सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जजों को ऐसे किसी मामले पर इंटरव्यू देने का अधिकार नहीं है, जो उनके सामने लंबित हैं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय (Justice Abhijit Gangopadhyay) के एक इंटरव्यू का संज्ञान लेते हुए यह टिप्पणी। जस्टिस गंगोपाध्याय ने एबीपी आनंदा को दिये एक इंटरव्यू में तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी पर तीखी टिप्पणी की थी।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की बेंच ने मामले पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से 4 दिनों में जवाब मांगा है और पूछा है कि क्या जस्टिस गंगोपाध्याय ने इंटरव्यू दिया था? आपको बता दें कि जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने ही पश्चिम बंगाल के कथित शिक्षक भर्ती घोटाले में सीबीआई जांच का आदेश दिया था, जिसके बाद टीएमसी के कई दिग्गज नेताओं की गिरफ्तारी हुई थी।
कौन हैं जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय?
यह पहला मौका नहीं है जब जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय (Justice Abhijit Gangopadhyay) सुर्खियों में हैं। पहले भी कई मौकों पर चर्चा में रहे हैं। जस्टिस गंगोपाध्याय की कलकत्ता हाईकोर्ट में 2 मई 2018 को बतौर जज नियुक्ति हुई थी और 30 जुलाई 2020 को परमानेंट जज नियुक्त हुए। गंगोपाध्याय ने हाजरा लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की है। उन्होंने West Bengal Civil Service के अफसर के तौर पर करियर शुरू किया था। बाद में नौकरी छोड़ कलकत्ता हाईकोर्ट में बतौर एडवोकेट प्रैक्टिस करने लगे।
जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय के पिता भी जाने-माने वकील रहे हैं। उनकी थियेटर में खासी रुचि है और मशहूर थियेटर ग्रुप ‘अमित्रा चंदा’ (Amitra Chanda) के सदस्य भी रहे हैं।
CBI जांच का आदेश दे आए थे सुर्खियों में
जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने 2022 की शुरुआत में बंगाल के कथित टीचर भर्ती घोटाले और भर्ती प्रक्रिया में अनियमितता के मामले में में सीबीआई जांच का आदेश दिया था। इस मामले में पहली हाई प्रोफाइल गिरफ्तारी टीएमसी नेता और तत्कालीन मंत्री पार्था चटर्जी की हुई थी। चटर्जी के घर से बड़े पैमाने पर कैश बरामद हुआ था और कहा गया कि उनकी 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की चल और अचल संपत्तियां हैं। चटर्जी की गिरफ्तारी के ठीक बाद पश्चिम बंगाल के एजुकेशन डिपार्टमेंट के कई अफसरों की गिरफ्तारी हुई।
जिसमें एक कुलपति सुबिरेश भट्टाचार्य (Subiresh Bhattacharya), टीएमसी के विधायक और वेस्ट बंगाल प्राइमरी एजुकेशन बोर्ड के अध्यक्ष माणिक भट्टाचार्य ( Manik Bhattacharya), टीएमसी एमएलए जिबान कृष्णा शाह शामिल हैं। इन सबपर पैसे लेकर शिक्षकों की भर्ती का आरोप है। जस्टिस गंगोपाध्याय ने इस मामले की सुनवाई करते हुए आदेश दिया था कि ऐसे योग्य अभ्यर्थी जो भर्ती से वंचित रह गए हैं, उन्हें दोबारा मौका दिया जाए।
क्या है वो इंटरव्यू जिसपर मचा है घमासान?
जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने पिछले साल 20 सितंबर को एबीपी आनंदा को एक इंटरव्यू दिया था। इस इंटरव्यू में उन्होंने राज्य सरकार और तृणमूल कांग्रेस दोनों की आलोचना की थी। इस इंटरव्यू में कथित तौर पर जस्टिस गंगोपाध्याय ने कहा था कि अभिषेक बनर्जी को न्यायपालिका के एक वर्ग के भाजपा के साथ सांठगांठ जैसे आरोप के लिए 3 महीने की जेल होनी चाहिए। टीएमसी ने इसकी आलोचना की थी। जस्टिस गंगोपाध्याय ने इंटरव्यू में कहा था ‘मुझे पता है कि साक्षात्कार के बाद विवाद होगा, लेकिन मैं जो कुछ भी कर रहा हूं वह न्यायिक आचरण के ‘बेंगलुरु प्रिंसिपल’ के अनुरूप है, जिसमें कहा गया है कि न्यायाधीशों को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है लेकिन जो कुछ भी कहते हैं वह अदालत के दायरे में होना चाहिए।
मैं होता तो कोर्ट में तलब कर लेता..
