सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन बी. लोकुर ने कहा है कि आज की तारीख में कुछ-कुछ ऐसा लगता है कि न्यायपालिका (मुख्य रूप से सुप्रीम कोर्ट) केंद्र सरकार के प्रभाव में है। लोकुर ने ऐसा मानने का आधार भी बताया। साथ ही, उन्होंने भाजपा से कनेक्शन रखने वालींं विक्टोरिया गौरी को जज बनाने के मामले में भी एक गड़बड़ किए जाने का संकेत दिया। उन्होंने कहा कि कैंडिडेट (गौरी) ने हेट स्पीच दी थी और कॉलेजियम को यह बात सिफारिश करने के बाद पता चली। इससे ऐसा लगता है कि खुफिया रिपोर्ट में यह बात छुपाई गई। जस्टिस (रि.) लोकुर ने उन्होंने जनसत्ता.कॉम से इंटरव्यू में कॉलेजियम, सुप्रीम कोर्ट-केंद्र तकरार सहित और कई मुद्दों पर विस्तार से बात की (नीचे इंटरव्यू का पूरा वीडियो देख सकते हैं)।
केंद्र सरकार और न्यायपालिका (सुप्रीम कोर्ट) के बीच तकरार हाल के दिनों में काफी चर्चा में रही। यह मुख्य रूप से जजों की नियुक्ति को लेकर था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस (रि.) मदन बी. लोकुर ने टकराव की एक बड़ी वजह सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच पर्याप्त बातचीत और तालमेल की कमी को भी बताया है। उन्होंने केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के संबंधों पर भी बात की और कहा कि पिछले कुछ सालों में यह बदल गया है। पहले यह संबंध सामान्य हुआ करता था। अब वैसा नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट कुछ हद तक केंद्र सरकार के दबाव में लगता है। कुछ मामलों की सुनवाई में देरी से भी यह बात समझी जा सकती है।
रविशंकर प्रसाद से जुड़ा वाकया याद किया
जस्टिस लोकुर 2012 में सुप्रीम कोर्ट में जज बने थे और 2018 में 30 दिसंबर को रिटायर हुए। उन्होंने एक वाकया याद करते हुए बताया कि रविशंकर प्रसाद कानून मंत्री थे। तब कुछ मुद्दोंं पर बातचीत के लिए वह तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के बुलावे पर बेझिझक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। सीजेआई के चैंबर में चाय परोसी गई और बातचीत शुरू हुई। चाय की प्याली खाली होने से पहले मुद्दे पर निर्णय हो चुका था।
जस्टिस लोकुर ने कहा कि रविशंकर प्रसाद खुद वकील हैं और मंत्री बनने से पहले अक्सर सुप्रीम कोर्ट जाते ही रहते थे। सो, मंत्री बनने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट जाने और संवाद करने में उन्हें कोई झिझक नहीं थी। लेकिन, आज मंत्री बाहर बयानबाजी करते हैं, न्यायपालिका से सीधा संवाद न के बराबर है।
कॉलेजियम सिस्टम पर क्या बोले?
जजों की नियुक्ति के लिए लागू कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System) में पारदर्शिता के अभाव का केंद्र सरकार ने जो आरोप लगाया है, उससे जुड़े सवाल के जवाब में भी जस्टिस लोकुर ने स्पष्ट संवाद की कमी का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा- सरकार को कैसी पारदर्शिता चाहिए, इस बारे में वह स्पष्ट बोलती ही नहीं है। जस्टिस लोकुर ने कहा- इस मामले में पारदर्शिता का अभाव तो सरकार की ओर से है। वह बिना कुछ बोले-बताए जजों की नियुक्ति से संबंधित कॉलेजियम की सिफारिशों वाली फाइल दबाए बैठी रहती है।
मदन लोकुर के साथ इंटरव्यू का पूरा वीडियो देखें (Full Interview with Justice (R) Madan Lokur, Watch Video)
जजों द्वारा रिटायर होने के बाद सरकार के पद स्वीकार किए जाने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि इसके लिए एक वक्त जरूर तय होना चाहिए और उस वक्त के बाद ही पद लिया जाए तो अच्छा है। क्या सुप्रीम कोर्ट को इसका संज्ञान लेते हुए यह वक्त तय करना चाहिए? इसके जवाब में जस्टिस लोकुर ने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट को नहीं, सरकार को करना चाहिए। बता दें कि अब्दुल एस. नजीर को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के डेढ़ महीने के भीतर ही आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाए जाने के बाद इस मुद्दे पर काफी चर्चा हुई थी।