के इंटरव्‍यू का पूरा वीड‍ियो (Full Video of Madan Lokur Interview)

पहली बार 2017 में ही एडीआर की ओर से इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की गई। बाद में माकपा, एनजीओ कॉमन कॉज और कुछ अन्‍य की ओर से भी याच‍िकाएं डाली गईं। इनकी दलील थी क‍ि इस व्‍यवस्‍था पर कोई प्रशासन‍िक न‍ियंत्रण नहीं है और इससे राजनीत‍िक दलों (खास कर सत्‍ताधारी) द्वारा आम जनता के बजाय कारोबार‍ियों के ह‍ितों को तरजीह म‍िलने की आशंका बढ़ेगी।019 में ये केस फिर से जिंदा हो गया। उस समय तक ज्यादातर इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जा चुके थे। 12 अप्रैल 2019 में मामले की सुनवाई की गई। तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने कहा कि 30 मई तक डोनर्स का ब्योरा सीलबंद लिफाफे में कोर्ट के पास जमा कराया जाए।

चुनाव आयोग भी स्कीम को इस ल‍िहाज से ठीक नहीं मानता क‍ि इसमें चंदा देने वाला कौन है, उसका पता ही नहीं चलता है। हालांकि केंद्र का कहना है कि इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड से राजनीत‍िक दलों की फंड‍िंंग से जुड़े मामलों में और पारदर्श‍िता आएगी।

आज ज्‍यादा तनाव है, रव‍िशंकर प्रसाद के समय चाय पीते-पीते हो गया था फैसला

मदन लोकुर ने केंद्र और सुप्रीम कोर्ट के संबंधों पर भी बात की और कहा क‍ि आजकल ज्‍यादा तनाव है, पहले ऐसा नहीं था। उन्‍होंने रव‍िशंकर प्रसाद के कानून मंत्री रहने के दौरान का एक वाकया भी याद क‍िया और बताया क‍ि तब कैसे आसानी से फैसले होते थे, पर आज संवादहीनता है।