जस्टिस गंगोपाध्याय ने कहा था कि उनका मानना है कि ऐसे लोग जो न्यायपालिका की तरफ उंगली उठाते हैं, उन पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने इंटरव्यू में कहा था कि जब ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने न्यायपालिका पर टिप्पणी की थी, उस वक्त वह लद्दाख में थे। कहते हैं कि मेरा मन हुआ कि कोलकाता लौटने के बाद उन्हें समन करूं, कोर्ट में बुलाऊं और एक्शन लूं…लेकिन वापस आया तो देखा कि इस मामले में याचिका दायर हुई है। लेकिन डिवीजन बेंच ने इसे कंसीडर ही नहीं किया, लेकिन मेरी राय जुदा है’।
ऐसे फैसले देना चाहता हूं जो नजीर बने
इसी इंटरव्यू में जस्टिस गंगोपाध्याय ने दावा किया कि उन्होंने कभी करप्शन से समझौता नहीं किया। कहा था कि मैं ऐसे फैसले देना चाहता हूं, जो नजीर बने। कभी रिसर्चर इसे पढ़ें तो कहें कि एक जज ऐसा भी था।
सुनवाई के दौरान क्या क्या कहा था?
पिछले साल 26 नवंबर को टीचर रिक्रूटमेंट से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस गंगोपाध्याय ने टीएमसी पर कड़ी टिप्पणी की थी। कहा था कि चुनाव आयोग से तृणमूल कांग्रेस को एक राजनीतिक दल के तौर पर मिली मान्यता रद्द करने और लोगो वापस लेने के लिए कहना पड़ सकता है। संविधान से खिलवाड़ करने का अधिकार किसी को नहीं है। जस्टिस गंगोपाध्याय ने यह टिप्पणी तब की थी, जब पश्चिम बंगाल के एजुकेशन सेक्रेटरी मनीष जैन ने कोर्ट को बताया कि कथित अवैध नियुक्तियों को समायोजित करने के लिए राज्य मंत्रिमंडल ने अतिरिक्त पद सृजित करने का निर्णय लिया। खुद शिक्षा मंत्री ने इसका आदेश दिया था। जैन ने दलील दी कि वह खुद इस मीटिंग में मौजूद नहीं थे।
आखिर कैबिनेट ऐसा निर्णय कैसे ले सकती है?
जस्टिस गंगोपाध्याय ने राज्य सरकार के इस फैसले पर आश्चर्य जताते हुए कहा था कि आखिर कैबिनेट इस तरह का निर्णय कैसे ले सकती है? राज्य सरकार को यह घोषणा करनी होगी कि वह अवैध नियुक्तियों का समर्थन नहीं करती है और अतिरिक्त शिक्षकों की नियुक्ति से जुड़ी 19 मई 2022 वाली अधिसूचना भी वापस ले। वरना मैं ऐसा फैसला दूंगा, जो देश भर में नजीर बनेगा। जस्टिस गंगोपाध्याय ने कहा था कि अगर जरूरत हुई तो मैं इस मामले में पूरी कैबिनेट को पार्टी बनाऊंगा और एक-एककर सबको समन करूंगा और आवश्यकता पड़ी तो सबको शो कॉज नोटिस भी जारी करूंगा।
इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद टीएमसी एमपी और एडवोकेट कल्याण बंदोपाध्याय ने कहा था कि उन्हें (जस्टिस गंगोपाध्याय को) पार्टी पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि मामला पार्टी से जुड़ा नहीं है। जज के पास अदालत चलाने की व्यापक शक्ति होती है लेकिन वह शक्ति बेलगाम नहीं होनी चाहिए। किसी भी जज के पास इस तरह की टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है, जज को अनुशासित और कानून से बंधे रहने की जरूरत है।
TMC ने कहा ‘फैंटम गंगोपाध्याय’ नाम
बाद में जस्टिस गंगोपाध्याय की टिप्पणी का मामला तूल पकड़ता गया। टीएमसी के स्टेट सेक्रेटरी कुणाल घोष ने उनपर कुर्सी के दुरुपयोग का आरोप लगाया और ‘फैंटम गंगोपाध्याय’ कहते हुए पॉलिटिकल एक्टिविज्म का आरोप लगाया था।
जनवरी में कहा था- न्यायपालिका को डराने की कोशिश
जस्टिस गंगोपाध्याय की इसी साल जनवरी की एक टिप्पणी भी खासी सुर्खी में रही। दरअसल, कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस राजशेखर मंथा (Rajasekhar Mantha) ने कोर्ट की कार्यवाही में बाधा डालने के लिए कुछ वकीलों के खिलाफ जब अवमानना की कार्यवाही शुरू की, तब जस्टिस गंगोपाध्याय ने कहा कि मैं किसी कोर्ट रूम का नाम नहीं लूंगा, लेकिन पश्चिम बंगाल में न्यायपालिका को डराने-धमकाने की कोशिश हो रही है। लेकिन न्यायपालिका इतनी कमजोर नहीं है कि ऐसी धमकियों से डर जाए।