1991 लोकसभा चुनाव के मध्य में ही राजीव गांधी की हत्या हो गई। चुनाव जून 1991 में संपन्न हुआ। नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने। शरद पवार के दोस्त पी.सी. अलेक्जेंडर ने उन्हें बताया कि “प्रधानमंत्री की इच्छा है कि आप उनके मंत्रिमंडल में रहें।”
राजकमल से प्रकाशित अपनी आत्मकथा ‘अपनी शर्तों पर’ में शरद पवार बताते हैं कि प्रधानमंत्री और उनकी एक बैठक हुई थी, जिसमें नरसिम्हाराव ने उन्हें तीन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विभाग गृह, वित्त और रक्षा में से एक चुनने का प्रस्ताव दिया था। कुछ सोचने के बाद पवार ने रक्षा मंत्रालय चुना। दरअसल, पवार के आदर्श वाई.बी. चव्हाण भी रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल चुके थे। उन्हीं से प्रेरित होने की वजह से पवार ने रक्षा मंत्रालय चुना।
अंडमान निकोबार में हर-हर महादेव से हुआ स्वागत
रक्षा मंत्री रहते हुए शरद पवार ने जब अंडमान-निकोबार गए थे, तो वहां उनका स्वागत हर-हर महादेव से हुआ था। पवार के लिए यह अनोखा अनुभव था। उन्होंने इस वाकये को अपनी आत्मकथा में भी जगह दी है। वह लिखते हैं, “मैं वहां पर (अंडमान-निकोबार) भारतीय नौसेना के अड्डे का निरीक्षण करने गया था। जैसे ही मेरा हेलीकॉप्टर जमीन पर उतरा, ‘हर-हर महादेव और क्षत्रपति शिवाजी महाराज की जय’ के नारों से मेरा स्वागत हुआ। सोलहवीं सदी के योद्धा का यह नारा सुनकर कुछ आश्चर्यजनक प्रसन्नता हो रही थी। महाराष्ट्र से इतनी दूर इलाके में मैंने ऐसे नारे नहीं सुने थे।”
पवार ने जब इस बारे में थोड़ी जांच पड़ताल की तो पता चला कि ब्रिटिश शासकों ने वहां मराठा और महार रेजीमेंट के कुछ सैनिकों को भूमि आवंटित की थी। सेना से रिटायर होने के बाद वर्षों पहले वे सैनिक अपने परिवार सहित वहां बस गए। जब उन्हें शरद पवार के आने की खबर मिली तो उनमें से कुछ लोग पारम्परिक रूप से उनका स्वागत करने पहुंच गए थे।
सप्ताह में एक दिन तीनों सेना प्रमुखों खाना खाते थे पवार
रक्षामंत्री रहते हुए शरद पवार सप्ताह में एक दिन तीनों सेना प्रमुखों के साथ एक बार भोजन करते थे। इस डिनर मीटिंग के दौरान उन्हें अनौपचारिक बातचीत में कई ताजा जानकारियां मिल जाती थीं। पवार बताते हैं,इस मीटिंग से तीनों सेना प्रमुखों को भी आपस में अच्छे संबंध विकसित करने में सहायता मिली। जब कभी भयंकर संकट का समय आता है तब इस प्रकार की एकता मददगार साबित होती है।”
एक डिफेंस डील और गोल्फ
साल 1992 की शुरुआत में शरद पवार एक डिफेंस डील के सिलसिले में सिंगापुर गए थे। पहले तो सिंगापुर के तत्कालीन प्रधानमंत्री गो चो तांग और पवार के बीच बातचीत हुई। गो चो तांग ने पवार को सिंगापुर के रक्षामंत्री से मिलने को कहा। वहां के रक्षामंत्री ने दूसरे दिन गोल्फ कोर्स में मिलने का समय दिया। पवार कठिनाई में पड़ गया क्योंकि उन्हें गोल्फ खेलना नहीं आता है। लेकिन पवार हार नहीं माने, उन्होंने सोचा खेलना आए या न आए कोशिश तो करूंगा ही।
मुलाकात के बाद पवार जब होटल वापस लौटे, तो वहां उनके लिए एक बड़ा सा गोल्फ किट बैग रखा था। इसके साथ ही प्रधानमंत्री का एक नोट भी मिला, जिस पर लिखा था, “एक बार आप खेलना शुरू करें फिर हम बातचीत शुरू कर सकते हैं।”
दिल्ली वापस आने के बाद पवार ने गोल्फ खेलना सीखा। पवार लिखते हैं, “मेरे दामाद सदानंद और बेटी सुप्रिया इंडोनेशिया और सिंगापुर में ही कुछ वर्षों तक रहे। इसलिए इस बीच मैं कई बार सिंगापुर गया और वहां के रक्षामंत्री के साथ गोल्फ भी खेला। इस गोल्फ के खेल को खेलते हुए मुझे यह समझ में आया कि गोल्फ खेलते समय आपको काफी समय मिलता है और आप अन्य खिलाड़ियों से अलग एकांत में बात कर सकते हैं।”