पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के छोटे बेटे संजय गांधी (Sanjay Gandhi) का जन्म 14 दिसंबर, 1946 को जन्म हुआ था। संजय के जुनूनी और आक्रामक रवैये के लिए आज भी याद किया जाता है। 1969 में भारत लौटने के बाद से संजय गांधी ने भारतीय राजनीति में अपना दबदबा लगातार बढ़ाया। संजय गांधी के भारत वापसी के मात्र 6 साल के भीतर ही देश आपातकाल की जंजीर में कैद था।
तमाम राजनीतिक विश्लेषकों ने आपातकाल (Emergency) के लिए संजय गांधी को जिम्मेदार माना। बावजूद इसके संजय का राजनीतिक रसूख कम न हुआ। उल्टा बढ़ा ही। एक वक्त तो ऐसा भी आया, जब देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के विधायक दल ने संजय गांधी को मुख्यमंत्री चुन लिया। संजय का मुख्यमंत्री बनना तय हो चुका था, लेकिन इंदिरा गांधी ने फैसला पलट दिया।
संजय गांधी ने तोड़ी जनता पार्टी!
आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गई थी। इंदिरा गांधी और संजय गांधी भी अपनी सीट हार गए थे। उत्तर प्रदेश की सभी 84 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस की हार हुई थी। केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी थी। 24 मार्च, 1977 को मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।
हालांकि पार्टी में फूट के कारण यह सरकार 28 जुलाई, 1989 को गिर गई। फूट डालने और मोरारजी की जगह चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनाने में संजय की भूमिका बताई जाती है। बाद में कांग्रेस द्वारा चरण सिंह की सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद 1980 में मिड टर्म पोल (मध्यावधि चुनाव) हुए।
कांग्रेस की वापसी
मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस ने जबरदस्त वापसी की। इंदिरा गांधी आखिरी बार प्रधानमंत्री बनीं। 14 जनवरी, 1980 को उन्होंने शपथ लिया। केंद्र के अलावा उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र समेत 10 राज्यों में भी कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का एक धरा संजय गांधी को मुख्यमंत्री बनाना चाहता था।
CM बनते-बनते रह गए संजय गांधी
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को दो तिहाई बहुमत मिला था। कांग्रेस का एक धरा संजय को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहता था। वहीं पुराने नेता इस मांग से खफा दिख रहे थे। नारायण दत्त तिवारी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे दिग्गज तो खुद ही मुख्यमंत्री के रेस में थे। इसके अलावा राज्य में ब्राह्मण बनाम ठाकुर गुट भी पूरी सक्रियता से खेमेबाजी में जुटा हुआ था। हालांकि ज्यादातर विधायक संजय के पक्ष में थे। नेताओं का गुट दिल्ली-लखनऊ एक किए हुए था।
लेकिन इंदिरा गांधी इस पूरी उठा-पटक के पक्ष में नहीं थी। क्योंकि संजय का नाम मुख्यमंत्री के रूप में आगे आने से कई दिग्गज कांग्रेसी इंदिरा से दूर होने लगे थे। इंदिरा गांधी को यह नुकसान का सौदा लगा और उन्होंने संजय गांधी की वकालत कर रहे विधायकों को साफ संदेश दिया कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह (वी.पी. सिंह) होंगे। इस तरह संजय गांधी के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की संभावनाओं पर ब्रेक लग गया।