प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने आखिरी कार्यकाल के दौरान समय से पहले चुनाव करा दिया था और भाजपा सत्ता से बाहर हो गई थी। कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सत्ता में आयी थी। तब सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने की चर्चा चरम पर थी। द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने अपनी आने वाली किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में इन्हीं दिनों को एक किस्सा बताया है, जब राहुल गांधी ने अपनी मां सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री न बनने की धमकी दे डाली थी।

क्या है पूरा मामला?

किताब में 17 मई, 2004 को दोपहर में 10 जनपथ पर हुई एक बैठक के बारे में विवरण दिया गया है। के. नटवर सिंह के अनुसार, जब वह पहुंचे तो कमरे में सोनिया, प्रियंका गांधी और मनमोहन सिंह मौजूद थे।

नटवर सिंह बताते हैं, “वह (सोनिया) वहां सोफे पर बैठी थीं… मनमोहन सिंह और प्रियंका भी वहीं थे… सोनिया गांधी परेशान दिख रही थीं… तभी राहुल अंदर आये और हम सबके सामने कहा, ‘मैं आपको प्रधानमंत्री नहीं बनने दूंगा। मेरे पिता की हत्या कर दी गई, मेरी दादी की हत्या कर दी गई। छह माह में तुम्हें भी मार दिया जायेगा।’

किताब के मुताबिक, नटवर सिंह याद करते हुए कहते हैं, “राहुल ने धमकी दी कि अगर सोनिया ने उनकी बात नहीं मानी तो वह किसी भी हद तक चले जाएंगे। यह कोई सामान्य धमकी नहीं थी। राहुल एक मजबूत इरादों वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने सोनिया को निर्णय लेने के लिए 24 घंटे का समय दिया था…”

क्या PM बनना चाहती थीं सोनिया?

जब राहुल ने यह कहा कि वह अपनी मां को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए हर संभव कदम उठाने को तैयार हैं, तब सोनिया की आंखों में आंसू आ गए थे। द इंडियन एक्सप्रेस के एसोसिएट एडिटर मनोज सीजी ने एक इंटरव्यू में नीरजा चौधरी से पूछा, “आपने लिखा है कि 2004 में राहुल गांधी द्वारा अतिवादी कदम उठाने की धमकी के बाद सोनिया गांधी ने पीएम पद नहीं लेने का फैसला किया। लेकिन क्या सोनिया मन ही मन पीएम बनना चाहती थीं?”

लेखिका जवाब देती हैं, “मुझे लगता है कि यह राहुल का ही नजरिया था, जो सोनिया गांधी के लिए निर्णायक साबित हुआ। सोनिया अपनी तरफ से पीएम बनने के लिए पूरी तरह तैयार थीं। कांग्रेस संसदीय दल ने उन्हें चुन लिया था। फिर वो मीटिंग हुई जहां राहुल ने अपनी बात रखी। उनके अंदर की मां, राजनेता पर हावी हो गई। और उस एक कदम ने उन्हें दो दशकों तक कांग्रेस अध्यक्ष बनाए रखा और आज भी वह पार्टी की सबसे बड़ी नेता हैं। अगर सोनिया गांधी ने वह मौका नहीं छोड़ा होता, तो उन्हें बहुत अलग तरह से देखा जाता है।”

वाजपेयी ने चेतावनी के साथ दिया था आशीर्वाद

किताब में लिखा है कि सीपीपी नेता चुने जाने के बाद सोनिया और वाजपेयी ने बात की थी, “वाजपेयी ने उन्हें बधाई दी और कहा, आपके पास मेरा भरपूर आशीर्वाद है। लेकिन आप यह पद मत लीजिए। आप देश को विभाजित कर देंगी और इससे सिविल सेवाओं की निष्ठा पर दबाव पड़ सकता है।”