बाल गंगाधर तिलक भारतीय स्वाधीनता संग्राम के नायक हैं। उन्हें महात्मा गांधी के कद का नेता माना जाता है और यह बात खुद गांधी भी स्वीकार करते हैं। 1881 में एक पत्रकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले तिलक 1908 से लेकर 1914 तक राजद्रोह के मामले में कैद रहे। तिलक अंग्रेजी हुकूमत और उसके अत्याचार के खिलाफ तो थे, लेकिन भारतीय समाज के वर्ण व्यवस्था और पितृसत्ता आदि के समर्थक थे। सामाजिक मुद्दों पर रूढ़िवादी थे।
विधवा स्त्रियों की शिक्षा के खिलाफ तिलक
विधवा स्त्रियों की शिक्षा के लिए नारीवादी पंडिता रमाबाई शारदा सदन चलाती थी। तिलक इसके खिलाफ थे। उन्होंने अपने अखबार ‘केसरी’ में शारदा सदन के खिलाफ बकायदा अभियान चलाया था। दरअसल तिलक स्त्री शिक्षा हिन्दू सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप चाहते थे। उनका मानना था कि स्त्री शिक्षा, स्त्री के सामाजिक स्तर को बदलने के लिए नहीं बल्कि पारम्परिक वैवाहिक तथा घरेलू भूमिकाओं में सहायता के लिए होनी चाहिए। उनका इस बात पर बहुत ज़ोर था कि महिलाओं को सिर्फ देसी भाषाओं, नैतिक विज्ञान और सिलाई-कढ़ाई की शिक्षा दी जानी चाहिए।
अंग्रेजी शिक्षा से महिलाओं के स्त्रीत्व को खतरा बताते हुए तिलक अपनी अंग्रेजी पत्रिका The Mahratta में 28 September 1884 को लिखते हैं, ”अंग्रेजी शिक्षा महिलाओं को स्त्रीत्व से वंचित करती है, इसे हासिल करने के बाद वे एक सुखी सांसारिक जीवन नहीं जी सकतीं”
लड़कियों की स्कूली शिक्षा के खिलाफ तिलक
महाराष्ट्र के सुधारवादी नेता महादेव गोविंद रानाडे लड़कियों के स्कूली शिक्षा के प्रबल समर्थक थे। उनका यह स्पष्ट मानना था कि महिलाओं के सशक्तिकरण के बिना राष्ट्र का संपूर्ण निर्माण नहीं हो सकता। इसलिए उन्होंने पुणे स्थित लड़कियों के स्कूल में ऐसा पाठ्यक्रम लागू किया जो उनके लिए उच्च शिक्षा के दरवाजे खोल सके।
तिलक को इस तरह की शिक्षा व्यवस्था से आपत्ति थी। वह बाल विवाह के समर्थक तिलक मानते थे कि लड़कियों का कार्यशाला उनका ससुराल होता। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वह लड़कियों को सुबह 11 बजे से शाम पांच बजे तक पढ़ाये जाने के भी खिलाफ थे। वह चाहते थे कि लड़कियों को सुबह या शाम सिर्फ तीन घंटे पढ़ाया जाना चाहिए ताकि उन्हें घर का काम करने और सीखने का वक़्त मिले।